क्या राजनीति में भी ग्लैमर का तड़का जरूरी है

क्या राजनीति में भी ग्लैमर का तड़का जरूरी है

राजनीति और बालीवुड कलाकारों का रिश्ता किसी से छुपा नहीं है पहले भी कलाकार अपनी विचारधारा के अनुरूप राजनैतिक दलों का सर्मथन करते रहे है और आज भी करते है लेकिन सर्मथन से बढकर प्रत्यक्ष राजनीति में आना और सीधे चुनाव लड़कर संसद के गलियारों में पहंुचकर क्या ये कलाकार अपनी जनता और दल के साथ न्याय कर पाते है। अमिताभ बच्च्न ,राजेश खन्ना, विनोद खन्ना , धर्मेन्द्र , सन्नी देओल, शत्रुध्न सिन्हा , गोविंदा , हेमा मालिनि, से लेकर अब कंगना रनौत तक बालीवुड कलाकारों का जीतने का रिर्काड तो अच्छा खासा रहा है लेकिन इनमें से किसी एक ने भी कोई एसा काम नहीं किया है जिसे नवाचार माना जाये बल्कि आम जनता को इनसे मिलने तक में असुविधा का सामना करना पड़ता है फिर भी राजनैतिक दल अपने कार्यकर्ताओं पर इन कलाकारों को न सिर्फ तवज्जो देते है बल्कि उन्हे चुनाव भी लड़ाते है। जो जीतने के बाद अपने क्षेत्र की जनता को छोड़कर वापिस ग्लैमर की दुनिया मंे चले जाते है इन्हे क्षेत्र की जनता की परेशानियों योजनओ और उनके क्रियान्वयन से कोई मतलब नहीं होता है । लेकिन यह परंपर दशको से भारतीय राजनीति में जारी है।

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