ईरान में हिजाब पर कोहराम

ईरान में हिजाब पर कोहराम

मुश्लिम औरतें हिजाब पहने या नहीं, इस मुद्दे को लेकर ईरान में जबर्दस्त कोहराम मचा हुआ है। जगह-जगह हिजाब के विरूद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं। कई लोग हताहत हो चुके हैं। तेहरान विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने हड़ताल कर दी है। ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खोमनई के खिलाफ खुले-आम नारे लग रहे हैं। विभिन्न शहरों और गांवों में हजारों पुलिसवाले तैनात कर दिए गए हैं।

ऐसा लग रहा है कि ईरान में शहंशाह के खिलाफ जो माहौल सन 1975-78 में देखने में आया था, उसकी पुनरावृत्ति हो रही है। कई बड़े शिया नेता भी हिजाब का विरोध करने लगे हैं। यह कोहराम इसलिए शुरु हुआ है कि महसा आमीनी (22 साल) नामक युवती को तेहरान में गिरफ्तार कर लिया गया था, क्योंकि उसने हिजाब नहीं पहना हुआ था। गिरफ्तारी के तीन दिन बाद 16 सितंबर को जेल में ही उसकी मौत हो गई। उसके सिर तथा अन्य अंगों पर भयंकर चोट के निशान थे।

इस दुर्घटना ने ईरान की महिलाओं में रोष फैला दिया है। हजारों छात्राओं ने अपना हिजाब उतारकर फेंक दिया। आयतुल्लाह खुमैनी के शासन (1979) के पहले और बाद में मुझे ईरान में रहने और पढ़ाने के कई मौके मिले। शहंशाह-ईरान के राज में औरतों की वेश-भूषा में इतनी छूट थी कि तेहरान कभी-कभी लंदन और न्यूयार्क की तरह दिखाई पड़ता था। मेरे इस्लामी मित्रों में कई नेता, प्रोफेसर, पत्रकार और आयतुल्लाह भी थे। वे कहा करते थे कि हम शिया मुसलमान हैं। हम आर्य हैं। हम अरबों की नकल क्यों करें?

अब तो ईरान में कट्टर इस्लामी राज है लेकिन लोग खुले-आम कह रहे हैं कि हिजाब, बुर्का, नक़ाब या अबाया को कुरान-शरीफ में कहीं भी जरुरी नहीं बताया गया है। इसके अलावा डेढ़ हजार साल पहले अरब देशों में जो वेशभूषा, भोजन और जीवन-पद्धति थी, उसकी आज भी हू-ब-हू नकल करना कहाँ तक ठीक है? यूरोप के तो कई देशों में हिजाब और बुर्के पर कड़ी पाबंदी है। जो इस पाबंदी को नहीं माने, उसको दंडित भी किया जाता है। बुर्के और हिजाब में चेहरा छिपाकर बहुत-से आतंकवादी, तस्कर और अपराधी लोग अपना काम-धंधा जारी रखते हैं। वास्तव में बुर्का और हिजाब तो स्त्री-जाति के अपमान का प्रतीक है।

असली सवाल यह है कि सिर्फ औरतें ही अपना मुँह क्यों छिपाएँ? यह नियम मर्दों पर भी लागू क्यों नहीं किया जाता? यदि यह इस्लामी नियम है तो मैं पूछता हूं कि क्या बेनजीर भुट्टो, मरियम नवाज और इंडोनेशिया की सुकर्ण-पुत्री मेघावती मुसलमान नहीं मानी जाएंगी? यदि यही नियम सख्ती से लागू किया जाए तो सारे सिनेमा घर बंद करने होंगे।

इस्लामी देश तो कला के कब्रिस्तान बन जाएंगे। इसीलिए लगभग दर्जन भर इस्लामी देशों में हिजाब और बुर्का वगैरह को हतोत्साहित किया जाता है। भारत के स्कूल की छात्राओं के लिए भी हिजाब की मांग करना सर्वथा अनुचित है। ईरान की इस्लामी सरकार अपने आप को देश और काल के अनुरुप बनाए, यह बेहद जरुरी है। वरना वे लोगों को इस्लाम के प्रति उदासीन कर देंगे।

 

आलेख श्री वेद प्रताप वैदिक जी, वरिष्ठ पत्रकार ,नई दिल्ली।

साभार राष्ट्रीय दैनिक नया इंडिया समाचार पत्र  ।

Share this...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *