दाढ़ी निरपेक्ष भारतीय राजनीति…

दाढ़ी निरपेक्ष भारतीय राजनीति…

भारतीय जनमानस में दाढ़ी को लेकर अजीब मान्यताएं हैं। मुहावरे हैं, कहावतें हैं। दाढ़ी पुरुष प्रधान समाज में पहचान भी है और विशेषण भी।संज्ञा, सर्वनाम, और क्रिया भी। दुनिया के हर हिस्से में दाढ़ी रखने, पालने,पोषने की रिवायतें हैं। लेकिन मैं अपनी बात भारत तक ही सीमित रखना चाहता हूं। भारतीय राजनीति,दर्शन और अर्थ शास्त्र में ही नहीं अपितु जीवन के सर क्षेत्र में काम करने वाले असंख्य महापुरुष हुए हैं। आजादी से पहले भी और आजादी के बाद भी। लेकिन भारतीय राजनीति में दाढ़ी अनिवार्य नहीं मानी गई। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नायकों में से अधिकांश ने बिना दाढ़ी के अपनी पहचान बनाई। महात्मा गांधी से लेकर जवाहरलाल नेहरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस,राम मनोहर लोहिया, वामपंथी नंबूदरीपाद भी बिना दाढ़ी के हमारे हीरो रहे हैं। कलिकाल में लोग अगर चेहरे पर दाढ़ी नहीं उगा पाते तो उनकी दाढ़ियां पेट में उग आती है। ऐसे लोगों को बेहद उलझन वाला माना जाता है। मेरे जैसे अनेक मालूम और नामालूम लोग दाढी नहीं रखते। कुछ के साथ अनुसार दाढ़ी घनी न आए तो दाढ़ी रखना ही नहीं चाहिए। कुछ मानते हैं कि दाढ़ी में तिनके फंस जाते हैं।ये समस्या चोर्यकर्म करने वालों को अक्सर आती है ।

मेरी अपनी मान्यता है कि दाढ़ी वसुधैव कुटुंबकम् की असली पहचान है। दुनिया का कोई भी धर्म हो उसने दाढ़ी को मान्यता दी है।दाढी दुनिया की हर व्यवस्था,हर वाद से ऊपर है। दाढ़ी पुरुषों को ही नहीं महिलाओं को दीवाना बनाती है। हीरो हीरालाल की दाढ़ी जैसे पति हर युवती की पहली पसंद हैं, क्योंकि पुरुष की जेब और दाढ़ी में उंगलियां घुमाने का जो मजा है,वो और कहीं नहीं है। भारत में वापस आइए। हमारे नेता भी दाढ़ी के खिलाफ कभी नहीं रहे। दक्षिणपंथी हों या वामपंथी, समाजवादी हों या झाडूवादी सब दाढ़ी पर लट्टू हैं।भारत में पहले दाढ़ी वाले प्रधानमंत्री होने का गौरव इंद्रकुमार गुजराल को है।वे फ्रेंच कट दाढ़ी रखते थे। फ़्रेंच कट दाढी को लोकभाषा में तुक्की कहा जाता है। चंद्रशेखर की दाढ़ी खिचड़ी दाढ़ी कहीं जाती थी। दर असल दाढ़ी रखना,पालना,पोषना एक कला है,हुनर है,फन में है। कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर की दाढ़ी आपने तस्वीरों में देखी होगी!कितनी लंबी और सलौनी होती थी। आसाराम बापू हों या राम-रहीम सबके सब दाढ़ी के दीवाने रहे।इन दाढ़ी वालों को शायद दाढ़ी की वजह से ही जेलों में सड़ना पड़ रहा है।

बहरहाल हमारे मौजूदा प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भी दाढ़ी के अखंड प्रेमी हैं। मोदी जी की दाढ़ी देशकाल, परिस्थिति के हिसाब से घटती, बढ़ती रहती है।जब बंगाल में चुनाव होता है तो वे कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसी दाढ़ी रखते हैं।जब गुजरात में चुनाव होता है तो उनकी दाढ़ी अपने जमाने के मशहूर अभिनेता अजीत जैसी हो जाती है। आजकल भारत जोड़ो यात्रा पर निकले राहुल गांधी की दाढ़ी भी तेजी से बढ़ रही है।उनकी बढ़ती दाढ़ी और लोकप्रियता सत्तापक्ष की सबसे बड़ी फ़िक्र है। राहुल दाढ़ी में आस्ट्रेलिया के किसी दार्शनिक जैसे लगते हैं। जैसे -जैसे राहुल की यात्रा आगे बढ़ रही है वैसे -वैसे उनकी दाढ़ी भी बढ़ रही है।कभी -कभी लगता है कि राहुल गांधी का मुकाबला मोदी जी से नहीं बल्कि दाढ़ी से है। मेरी अपनी मान्यता है कि राजनीति में बिन दाढ़ी सब सून है। दाढ़ी नहीं तो कुछ नहीं। दाढ़ी अर्थव्यवस्था सुधारने में मदद करती है।अगर पूरे देश के युवा ठान लें कि वे दाढ़ी रखेंगे तो सोचिए ब्लेड, सेविंग क्रीम, आफ्टर शेव, और पानी की कितनी बचत होगी ? बिना दाढ़ी के संत लगने वाले राहुल गांधी भी भाजपा को पप्पू दिखाई देने लगते हैं। भले ही वे पप्पू हों या न हों। भगवान की कृपा है,महती कृपा है कि उन्होंने दाढ़ी केवल पुरुषों को मुहैया कराई, यदि महिलाओं को भी ये सुविधा मिली होती तो कल्पना कीजिए क्या होता ?

भगवान की गलती से दुनिया में कुछ महिलाओं को दाढ़ी गिफ्ट में मिली भी लेकिन वे इससे खुश नहीं हैं, क्योंकि दुनिया में कोई भी इनसान दाढी वाली महिला से इश्क नहीं करता। जिस महिला को भगवान की गलती से दाढ़ी मिली है वो हर वक्त एक ही प्रार्थना करती है कि’अगले जनम मोहे दाढ़ी न दीजो ‘। दाढ़ी की बढ़ती लोकप्रियता के चलते जैसे गंजों के लिए विग का अरबों का बाजार है, वैसे ही अब नकली दाढ़ी का बाजार भी आकार ले रहा है। अगर आपके चेहरे पर प्राकृतिक दाढ़ी नहीं आती तो चिंता न कीजिए,नकली दाढ़ी लगा लीजिए। ध्यान रखिए कि नकली दाढ़ी का इंश्योरेंस बहुत जरूरी है। दुश्मन सबसे पहले दाढ़ी पर ही हमला करता है। हकीकत ये है कि मै ही नहीं,मेरा बेटा भी दाढ़ी का मुरीद हैं।मेरी दाढ़ी सघन नहीं आती इसलिए मैंने कभी दाढ़ी का रोग पाला ही नहीं, लेकिन मेरे बेटे के पास भव्य, दिव्य एडजस्टेबल दाढ़ी है। मुझे बेटे के साथ उसकी खूबसूरत दाढ़ी पर भी गर्व है। बावजूद इसके कि मैं गांधीवादी हूं मैं दाढीवाद के खिलाफ कभी नहीं जाता।मेरा एक ही निवेदन है कि जनता अपने भविष्य का फैसला दाढ़ियां देखकर न करे। दाढ़ियां अक्सर किस्मत की तरह धोखा दे जाती हैं। इसलिए सावधान! दाढ़ियों से सावधान!!

 

व्यक्तिगत विचार आलेख-

श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार , मध्यप्रदेश  ।

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