हमारा इतिहास : आदिवासी जा रहा था नहाने और बन गया सांसद

हमारा इतिहास : आदिवासी जा रहा था नहाने और बन गया सांसद

उन दिनों चुनावी राजनीति को आम जनता बहुत ज्यादा समझती नहीं थी आदिवासी इलाकों में मुश्किल तब आती थी जब दलों को उम्मीदवार नहीं मिलते थे . बस्तर हमेशा की तरह उस समय में बहुत पीछे था पहले लोकसभा चुनाव के लिए वहां कांग्रेस पार्टी के लिए कोई उम्मीदवार नहीं मिल रहा था बस्तर के प्रख्यात पत्रकार डॉक्टर के के झा बताते हैं कि 1952 में लोकसभा चुनाव के पहले का वक्त था राजमहल के अहाते  मैं राजगुरु विद्या नाथ ठाकुर व उनके सहयोगियों में प्रत्याशी चयन को लेकर चर्चा चल रही थी राजगुरु बस्तर में प्रत्याशी चयन को लेकर चिंतित थे इसी दौरान वहां से होकर एक आदिवासियों का झुंड दलपत सागर में नहाने जा रहा था भीड़ में तगड़े शरीर और कान में बाली पहने हुए एक युवक कुछ अलग सा नजर आ रहा था। राजगुरु की नजर उस पर पड़ी तो उन्होंने अपने सहयोगियों को से बुलाने भेजा राजा के आदमी को पास आते देख आदिवासी कुछ खबर आ गया पर जब आदिवासी जिसका नाम मुचाकी कोसा था को नागपुर जाने की बात बताई गई तो वह रुक गया कुछ देर बाद जब उसे एक कागज पर हस्ताक्षर करने को कहा गया तो वह बिल्कुल बिफर गया था

अंततः मुचाकी को राजा के समक्ष पेश किया गया और उसे नहाने का आदेश दिया गया दलपत सागर में नहाने के बाद आदिवासी तैयार हो गया और राजा वीरभद्र के आदेश पर नागपुर चला गया नागपुर जाना उसके जीवन को बदलने की बड़ी घटना थी वहां पर उसे बस्तर से कांग्रेस का उम्मीदवार घोषित किया गया और वह चुनाव जीतकर सांसद बन गया दिल्ली में जब संसद में शपथ लेने की बारी आई तब मचाकी कोसा ना हिंदी जानता था ना अंग्रेजी बस्तर भाषा संसद में किसी को मालूम नहीं थी कहते हैं तब स्वयं जवाहरलाल नेहरू ने मुचाकी कोशा के शपथ पत्र पर हस्ताक्षर किए थे वह केवल अंगूठा लगाना जानता था।

 

डाक्टर वकील नहीं बनना चाहते थे मंत्री

कहा जाता है कि सन् 1950 में जब मध्य भारत बना तब वहां के नरेश जो कि राज्य प्रमुख कहलाते थे उनको अपना मंत्रिमंडल बनाने में बड़ी समस्या हुई क्योंकि अच्छी प्रैक्टिस वाले डॉक्टर और वकील मंत्री नहीं बनना चाहते थे तख्तमल जैन जो कि विदिशा के मशहूर वकील थे बड़ी मुश्किल से मंत्रिमंडल में आने को राजी हुए और बाद में मध्य भारत के प्रधानमंत्री भी बने मध्य प्रदेश में विलीनीकरण के समय विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शंभूनाथ शुक्ल थे शुक्ल बड़े साहित्य प्रेमी थे और रामचरितमानस के प्रकांड विद्वान भी शुक्ल अपनी साहित्यिक समझ और ज्ञान के कारण समकालीन राजनीतिज्ञों में चर्चा का विषय रहते थे और वे एक मासिक पत्रिका तुलसीदल भी निकालते थे उनकी बातचीत सुनने के लिए लोग लालायित रहते थे क्योंकि 10 मिनट के वार्तालाप में पांच चौपाइयों का संदर्भ ले आना उनके लिए सामान्य सी बात थी। क्रमश:

वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक
श्री दीपक तिवारी कि किताब “राजनीतिनामा मध्यप्रदेश” से साभार ।
Share this...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *