इतिहास आँखों में धूल झोंकने की चीज नहीं

इतिहास आँखों में धूल झोंकने की चीज नहीं

हमारी सरकार इतिहास लिखने के बजाय इतिहास के कुछ कालखंड को विलोपित करने जा रही है । सरकार के इस कदम का स्वागत किया जाये या विरोध ,ये तय करना जरूरी हो गया है। चूंकि मै इतिहासकार नहीं हूँ इसलिए इस बारे में आधिकारिक रूप से कोई राय नहीं दे सकता किन्तु मेरा अपना मत है कि इतिहास को विलोपित करना जनता की आँखों में धूल झौंकने जैसा है। इतिहास धूल नहीं एक दस्तावेज होता है अतीत का । इसमें से गुजरे बिना आप अपने अतीत को बेहतर बना ही नहीं सकते ।
मुमकिन है कि सरकार देश की नई पीढ़ी को मुगलकाल नहीं पढ़ाना चाहती इसलिए उसे पाठ्यक्रमों से विलोपित किया जा रहा है। सरकार धरती पर सर्वशक्तिमान होती ह। उसे कुछ भी करने का अधिकार है। उसे रोका नहीं जा सकता ,लेकिन टोका जा सकता है। उसे टोका जाना चाहिए कि वो इतिहास को आँखों में झोके जाने वाली धूल में तब्दील न करे अपितु उसे आँखों में डालने वाले सुरमे की तरह इस्तेमाल करे। सरकार को लगता है कि मुगलकाल का इतिहास तत्कालीन शासकों का महिमामंडन करने वाला इतिहास है । उसमें गलत सूचनाएं दर्ज हैं। मुमकिन है ऐसा हो भी,क्योंकि हर सत्ता अपने हिसाब का इतिहास लिखवाती है या सत्ता के मिजाज के मुताबिक़ इतिहास लिखा जाता है। लेकिन इस इतिहास को भी विलोपित नहीं किया जा सकता। ऐसा करना एक तरह का अपराध है । जिस कालखंड में आप थे ही नहीं उसे विलोपित करने वाले आप कौन हैं ?
                                                    नयी पीढ़ी को नए इतिहास से अवगत करने के लिए पुराने इतिहास से गुजरना ही होता है । गुजरना ही चाहिए। ऐसा किये बिना आप अपना अतीत जान ही नहीं सकते । दरअसल डरे हुए लोग ही इतिहास से घबड़ाते है। पराजय का भय उन्हें इतिहास से छेड़छाड़ की प्रेरणा देता है । आज की सत्ता देश के जिन नायकों का महिमा मंडन करना चाहती है उनमें से कोई भी पराजय के भी से भयभीत नहीं था। फिर चाहे वे शिवाजी महाराज हों या राणा प्रताप। इन जैसे असंख्य महानायकों ने आजीवन जय की कामना से युद्ध किये। जीते भी, हारे भी लेकिन सत्ता के सामने अपना सर नहीं झुकाया। अब यदि आप उस कालखंड को ही विलोपित कर देंगे तो नयी पीढ़ी को इन महानायकों के शौर्य से कैसे अवगत कराएँगे ?
इतिहास से खिलवाड़ करने वाले भयभीत लोग नहीं जानते [शायद जानते भी हों ]कि इतिहास सिर्फ कागजों में ही दर्ज नहीं होत। इतिहास कला और संस्कृति में भी जीवित रहता है । आप मुगलकाल को विलोपित कर इसे कला और संस्कृति के साथ स्थापत्य से कैसे विलोपित करेंगे भला ? कहाँ उठाकर ले जायेंगे उस समय की इमारतें ,कहाँ ले जायेंगे गीत-संगीत और वाद्ययंत्र ? कहाँ ले जायेंगे पोशाकें,कहाँ ले जायेंगे खानपान ?ये सब इतिहास के ही हिस्से हैं। आप शहरों के नाम इलाहबाद से बदलकर प्रयाग कर सकते हैं किन्तु आप ताजमहल ,क़ुतुब मीनार या ऐसे ही तमाम शाहकारों का नाम तो नहीं बदल सकते। और यदि ऐसी जुर्रत कर रहे हाँ तो वाकई आप बहुत महान हैं। आपकी महानता की तुलना किसी मूर्खता से भी नहीं की जा सकती।
विकीपीडिया में इतिहास कि एक घिसी-पिटी परिभाषा दर्ज है। इसके मुताबिक़ इतिहासकार वह है जो इतिहास लिखे।एक इतिहासकार एक ऐसा व्यक्ति है जो अतीत के बारे में अध्ययन और लिखता है, और इसे उस पर एक अधिकार के रूप में माना जाता है। इतिहासकार, मानव जाति से संबंधित पिछले घटनाओं की निरंतर, व्यवस्थित कथा और अनुसंधान से चिंतित हैं; साथ ही समय में सभी इतिहास का अध्ययन मात्र है। नया इतिहास लिखने वाले इस परिभाषा में भी फिट नहीं बैठते,क्योंकि उनकी खुद की शैक्षणिक योग्यता विवादास्पद है। अदालतों को इसका फैसला करना ह। अदालतें आजकल मानहानि के मामलों में फैसले देने में व्यस्त हैं ,इसलिए उपाधियों के असली,नकली होने के बारे में फैसला नहीं कर पा रहीं हैं।
