भगवान सिर्फ क्रिकेट में ही नहीं होते। भगवान हर खेल में होते हैं। फुटबाल की दुनिया में भी पेले का नाम भगवान की ही तरह लिया जाता है।बुरी खबर ये है कि फुटबाल की दुनिया का ये भगवान अब हमेशा के लिए अदृश्य हो गया है।पेले का जाना फुटबाल की दुनिया में एक वट वृक्ष के गिरने जैसा है। खेलों के बारे में मै अल्पज्ञानी हूं और इसके लिए मुझे कोई शर्मिंदगी नहीं है। लेकिन खेलों में में मेरी रुचि हर खेल के भगवान से मिलाती रही है, भले ही ये परिचय आभासी ही क्यों न हो ।82 साल के ब्राजील के पेले केंसर से पीड़ित थे। पिछले हफ्ते वे अस्पताल गए लेकिन फिर जीवित वापस नहीं लौटे।पेले के नाम फुटबाल के विश्व विजयी होने के ताज थे। पेले के बारे में मैं अपनी किशोरावस्था से ही उत्सुक रहता था। उन दिनों क्रिकेट से ज्यादा फुटबाल का जुनून हुआ करता था।तब टीवी नहीं था इसलिए पेले के फोटो पत्रिकाओं में से काटकर चस्पा किए जाते थे। मुझे याद है कि पेले दुनिया के अकेले ऐसे फुटबाल खिलाड़ी रहे जो लगातार छह दशकों तक खेल के मैदान पर अंगद के पैर की तरह जमे रहे। उन्होंने फुटबाल की चार विश्व कप प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया था और तीन में विजय हासिल की थी। फुटबाल के मैदान पर पेले खेलते ही नही थे बल्कि जादू करते थे। उनके नाम से दर्ज तमाम कीर्तिमान इसका सबूत हैं। पेले जब बाल लेकर गोल दागने के लिए दौड़ते थे तो असंख्य दर्शकों की दिलों की धड़कनें ठहर सी जाती थीं। लोग पागल हो जाते थे। लोग मानें या न माने किंतु मुझे लगता है कि ब्राजील के इस खिलाड़ी ने फुटबाल का व्याकरण ही नहीं बदला बल्कि पूरा ककहरा ही बदलकर रख दिया था। उन्होंने फुटबॉल को खेल के बजाय कला का रूप दिया। उन्होंने दुनिया में रंगभेद को लेकर धारणा भी बदली और गरीबों की आवाज को भी बुलंद किया। पेले की वजह से ही दुनिया में ब्राजील और फुटबॉल एक दूसरे के पर्याय बन सके। दुनिया में ऐसे बहुत कम उदाहरण हैं।
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पेले का जाना उस पीढी के लिए अविश्वसनीय हो सकता है जिसने पेले को खेलते हुए नहीं देखा किंतु हम जैसों के लिए पेले फुटबाल के बेताज बादशाह थे, उन्होंने जो विरासत अपने पीछे छोड़ी है उसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। फुटबाल के भगवान पेले में दिलचस्पी रखने वाले पेले के बारे में सब जानते हैं लेकिन जो नहीं जानते उनके लिए बता दूं कि पेले ब्राजील की राजधानी रिओ डि जेनेरियो से कोई डेढ़ सौ किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव में 1940 में पैदा हुए थे। पेले ने 15 वर्ष की आयु में सांटोस के लिये और अपनी राष्ट्रीय टीम के लिये 16 वर्ष की आयु में खेलना शुरू किया और अपना पहला विश्व कप 17 वर्ष की उम्र में जीता. यूरोपियन क्लबों द्वारा अनगिनत प्रस्तावों के बावजूद उस समय की आर्थिक परिस्थितियों और ब्राजीली फुटबॉल के नियमों का लाभ सांटोस को मिला, जिससे वे पेले को 1974 तक लगभग पूरे दो दशकों तक अपने साथ रख सके. पेले की सहायता से सांटोस 1962 और 1963 में दक्षिण अमरीकी फुटबॉल की सबसे सम्मानित क्लब स्पर्धा, कोपा लिबेर्टाडोरेस जीत कर अपने चरम पर पहुंचा। पेले एक इनसाइड सेकंड फार्वर्ड के रूप में खेलते थे, जिसे प्लेमेकर का नाम भी दिया जाता है। पेले की तकनीक और प्राकृतिक जोशीलेपन की विश्वभर में प्रशंसा की गई है और उनके खेल के वर्षों में वे अपनी श्रेष्ठ ड्रिबिंग और पासिंग, अपनी रफ्तार, शक्तिशाली शाट, असाधारण सिर से मारने की क्षमता और गोल बनाने के लिये मशहूर थे। सात बच्चों के पिता पेले के प्रति मेरे सम्मान भाव की वजह उनका नायाब खेल तो था ही साथ ही अपनी कौम, अपने देश के समर्पण भी रहा।अपने मूल देश ब्राजील में पेले का राष्ट्रीय हीरो के रूप में सम्मान किया जाता है। वे फुटबॉल के खेल में अपनी उपलब्धियों और योगदान के लिये प्रसिद्ध हैं। उन्हें गरीबों की सामाजिक स्थिति को सुधारने की नीतियों के जोरदार समर्थन के लिये भी जाना जाता है आपको याद दिला दूं कि उन्होंने अपने 1000 वें गोल को ब्राजील के गरीब बच्चों को समर्पित किया था। पेले के बारे में लिखने को बहुत है लेकिन आज मैं भावुकता की जद में हूं इसलिए बात यही समाप्त करता हूं।मै हमेशा से चाहता हूं कि हर देश के पास पेले जैसे खिलाड़ी होने चाहिए। विश्वगुरु बनने से ज्यादा बड़ी बात पेले बनना है। पेले के बाद मेराडोना, रोनाल्डो भी हैं, लेकिन कोई भी पेले नहीं है।पेले ने अपने करियर में कुल 1361 मुकाबलों में सर्वाधिक 1283 गोल दागे। यही नही, पेले के नाम सबसे ज्यादा हैट्रिक लगाने का भी रिकॉर्ड है। उन्होंने अपने पूरे करियर में कुल 92 हैट्रिक लगाई। विनम्र श्रद्धांजलि।
व्यक्तिगत विचार-आलेख-
श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार , मध्यप्रदेश ।
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