क्यों किसी को सुने तत्काल सुप्रीम कोर्ट ?

क्यों किसी को सुने तत्काल सुप्रीम कोर्ट ?

दुनिया में हर कोई चमड़े का सिक्का चलाना चाहता है ,फिर चाहे वो कोई राष्ट्रपति हो, प्रधानमंत्री हो या अतीत का कोई सम्राट,कोई तुगलक या कोई और। सब जानते हैं कि ‘ जिंदगी न मिलेगी दुबारा ‘। देश के मुख्यन्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने भी सुप्रीम कोर्ट में तत्काल सुनवाई की आदिकालीन व्यवस्था पर रोक लगकर यही सब किया है । उन्होंने किसानों के मुद्दे को भी तत्काल सुनने से इंकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से असंख्य लोग निराश होंगे । मै भी इन्हीं में से एक हूँ।सुप्रीम कोर्ट हर तरह से सुप्रीम है । मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा कुछ मामलों की तत्काल सुनवाई पर लगाईं रोक से पहले सुप्रीम कोर्ट ने अनेक मामलों को तत्काल सुना है। कोर्ट आधीरात को भी खुला है और अवकाश के दिनों में भी । लेकिन ये सब मुख्य न्यायाधीश के पद पर आसीन व्यक्ति के ऊपर निर्भर रहता है कि वो किस तरह की व्यवस्था से न्याय का रास्ता प्रशस्त करे। तत्काल सुनवाई को लेकर मत भिन्नता हो सकती है। अपवादों को छोड़कर साम्य तौर पर सुप्रीम कोर्ट में तत्काल सुनवाई नहीं होना चाहिए क्योंकि माननीय सुप्रीम कोर्ट में लाखों मामले हैं जो कम से कम पांच साल से लंबित है। पहले इन्हें सुना जाना चाहिए ,लेकिन देश में कभी-कभी ऐसे मुद्दे और मामले भी आते हैं जब उन पर तत्काल सुनवाई और फैसले जरूरी माने जाते हैं। लेकिन अब ये रास्ता फिलहाल बंद कर दिया गया है।
                          सुप्रीम कोर्ट इस मामले में समदृष्टि रखता है। उसने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मामले को भी तत्काल सुनने से इंकार किया था और अब किसानों के आंदोलन को देखते हुए किसानों के मामले में भी तत्काल सुनवाई से इंकार कर दिया है। अपने अधिकारों के लिए पिछले चार साल से आंदोलनरत किसान कोई 700 किसानों की बलि दे चुके हैं किन्तु उनके मामले को सुप्रीम कोर्ट यदि तत्काल सुनवाई के लायक नहीं समझता तो ये किसानों का दुर्भाग्य है ,सुप्रीम कोर्ट का नहीं। देश में किसी किसान का बेटा शायद अब तक मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी तक नहीं पहुंचा है अन्यथा उनके मामले को तत्काल सुनने से इंकार नहीं किया जाता। इस सर्वोच्च पद पर पहुँचने के लिए भी विरासत चलती है । आपके पिता,चाचा या और कोई रिश्तेदार यदि न्यायिक सेवा में रहे हैं तभी आपको यहां तक पहुँचने का रास्ता मिलता है।आपको बता दें कि जिस तरह से दुनिया में हमारा लोकतंत्र सबसे पुराना है उसी तरह हमारी सर्वोच्च अदालत भी दूसरे देशों की अदालतों के मुकाबले सर्वशक्तिमान है। इसके पीछे कई कारण हैं.