हमारा इतिहास : मध्यप्रदेश के भुलक्कड़ मुख्यमंत्री

हमारा इतिहास : मध्यप्रदेश के भुलक्कड़ मुख्यमंत्री

काटजू के बारे में प्रसिद्ध है कि बड़ी उम्र के कारण उनको स्मृतिलोप हो जाना साधारण बात थी देखने और सुनने में तकलीफ थी सो अलग।  एक बार जब वे खंडवा गए तो तत्कालीन कलेक्टर सुशील चंद्र वर्मा उनकी गाड़ी चलाते हुए बुरहानपुर दौरा कराने के लिए ले गए।  बुरहानपुर रेस्ट हाउस में अधिकारियों से परिचय के समय कलेक्टर वर्मा मुख्यमंत्री से दूर बगल में खड़े थे जब सबसे परिचय हो गया तो काटजू ने बर्मा से मुखातिब होते हुए कहा महासय आपने अपना परिचय नहीं दिया वर्मा बगले झांकने लगे हो धीरे से कहा सर में कलेक्टर हूं और आपकी गाड़ी चलाते हुए मैं ही आया हूं काटजू हंस दिए।  ऐसा ही एक किस्सा छतरपुर सर्किट हाउस में हुआ वहां के स्थानीय विधायक एवं मंत्री दशरथ जैन जब एक प्रतिनिधिमंडल को लेकर अंदर गए तब परिचय की औपचारिकता होने लगी तो दशरथ जैन ने लोगों का परिचय कराया और अंत में डॉक्टर काटजू पूंछ बैठे और आप ,  इस पर दशरथ जैन ने कहा मैं दशरथ जैन डॉक्टर साहब , उस समय जो उत्तर मिला उससे ना केवल प्रतिनिधि मंडल के लोग वरुण दशरथ जैन स्वयं अवाक रह गए,  काटजू ने कहा एक दशरथ जैन तो हमारे मंत्रिमंडल में भी है  बेचारे दशरथ जैन आश्रय से बोले  में वही दशरथ जैन हूं इस पर काटजू ने कहा पहले क्यों नहीं बताया क्या मैं जानता नहीं ।

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एक बार देश के वित्त मंत्री मोरारजी देसाई भोपाल आए तो मंत्री मंडल के सभी सदस्य उनका स्वागत करने रेलवे स्टेशन पहुंचे तीसरे क्रम के मंत्री शंभूनाथ शुक्ला भी स्टेशन पर मौजूद थे और डॉक्टर काटजू ने उनका परिचय अपने एक मंत्री केशवलाल गुमास्ता के रूप में करवाया शुक्ल रोकते ही रह गए डॉक्टर काटजू ने एक न सुनी और देसाई को लेकर आगे बढ़ने लगे मोरार जी भाई शुक्ल के पुराने परिचित थे उन्होंने आंखों के इशारों से मुस्कुराते हुए शुक्ल की तरफ देखा और कहा कि चिंतित ना हो में आपसे अभी बातचीत करूंगा। जब काटजू को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने का उपक्रम चल रहा था तब तक राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले द्वारका प्रसाद मिश्र कांग्रेश के अंदर आ चुके थे मिश्र  ने घोषणा की कि डॉक्टर काटजू की प्रतिष्ठा को देखते हुए उन्हें आम सहमति से ही मुख्यमंत्री बनना चाहिए, क्योंकि तब तक विरोधी धड़ा देशलहरा के नेतृत्व में मुख्यमंत्री पद का दावा ठोक चुका था।  विधायक दल की बैठक में गुप्त मतदान में डॉक्टर काटजू को समझ में आ गया कि लोग उनके पक्ष में नहीं है और निर्विरोध चुना जाना संभव नहीं है इसलिए वह धीरे से दौड़ से बाहर हो गए।

देश लहरा को जूतों की माला

उन दिनों समूचे मध्यप्रदेश में कांग्रेस के दो धड़े प्रत्येक स्थान पर हो गए थे एक तो मूलचंद देश लहरा के साथ में लोग थे और दूसरे डॉक्टर कैलाश नाथ काटजू के एक  दिन की बात है जब मूलचंद देश लहरा सुबह कटनी से बिलासपुर आए तो रेलवे स्टेशन पर कांग्रेसी उनके स्वागत में भारी तादाद में मौजूद थे तभी काटजू समर्थक नर्मदा प्रसाद तिवारी ने भरी भीड़ के सामने मूलचंद देश लहरा को ट्रेन से उतरते ही जूतों की माला पहना दी इसके बाद देशलहरा ने जन कांग्रेश बनाई किंतु उसमें वे अपेक्षित चुनावी सफलता ना पा सके।

वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक
श्री दीपक तिवारी कि किताब “राजनीतिनामा मध्यप्रदेश” से साभार ।

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