भगवान कभी जीव का साथ नहीं छोड़ते इसलिए वे अपने हैं- मलूक पीठाधीश्वर राजेन्द्र दास

भगवान कभी जीव का साथ नहीं छोड़ते इसलिए वे अपने हैं- मलूक पीठाधीश्वर राजेन्द्र दास

भगवान के स्वभाव के ही कारण जीव भगवान की ओर आकर्षित होता है : मलूक पीठाधीश्वर राजेन्द्र दास गढाकोटा।

गढ़ाकोटा में आयोजित श्रीमद् भक्तमाल कथा के तीसरे दिन बुधवार को कथाव्यास मलूक पीठाधीश्वर पंडित राजेंद्र दास जी महाराज ने कहा कि भगवान के स्वभाव के ही कारण जीव भगवान की ओर आकर्षित होता है ।भगवान के स्वभाव का बोध होना यदि विषयी जीव कथा सुनना आरंभ कर दे तो वह भी विषयी नहीं रहेगा। स्वभाव से ही जीव भगवान की ओर आकर्षित होता है ।भगवान के चरित्र श्रवण का प्रयोजन भी यही है भगवान का बोध होना और भगवान के करुणामय दयामय स्वभाव का बोध होता ही सरल सहज भगवत रति प्राप्त हो जाती है। उन्होंने कहा कि जो कभी साथ ना छोड़े वह अपना है ,और जो कभी साथ ना रहे वह पराया है ।भगवान कभी जीव का साथ नहीं छोड़ते इसलिए अपने हैं । और शरीर संसार कभी साथ नहीं रहते इसलिए वह पराए हैं। इसलिए यदि भगवत प्राप्ति चाहिए तो कथा आज से ही सुनना प्रारंभ कर दें।

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आगे राजेन्द्र दास जी ने कहा कि भगवन की भक्ति ही परम निष्कामता का परम मार्ग है।जिसका जन्म हुआ है उसका मरण अवश्य होगा।मनुष्य की सारी रात सोने में व्यतीत हो जाती है।अथवा भोग में रात्रि व्यतीत हो जाती है।सुबह हुई कि धन कमाने की इच्छा में अर्थात धन की लालसा में सारा दिन निकल जाता है।संसार के व्यवहार को ठीक से चलाने के लिये धन की आवश्यकता है।धनोपार्जन ही मानव की सबसे बड़ी इच्छा है।“सम्पूर्ण कुटुंब भरणवः”अर्थात सारे परिवार के भरण पोषण में समय चला जाता है।अपने मार्मिक वाणी में पूज्य राजेन्द्र दास महाराज ने भक्तोँ को समझाते हुए कहा कि आज भगवान की प्राप्ति मनुष्य जीवन का लक्ष्य नहीं है।अपितु रोटी कपड़ा और मकान ही हमारा लक्ष्य बनता जा रहा है।हम लोग कहते है संसार दुखी है।संत कबीरदास कहते है कि यह संसार तो सुखी है बस हम सब दुखी है कैसे … सुखिया सब संसार है-आवे अरु सोवे,दुखियादास कबीर है-जागे अरु रोवे। संसार मे लोगों को अपने आत्मकल्याण की चिंता क्यों नहीं होती है।संसार मे मनुष्य का शरीर,सन्तान,पत्नि, कुटुम्बजन,घर,खेत,खलिहान,दुकान,आदि सभी वस्तुएँ नश्वर है।इसलिए भगवान के अतिरिक्त कहीं की प्रियता मत करो।हमारी कई पीढ़ियाँ नश्वर है,बूढ़े ही नहीं जबान भी परलोक सिधार गये।कितने बालकों की गर्भ में मृत्यु हो जाती है।इनके विनाश को देखकर भी मनुष्य होश में नहीं आता है,और इस प्रकार व्यवहार करता है कि जैसे हमे मरना ही नहीं है।साधक की सफलता इसमें है कि अंतिम क्षण में यदि भगवान की याद आ गई तो समझ लो हमारी इस संसार से नहीं अपितु भगवान से लगन लगी है।पूज्य राजेन्द्र दास जी ने उदाहरण देते हुए बताया कि दिगम्बर भगवान ऋषभदेव के पुत्र राजभद्र थे जो महान तपस्वी थे अपने अंतिम समय मे उन्हें एक हिरण के बच्चे से प्रेम हो गया और उन्हें मरकर मृग योनि में जन्म लेना पड़ा।अंत में मृग देह त्यागकर जड़कर जीव बनकर उनका आत्मकल्याण हो पाया।अर्थात एक महान साधक और तपस्वी पुरुष भी अंतिम क्षणों में अपने राग भावबके कारण कल्याण मार्ग से भटक सकता है।इसलिये जीबन का अंतिम सरल साधन है भगवान का पवित्र नाम।’अन्ते नारायणःस्मृतिः’ इसलिये परम् प्रभु के अतिरिक्त कहीं भी प्रियता मत करो।आज भगवत भक्तमाल कथा के तृतीय दिवस में कथा की शुरुआत में व्यास पीठ का पूजन लोकनिर्माण मंत्री पं गोपाल भार्गव ने धर्मपत्नी रेखा भार्गव के साथ किया। कथा मंच संचालन राजेंद्र जारौलिया ने किया।

संवाददाता गढ़ाकोटा 

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