सोशल मीडिया इस तरह की खबरों से भरा है कि स्टेज पर नाचते गाते या जिम में वर्कआउट करते या क्रिकेट खेलते युवाओं को अचानक दिल का दौरा पड़ा और देखते देखते जिंदगी खत्म हो गई। फिल्म व टेलीविजन से जुड़े 40 साल के सिद्धार्थ शुक्ला को वर्कआउट करते दिल का दौरा पड़ा था और उनकी मौत हो गई थी। टेलीविजन धारावाहिकों से जुड़े दीपेश भान को क्रिकेट खेलते समय दिल का दौरा पड़ा और तत्काल उनका निधन हो गया। मशहूर कॉमेडियम राजू श्रीवास्तव हों या कन्नड़ फिल्मों के सुपर सितारे पुनीत राजकुमार, पूरी तरह से स्वस्थ दिखने वाले दोनों कलाकारों को दिल का दौरा पड़ा और जिंदगी खत्म हो गई। कह सकते हैं कि न दिल का दौरा कोई नई चीज है और न युवा उम्र में मौत कोई नई चीज है, इसके बावजूद ये घटनाएं डराने वाली हैं क्योंकि फिल्म और टेलीविजन से जुड़ी हस्तियों की तो खबरें बनती हैं लेकिन कोरोना वायरस की महामारी के बाद ऐसी घटनाएं आम लोगों के जीवन में भी बढ़ गई हैं।
पूरा सोशल मीडिया ऐसे वीडियो से भरा है, जब अच्छा खासा नौजवान नाचते गाते गिरता है और उसकी मौत हो जाती है। मध्य प्रदेश के जबलपुर में बस चलाते हुए ड्राइवर को दिल का दौरा पड़ा और स्टीयरिंग व्हील पर ही उसकी मौत हो गई। बेकाबू बस की चपेट में अनेक गाड़ियां आईं। वाराणसी में भतीजे की शादी में नाचते हुए फूफाजी स्टेज पर ही गिर गए और लोग उन्हें उठाते उतनी देर में उनकी मौत हो गई। मेरठ में चार दोस्त एक गली से गुजर रहे होते हैं और उनमें से 25 साल के एक नौजवान को छींक आती है और पांच सेकेंड के भीतर वहीं गिर कर उसकी मौत हो जाती है। गाजियाबाद में महज 35 साल का जिम ट्रेनर कुर्सी पर बैठे बैठे लुढ़क जाता है और तत्क्षण उसकी मौत हो जाती है। लखनऊ के मोहनलालगंज में शादी के स्टेज पर वरमाला पहनाते हुए दुल्हन के दिल की धड़कन अचानक बंद हो जाती है और उसे अस्पताल ले जाया जाए तब तक उसकी मौत हो गई। मध्य प्रदेश में कटनी के साईं मंदिर में दर्शन करते समय युवक वहीं लुढ़क गया और उसकी मौत हो गई।
पिछले एक-डेढ़ साल में ऐसी घटनाओं मे बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। लेकिन कहीं भी इसमें कोई पैटर्न देखने की कोशिश नहीं हो रही है। ट्विटर और सोशल मीडिया के दूसरे प्लेटफॉर्म पर जरूर कुछ जागरूक और समझदार लोग इसे लेकर चिंता जता रहे हैं लेकिन सरकारों का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है। मेडिकल बिरादरी भी ऐसी घटनाओं में कोई तारतम्यता नहीं देख रही है और हर घटना को अलग-थलग मान कर उसका विश्लेषण किया जा रहा है। मोटे तौर पर इसे लोकलाइज्ड और आइसोलेशन में देखा जा रहा है। लेकिन आंकड़े अलग कहानी बयान करते हैं। पूरे देश का आंकड़ा तो नहीं है लेकिन अगर किसी को जरा सा भी सरोकार हो तो मुंबई के आंकड़े देख कर हकीकत समझ सकता है। बृहन्नमुंबई महानगर निगम, बीएमसी में दर्ज मौत के आंकड़ों के मुताबिक 2021 के पहले छह महीने में यानी जनवरी से जून के बीच करीब 18 हजार लोगों की मौत हृदय असफल हो जाने की वजह से हुई। यानी हर दिन एक सौ लोगों की मौत हार्ट फेल होने से हुई है।
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सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से पता चला कि मुंबई में 2018 में दिल का दौरा पड़ने से आठ हजार 601 मौतें हुई थीं। अगले साल यानी 2019 में यह आंकड़ा घट गया और पांच हजार 849 लोगों की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई। इसके अगले साल यानी 2020 में दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौतें कम होने का सिलसिला जारी रहा और कुल पांच हजार 633 लोगों की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई। यह वो समय था, जब पूरा देश कोरोना वायरस की पहली लहर की चपेट में था। फिर आता है 2021 का साल जब जनवरी में वैक्सीनेशन शुरू हुआ और मार्च में कोरोना की दूसरी लहर शुरू हुई। कोरोना की सबसे भयावह दूसरी लहर के बीच जनवरी से जून में मुंबई में कोरोना संक्रमण से 10 हजार 289 लोगों की जान गई। इसी अवधि में यानी जनवरी से जून 2021 के बीच दिल का दौरा पड़ने से 17 हजार 880 लोगों की जान गई। सोचें, कहां पूरे साल में पांच से छह हजार लोगों की मौत दिल का दौरा पड़ने से हो रही थी और कहां छह महीने में करीब 18 हजार लोगों की जान चली गई! पूरे साल का आंकड़ा अगर 36 हजार का होता है तो इसका मतलब है कि एक साल में दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौतों में छह गुना बढ़ोतरी हो गई है!
क्या यह कोई सामान्य बात है या ऐसी बात है जिसकी अनदेखी की जा सकती है? यह बेहद गंभीर मामला है। केंद्र व राज्यों की सरकारों और स्थानीय प्रशासन को ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लेना चाहिए। इसके पैटर्न का अध्ययन किया जाना चाहिए। आखिर कोरोना वायरस की महामारी शुरू होने के एक साल के बाद जब दूसरी लहर आई और जब वैक्सीनेशन शुरू हुआ तब अचानक हृदय असफल होने की घटनाएं क्यों बढ़ गईं? क्या कोरोना ने लोगों का हृदय और शरीर के दूसरे अंगों को कमजोर किया है? क्या वैक्सीनेशन की वजह से रक्त का थक्का बनने की घटनाएं बढ़ी हैं? क्या कोरोना के समय इस्तेमाल की गई दवाओं और सही गलत इलाज की वजह से शरीर में रक्त का थक्का बन रहा है? ये ऐसे सवाल हैं, जिनका जल्दी से जल्दी जवाब खोजना होगा। अगर जरूरी हो तो अचानक दिल का दौरा पड़ने पर होने वाली मौतों में पोस्टमार्टम अनिवार्य किया जाए। इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और एम्स जैसी संस्थाओं को इस मामले में पहल करनी चाहिए और अपनी लैब में इसकी जांच करानी चाहिए। वैक्सीन बनाने वाली निजी और सरकारी कंपनियों को भी इसकी जांच करानी चाहिए।
पहले जब कम उम्र में किसी को दिल का दौरा पड़ता था तो कहा जाता था कि जीवन शैली की वजह से हो रहा है। लोगों के खान पान की रूचियां बदल गई हैं, विदेशी या तैलीय खाना लोगों को दिल को कमजोर कर रहा है, लोग ज्यादा समय तक बैठ कर काम कर रहे हैं, एक्सरसाइज कम कर रहे हैं, जैसे कारण बताए जाते थे। अब इसके साथ साथ यह भी कहा जाने लगा है कि ओवर एक्सरसाइज करने से या दिल पर ज्यादा जोर डालने से दिल का दौरा पड़ रहा है। ये सब कारण हो सकते हैं लेकिन सिर्फ इस वजह से ऐसा नहीं हो सकता है कि दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौतों की संख्या छह सौ फीसदी बढ़ जाए! या ऐसा नहीं हो सकता है कि 25 से 40 साल की उम्र के युवा चलते चलते या नाचते गाते गिर जाएं और उनकी मौत हो जाए! ब्रिटेन और अमेरिका जैस देशों ने अपने यहां अध्ययन कराया है। क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के मुताबिक गंभीर कोरोना से उबरे मरीजों में हार्ट फेल की घटनाएं 21 गुना तक बढ़ गई हैं। ऑक्सफोर्ड के एक अध्ययन के मुताबिक गंभीर कोविड से उबरे 10 में से पांच मरीजों के हार्ट फेल होने की बहुत अधिक संभावना है। अमेरिका में 25 से 44 साल तक के लोगों में हार्ट फेल की घटनाओं में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। भारत में भी तत्काल ऐसे अध्ययन और रोकथाम के उपाय करने की जरूरत है।
आलेख – श्री अजीत द्विवेदी जी , वरिष्ठ पत्रकार ,नई दिल्ली।
साभार राष्ट्रीय दैनिक नया इंडिया समाचार पत्र ।
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