स्वर्णिम युग की चुनौतियाँ और भाजपा के 42 साल…

स्वर्णिम युग की चुनौतियाँ और भाजपा के 42 साल…

आज दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी अपना 42 वां स्थापना दिवस मना रही है 1980 में शुरू हुई भारतीय जनता पार्टी की विकास यात्रा भारत जैंसे भिन्नता से भरे देश में किसी चमत्कार से कम नहीं है भाजपा अपने राजनैतिक केरियर में अब तक कई  कठिन पड़ावों को तय कर चुकी है  । भारतीय राजनीती में 6 अप्रैल 1980 को भाजपा के रूप में जनता पार्टी से अलग होकर एक ऐसे दल की नींव रखी गई जो भारतीय राजनीति में हिंदूत्व की राजनीति करने वाली पार्टी के रूप में जानी गई.  बीजेपी के पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी थे लेकिन भाजपा की मूल विचारधार सन 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्धारा स्थापित जनसंघ की ही थी या इसे तात्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों के कारंण जनसंघ का ही नया रूप कह सकते है। और प्रसिद्ध राजनैतिक जोड़ी श्यामा प्रसाद मुखर्जी , दीनदयाल उपाघ्याय की राजनैतिक एवं वैचारिक संकल्पना आज भी भाजपा का मूल मंत्र है । इस कार्य को आगे बढाने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान भाजपा की दूसरी प्रसिद्ध जोड़ी अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी का रहा । जहां अटल जी का ओजस्वी व्यक्तित्व और और प्रभावी भाषा शैली ने जनता को प्रभावित किया तो आडवाणी की कट्टर धार्मिक छवि और रथयात्रा जैसी हठधर्मिता ने भाजपा को देश में लोकप्रिय बनाया और कांग्रेस के स्थायी विकल्प के रूप में स्थान दिया । भाजपा अपने स्थापना के बाद शुरूआत के पहले दशक में कड़े संघर्ष के दौर से गुजरी जहां साधन और संसाधनों से हीन भारतीय जनता पार्टी को अपने चुनाव चिन्ह कमल का फूल को देश भर में ताकतवर कांग्रेस और हांथ के पंजे के विकल्प के रूप में दिखाना था बीजेपी को चुनाव मैदान में उतरने का मौका 1984 में मिला हालांकि अपने पहले चुनाव में बीजेपी को कोई खास सफलता नहीं मिली। इसके महज दो सांसद ही जीतकर संसद में पहुंचे थे। लेकिन भाजपा ने देश में खासकर युवाओं में राजनीति के प्रति गहरी रूचि पैदा कर दी थी जो विचारात्मक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण सफलता थी । इसका उदाहरण भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा में देखने को मिलता है जिसमें बड़ी संख्या में युवाओं की भागीदारी रही और इस यात्रा ने भारतीय राजनीति को बदलने में मुख्य भूमिका तो निभाते हुए भाजपा को भी सत्ता प्राप्ति का वह फार्मूला बता दिया जिससे भारत पर राज किया जा सकता है और जो समय के साथ साथ प्रबल ही होगा तभी भाजपा एक हिंदूवादी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई परिणामस्वरूप 1989 में बीजेपी दो से 89 सीटों तक का सफर तय कर चुकी थी। देश की राजनैतिक सोच और चुनाव प्रक्रिया में ध्रुवीकरण का असर साफ दिखने लगा था । 6 दिसंबरए 1992 को अयोध्या में बाबरी ढांचा गिरा दिया गया। ढांचा तोड़ने का आरोप बीजेपी के कई बड़े नेताओं पर लगाए बीजेपी के तीन राज्यो की सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया। लेकिन देश के सामने भाजपा एकमात्र हिंदुवादी पार्टी के रूप में प्रत्यक्ष प्रगट थी जिसका असर सन 1996 के लोकसभा चुनावों में दिखा जिसमें भाजपा सबसे बड़ी सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी थी। 13 दिन और 13 महीने सरकार चलाने के कटु अनुभवों के बाद 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक बार फिर लोकसभा का चुनाव भाजपा ने लड़ा और भाजपा के182 सांसद जीते थे। अटल जी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनें लेकिन इस बार अपना कार्यकाल उन्होंने पूरा किया।
अटल जी के कार्यकाल को देखते हुए भाजपा अति आत्मविश्वास में समय से पहले ही चुनावी मैदान में इंडिया साइनिंग जैसे नारों के साथ आई लेकिन 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सरकार बनाने वाला जनादेश नहीं मिला। वह विपक्ष में बैठी। अटल बिहारी वाजपेयी अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर राजनीति से सन्यास ले चुके थे।2009 में आडवाणी के नेतृत्व में चुनाव में जाने का ऐलान कर चुके थे। भाजपा इस दौर में अंर्तद्धद के व्यापक प्रभाव से गुजर रही थी और 2009 की असफलता के बाद 2014 आते.आते बीजेपी में चेहरा बदलने की मांग जोर पकड़ चुकी थी। और तभी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ भाजपा युग की तीसरी जोड़ी की शुरूवात हुई और कट्टर हिंदुत्ववादी वियारधार के सर्मथक माने जाने वाले नरेंद्र मोदी को आडवाणी की इच्छा के विरूद्ध सन 2014 के आमचुनावों में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया ।
चुनावों से पहले देश में भ्रष्टाचार विरोधी माहौल को जबरदस्त हवा दी गई राजधानी दिल्ली में अन्ना हजारे आंदोलन, सरकार पर कई लाख करोड़ के घोटाले के आरोप, और प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी के अच्छे दिनों के दिव्य स्वप्न में मोहित जनता ने भाजपा को 282 सीटों के साथ सरकार बनाई नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनें।
यहां से भाजपा का वह दौर शुरू हुआ जिसकी कल्पना कोई भी राजनैतिक दल अपनी स्थापना के बाद करता है । 2019 के बाद  संपूर्ण देश में प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर ही भाजपा पार्षद से लेकर सांसद तक का चुनाव लड़ती आई है और जनता ने  प्रत्याशी को न देखते हुए मोदी के नाम पर ही भाजपा पर विश्वास जताया । 2019 में तमाम राजनैतिक आंकलनों और अटकलों के बीच भाजपा ने राष्ट्रवाद के अचूक अस्त्र के सहारे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक बार फिर केंद्र में सरकार बनाई और कांग्रेस मुक्त भारत का नारा भी कुछ हद तक साकार कर दिखाया कांग्रेस देश के विभिन्न राज्यों से सिमटती गई और भाजपा धीरे धीरे राज्यों की सरकारें भी बनाती गई। आज 42 साल की इस यात्रा में बीजेपी सबसे ताकतवर राजनीतिक दल के रूप में उभर चुकी है। और प्रखर  राष्ट्रवाद और विशुद्ध हिंदुत्व के सहारे भाजप की विजयी यात्रा न सिर्फ जारी है बल्कि अब उन दक्षिण के प्रदेशों  प्रांतो में भी भाजपा का अस्तित्वा  और पहुँच है जहाँ लम्बे अरसे से क्षेत्रीय पार्टियों का राजनैतिक कब्ज़ा रहा है।
और इन्ही उपलब्धियों के साथ भाजपा के समक्ष भी उन्ही समस्याओं की चुनौती है जो एक समय कांग्रेस के सामने आयीं लेकिन अपने उत्कर्ष काल में कांग्रेस ने उन्हे अनदेखा किया । भाजपा भी आज वंशवाद, परिवारवाद, जैंसी समस्याओं के साथ साथ अस्वाभिक विस्तारवाद की समस्या से भी ग्रस्त है । शुरूवात में संसाधनों से हीन नेतृत्व ने जिस प्रकार निःस्वार्थ भाव से एक विचारधारा के लिये गांव-गांव और पांव-पांव जाकर पार्टी का विस्तार किया वह भाजपा का सबसे कठिन दौर था और पहली पीढि के नेताओं ने इसमें अपना सर्वस्य न्योछावर किया । भाजपा में दूसरी पारी की शुरूवात सन 1992 से मानी जा सकती है जब देश में बदलते हालातों ने एक बड़े वर्ग को भाजपा के प्रति आर्कषित किया और उन्होने कठिन संघर्ष के साथ साथ सत्ता का सुखद आनंद भी उठाया परंतु वर्तमान में भाजपा की तीसरी पीढि मे जहां भाजपा को चुनावी सफलता की गारंटी के रूप में देखा जा रहा है भाजपा से जुड़कर राजनीति करने वाले युवाओं में उन मूलमंत्रो का पूर्णतः आभाव है जिनकी नीव पर यह बुलंद इमारत तैयार हुई है कार्यकर्ता सिर्फ राजनैतिक धौस और पद प्रतिष्ठा पैसे के लालच में भाजपा से जुड़ते है । संघर्ष काल में भाजपा की नैया थामें कई दिग्गज दो ढाई दशको के एश्वर्य भोगने के बाद भी आने वाली पीढ़ी के लिये स्थान रिक्त नहीं करना चाहते पार्टी की विचारधारा को आगे बढाने के लिये नयी पीढ़ी के नेतृत्व को तैयार करना तो दूर वो क्षेत्र में किसी नेतृत्व को उभरने तक का मौका नही देना चाहते । अपने क्षेत्रवाद को लोकतांत्रिक प्रक्रिया का चोला पहनाकर परिवारवार और वंशवाद का राजतंत्र चलाना चाहते हैं ।
हालाकि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी इस बात से भलिभांति परिचित है । और यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले विधानसभा चुनावों के समय खुलकर इस बात के संकेत दिये थे कि भाजपा में वंशवाद और परिवारवाद को स्थान नहीं है । इसके अतिरिक्त भाजपा में एक निश्चित उम्र के बाद राजनैतिक सन्यास की व्यवस्था भी अगली पीढ़ी को नेतृत्व के हस्तांतरण में महत्वपूर्ण प्रक्रिया है । अब देखना यह होगा कि वैचारिक दृष्टि से संकल्पित इन विचारों को भाजपा सियासी नफा नुकसान के धरातल पर किस हद तक लागू कर पाती है और उन गलतियों से कितना सबक लेती है जिसके कारण देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की आज यह दुर्दशा है।

अभिषेक तिवारी  

संपादक भारतभवः . कॉम 

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