विधानसभा चुनाव से पहले साप्ताहिक पत्रिका ” द वीक”, जिसमें मैं जनवरी 1998 से प्रदेश का संवाददाता हूँ, ने अपने चुनावी सर्वे में “भाजपा के लिए 165 से 195 और कांग्रेस के लिए 19 से 33 सीटें संभावित बतायी थीं। ” जब यह सर्वे प्रकाशित हुआ तब तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इसका मज़ाक उड़ाया । एक पत्रकार वार्ता में तो यहां तक कह दिया कि “जो लोग प्रदेश के बारे में जानते तक नहीं वे चुनावी भविष्यवाणी कर रहे हैं।” उनका इशारा ‘द वीक’ की तरफ था। चुनाव परिणाम आये तो भाजपा को 173 और कांग्रेस को 38 सीटें मिलीं। ‘द वीक’ की भविष्यवाणी सभी सर्वेक्षणों में सबसे सटीक थी। इस चुनाव में कांग्रेस का परम्परागत आदिवासी वोट बैंक गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ गया। इस नवोदित पार्टी को तीन सीटें मिली। सबसे आश्चर्यजनक परिणाम तो बालाघाट की परसवाड़ा सीट का था जो कि सामान्य थी और गोंडवाना पार्टी ने जीती।
गुरुवार के रोज़ जब चुनाव परिणाम आ रहे थे तब उमा भारती भोपाल में नहीं थीं। वे मैहर के मंदिर में बैठकर पूजा कर रही थीं। शाम को 5.30 बजे जब वे हैलीकॉप्टर से भोपाल के लाल परेड ग्राउण्ड पर उतरीं तो मानों हजारों की संख्या में उपस्थित बिन बुलाया जनसैलाब उनके स्वागत करने के लिए टूट पड़ा। हैलीकॉप्टर के पास ही उनका वह भाग्यशाली चुनावी रथ खड़ा था जिस पर उन्होंने पिछले एक साल प्रचार किया था। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि पुलिस की सारी व्यवस्थाएं टूट गई और उठाईगीरों ने लोगों की बहुमूल्य कलाई घड़ी, मोबाईल फोन और पर्सी पर खूब हाथ साफ किये। लाल परेड मैदान से पार्टी कार्यालय पहुँचने में उमा भारती को तीन घंटे लगे। उन दिनों उमा भारती के कार्यक्रमों में इतनी भीड़ होती थी कि पाकिटमारों की पौबारह रहती थी। उमा भारती के कारण मध्यप्रदेश की महिलाओं ने भाजपा को खूब वोट दिये। यह बात चुनाव के पहले कांग्रेस समझ रही थी इसलिए उसने भी अपनी तरफ से दो दर्जन महिलाओं को टिकट दिये। लेकिन उमा भारती की लहर में कांग्रेस के सभी मैनेजमेंट धरे रह गये।
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक
श्री दीपक तिवारी कि किताब “राजनीतिनामा मध्यप्रदेश” ( भाजपा युग ) से साभार ।
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