इतिहास मेरा प्रिय विषय रहा है । इसमें गुलशन नंदा के उपन्यासों की सामग्री भी होती है और कर्नल रंजीत के उपन्यासों जैसा रहस्य तथा रोमांच भी । इतिहास में प्रेम,घृणा ,सौहार्द,हिकमत अमली,विवशताएँ ,साजिशें ,निर्माण और ध्वंश सब कुछ होता है । इतिहास में नायक,खलनायक,नयिकाएँ,खलनायिकाएं,विदूषक ,बहुरूपिये,विद्वान और मूर्ख सब होते हैं। इसलिए ही इतिहास रोचक होता है । जो इतिहास को शुष्क विषय मानते हैं ,उन्हें शायद इतिहास पढ़ना नहीं आता। जिन्हें इतिहास पढ़ना नहीं आता वे यदि इतिहास को गढ़ने की कोशिश करते हैं तो आप समझ सकते हैं कि हमारे पास इतिहास किस शक्ल में उपस्थित होगा । इतिहास में मुहावरे हैं,इतिहास में कहावते है। इतिहास में खिड़कियाँ हैं,इतिहास में दरवाजे है। बड़े-बड़े दरवाजे। जिनके जरिये आप अपने अच्छे-बुरे अतीत में झाँक सकते है। अपने आपको आंक सकते हैं।
                                                    आज देश आजादी के अमृतकाल से गुजर रहा है । इसलिए जरूरत इस बात की है कि हम इतिहास से छेड़छाड़ किये बिना आज का इतिहास लिखें। इतिहास किसी एक के बूते का लेखन नहीं है । इतिहास लिखने वाले यात्री भी हो सकते हैं,विद्यार्थी भी हो सकते हैं और वे लोग भी जिनका लेखन से कोई सरोकार ही नहीं होत। इतिहास कविताओं,कहानियों ,उपन्यासों में भी छिपकर बैठ जाता है। इतिहास को कहाँ-कहाँ से विलोपित करेंगे ? खुशी की बात कहें या दुःख की बात लेकिन इस दौर में भी तमाम रिटायर्ड आईएएस और पत्रकार इतिहास का लेखन कर रहे है। वे इस मायने में सरकार के सहायक है। दिन रात अतीत के अनखुले पन्नों को खोल आरहे हैं किन्तु इससे पुराना इतिहास बेमानी नहीं हो जाता।
इतिहास लिखने के लिए हमारे पास पहले भी विशेषज्ञ थे,आज भी हैं लेकिन सरकार ये काम खुद कर लेना चाहती है । सरकार को किसी अखिल भारतीय इतिहास-संकलन योजना,इतिहास संकलन मण्डल, पुणे (विश्वनाथ काशिनाथ राजवाडे द्वारा स्थापित),भारतीय इतिहास पुनरावलोकन संस्थान,भारतीय इतिहास परिषद (जयचन्द विद्यालंकार द्वारा स्थापित),भारतीय इतिहास कांग्रेस या भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की जरूरत नहीं है।
आप मानें या न मानें किन्तु इतिहास लेखन निरन्तर चलने वाली एक प्रक्रिया है। मानव समाज के क्रिया-कलापों का क्रमबद्ध विवरण हमें 500 ई. पूर्व से ही प्राप्त हो सका है। सबसे पहले इतिहास लेखन का क्रमबद्ध विवरण यूनानी विद्वान हेरोडोट्स के द्वारा किया गया था। उसने 500 ई.पू. से लेखन कार्य शुरू किया था। इस प्रकार हेरोडोट्स को ही प्रथम ऐतिहासिक लेखक के रूप में जाना जाता हैं। हेरोडोट्स के बाद यूनान मे लेखक थ्यूसीडाइड्स का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। वही 19वीं शताब्दी में ‘रैन्क’ नामक शख्स ने इतिहास को वैज्ञानिक आधार पर लिखकर अपनी रचना को जर्मनी में प्रकाशित करवाया था। फिर दुनिया के अन्य देशों विशेषकर भारत, फ्रांस, , इटली,अरब आदि में इतिहास लेखन चालू हुआ, वर्तमान में ऑगस्ट कामप्टे का प्रत्यक्षवाद इतिहास लेखन प्रचलन में हैं, क्योंकि इसमें वैज्ञानिक आधार पर इतिहास लेखन किया जाता हैं।और अब हमारे पास माननीय नरेंद्र मोदी जैसे कामयाब जन नायक हैं जो खुद इतिहास लिख भी रहें हैं,बन भी रहे हैं और बिगाड़ भी रहे हैं।
इतिहास को लेकर मै लगातार आशावादी रहा हूँ । हमें सबका लिखा इतिहास पसंद है । चीनी यात्री ह्वेनसांग का लिखा इतिहास भी ,इब्ने बतूता का लिखा इतिहास भी और चिंतामणि विनायक वैद्य का लिखा माझा प्रवास भी। अब मोदी जी का लिखा इतिहास भी मै पढ़ने को उत्सुक हूँ । आपकी पसंद आपके ऊपर छोड़ता हूँ ,कि आप किस काल का इतिहास पढ़ना चाहते हैं और किस काल का विलोपित करना चाहते हैं ? मुझे इतिहास के हर काल खंड से रोशनी मिलती है । आपकी आप जाने।

व्यक्तिगत विचार आलेख

श्री राकेश अचल जी  ,वरिष्ठ पत्रकार  एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश  ।

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