राहुल गांधी की तुलना राम से ?

राहुल गांधी की तुलना राम से ?

कांग्रेस के नेता सलमान खुर्शीद के बयान पर आजकल काफी लत्तम-धत्तम चल रही है। उन्होंने कह दिया कि जहाँ राम नहीं पहुँच सकते, वहाँ उनकी खड़ाऊ पहुंच जाएगी याने राहुल गांधी जहाँ-जहाँ नहीं पहुंच पाएंगे, वहाँ-वहाँ उनकी खड़ाऊ पहुंचाने की कोशिश की जाएगी। यह तो सबको पता है कि उन्होंने राहुल को राम नहीं कहा है। मैंने उनके वाक्यों को पढ़कर नहीं, सुनकर यह लिखा है लेकिन कुछ भाजपा नेताओं ने खुर्शीद को यह कहकर निंदा की है कि उन्होंने राहुल को राम बना दिया है।उन्होंने राहुल को राम नहीं बताया है बल्कि सिर्फ खड़ाऊ पर जोर दिया है। राहुल के जो फोटो अखबारों में छप रहे हैं और टीवी पर दिखाई पड़ रहे हैं, उनमें वे जूते पहने दिखाई पड़ रहे हैं तो फिर खुर्शीद के बयान का अर्थ क्या निकला? यही कि उन्होंने उपमा का इस्तेमाल किया है। क्या सलमान खुर्शीद जैसे पढ़े-लिखे नेता इतनी बड़ी गलती कर सकते हैं कि राहुल को राम बता दें? उन्होंने जूतों को भी खड़ाऊ नहीं बताया है। सिर्फ उपमा दी है। कांग्रेस के शीर्ष नेता, राहुल के प्रति कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्त्ताओं के दिल में आजकल बहुत सम्मान पैदा हो, यह स्वाभाविक है।

राहुल गांधी को ठंड क्यो नहीं लगती ?

उन्हें लग रहा है कि राहुल की इस लंबी यात्रा से अधमरी कांग्रेस में जान पड़ जाएगी, हालांकि ऐसा कुछ होता हुआ दिखाई नहीं पड़ रहा है। गुजरात और दिल्ली में कांग्रेस का सूंपड़ा साफ क्यों हुआ, इस यात्रा के दौरान? यदि अभी यह हाल है तो यात्रा के खत्म होने पर क्या होगा? लगभग सभी प्रांतों में कांग्रेस के स्थानीय नेताओं में दंगल आजकल तेजी पर हैं। उन-उन प्रदेशों में इन दंगलों को राहुल की यात्रा से ज्यादा प्रचार मिल रहा है।राहुल के कुछ विवादास्पद बयानों ने भी कांग्रेस और उनकी छवि को धक्का पहुंचाया है, हालांकि इस यात्रा के दौरान राहुल की भाषण-कला में काफी सुधार हुआ है। इसमें तो ज़रा भी शक नहीं है कि इस यात्रा के दौरान इस नौसिखिए नेता की बाप-कमाई में काफी हिस्सा आप-कमाई का भी जुड़ गया है लेकिन उससे कांग्रेस को कितना फायदा मिलेगा, यह कहना मुश्किल है।राहुल गांधी ने जैसी सड़क-यात्रा की है, वैसे ही वे दो-चार साल विचार-यात्रा करें तो वे निश्चय ही अच्छे नेता बनकर उभर सकते हैं। भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि हमारे ज्यादातर नेताओं के पास बी.ए.—एम.ए. की डिगरियां तो होती हैं लेकिन बौद्धिक दृष्टि से वे नर्सरी के छात्रों से थोड़े ही बेहतर होते हैं। राहुल गांधी कांग्रेस की डूबती नाव के खिवैया हैं। उनका चरित्र या आचरण निष्कलंक है। सिर्फ भाजपा और नरेंद्र मोदी को कोसने से उनकी यात्रा सफल नहीं होगी। यात्रा तो सफल तभी होगी जबकि देशोद्धार का कोई वैकल्पिक दर्शन प्रस्तुत किया जाए।

आलेख श्री वेद प्रताप वैदिक जी, वरिष्ठ पत्रकार ,नई दिल्ली।

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