भारत की 73 साल पुरानी अदालत कार्यकारी अधिनियमों, संसदीय क़ानूनों और संविधान में संशोधन को रद्द कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट के कोई तीन दर्जन न्यायाधीश लगभग 70 हज़ार अपीलों और याचिकाओं का भार संभालते हैं और हर साल लगभग एक हज़ार फ़ैसले देते हैं। एक पुराना आंकड़ा है कि नवंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट में 40 फ़ीसदी मामले पाँच साल से अधिक समय से लंबित थे, जबकि आठ फ़ीसदी दूसरे अन्य मामले 10 साल से अधिक समय से लंबित थे. साल 2004 में पाँच साल से अधिक समय से लंबित मामले सात फ़ीसदी थे । मामलों को ट्रायल कोर्ट में शुरू होने से लेकर सुप्रीम कोर्ट के निपटारे तक औसतन लगभग 13 साल और छह महीने लग गए. इस दौरान शीर्ष अदालत की कार्यवाही में कुल समय का एक तिहाई समय लगा जो न्यायपालिका के प्रत्येक स्तर पर औसत अवधि के समान समय है।
बहरहाल बात किसानों की है ।
                       किसानों के मामले पर तत्काल सुनवाई से इंकार करने से किसान भले ही विचलित हों लेकिन केंद्र सरकार ने तो सचमुच राहत महसूस की होगी। माननीय अदालत ने कहा है की उसके पास पहले से किसानों कि मामले में जनहित याचकाएँ लंबित हैं। इसलिए किसी नई याचिका पर तत्काल कोई सुनवाई नहीं हो सकती। इस मामले में सीजीआई के निर्णय पर कोई किन्तु-परन्तु नहीं कह सकता । कोई सबसे बड़ी अदालत के सबसे बड़े न्यायधीश से स्पष्टीकरण नहीं मांग सकता। कोई उनके फैसले के खिलाफ कहीं जाकर अपील नहीं कर सकता। किसान हों या केजरीवाल ,अदालत को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे तो एक नयी लकीर खींचना है । एक नयी नजीर बनाना है। सुप्रीम कोर्ट अपना काम कर रही है। किसान अपना काम करें। कोई किसी को रोक तो नहीं रहा। सरकार भी अपना काम कर ही रही है । भले ही आज की सरकार बैशाखियों पर चलने वाली सरकार है ।सुप्रीम कोर्ट में वकील अब किसी मामले की तत्काल लिस्टिंग और सुनवाई मौखिक नहीं करा सकते । सीजेआई संजीव खन्ना ने निर्देश दिए हैं कि वकीलों को इसके लिए ईमेल या लिखित आवेदन देना होगा। दरअसल, खन्ना साहब ने ये सब ‘ ज्यूडिशियल रिफोर्म ‘ के लिए ‘सिटिजन सेंट्रिक एजेंडे ] की रूपरेखा के तहत किया है। सीजेआई के फैसले से किसान ही नहीं सुप्रीम कोर्ट के वकील भी चकित हैं ,क्योंकि उनका धंधा भी तो इस फैसले से प्रभावित हुआ है। जस्टिस संजीव खन्ना ने 11 नवंबर को देश के 51वें चीफ जस्टिस की शपथ ली थी। राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई थी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को रिटायर्ड हो चुके हैं।सीजेआई संजीव खन्ना के तत्काल सुनवाई के मामले में दिए गाये निर्देशों पर अभी फिलहाल 13 मई 2025 तक तो पुनर्विचार नहीं हो सकता । अब जो भी होगा खन्ना साहब के सेवानिवृत्त होने के बाद होगा। तब तक किसान हों या केजरीवाल को इन्तजार करना होगा तत्काल सुनवाई के मामले मे। यदि कोई वकील माननीय सुप्रीम कोर्ट को लिखित में संतुष्ट करा दे तो अदालत तत्काल सुनवाई कार भी सकती है ,लेकिन ये आसान काम नहीं है।सीजेआई संजीव खन्ना साहब के इस निर्णय से प्रभावित होने वाले कुछ भी सोचने के लिए स्वतंत्र है। वे इस फैसले को जन विरोधी भी बता सकते है। उसका समर्थन भी कर सकते है। मौन भी रह सकते हैं। अदालत शायद इसका बुरा नहीं मानेगी और तत्काल इसे अवमानना का मामला भी नहीं मानेगी। वैसे आपको याद रखना चाहिए की हमारे देश का सर्वोच्च न्यायालय किसानों के मामले में सरकार को और सरकार के मामले में किसानों को भी लताड़ चुका है।
@ राकेश अचल
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