खतरा सनातन को या भाजपा की ठेकेदारी को ?

खतरा सनातन को या भाजपा की ठेकेदारी को ?

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे उदयनिधि के एक बयान से देश की राजनीति में भूचाल आ गया है । भूचाल आया नहीं है ,उसे लाया गया है । उदयनिधि ने सनातन विरोधियों की एक सभा में सनातन धर्म को समूल नष्ट करने का आव्हान किया और धर्मध्वजा लेकर राजनीति करने वाली भाजपा तमाम मुद्दों को छोड़कर सनातन धर्म की रक्षा का नारा देकर चुनाव मैदान में कूंद पड़ी। भाजपा अब उदयनिधि के बहाने विपक्ष के नए संगठन आईएनडीआईए पर हमलावर है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर ब्लाक अध्यक्ष तक ‘ सनातन बचाओ ‘ का घोष करते दिखाई दे रहे हैं। सनातन धर्म को समूल नष्ट करने वाले उदयनिधि धर्म के बारे में कितना जानते हैं ये मुझे मालूम नहीं है ,किन्तु मुझे इतना पता है कि वे 46 साल के फिल्म निर्माता,अभिनेता और नेता है। उन्हें उनके पिता ने राज्य सरकार में मंत्री भी बना रखा है। वे जिस राजनीतिक विरासत के संवाहक हैं उसका धर्म भाजपा को भली भांति मालूम है क्योंकि 1999 से 2004 तक उदयनिधि की पार्टी भाजपा के साथ सियासत कर चुकी है। उदयनिधि तब भी सनातनी नहीं थे और आज भी नहीं है। उनका धर्म तब भी अलग था और अब भी अलग है।
                                            दरअसल उदयनिधि सनातन को हिन्दू धर्म समझ बैठे और उन्होंने एक नासमझी भरा बयान दे दिया। जाती तौर पर मै उदयनिधि या उन जैसे तमाम लोगों के बयानों को तवज्जो नहीं देता जो धर्म के आधार पर सियासत करने की कोशिश करते है। ऐसे लोगों में चाहे उदयनिधि हों या अमित शाह। देश का कोई भी सियासी दल किसी भी धर्म का ठेकेदार नहीं है और न हो सकता है । जिस दल ने भी धर्म की ठेकदारी की है या कर रहा है वो जनता की आँखों में धूल झोंककर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहा है । भाजपा का जन्म ऐसी ही धार्मिक सियासी रोटियां सेंकने के उद्देश्य से हुआ है। उदयनिधि सनातन [हिन्दू] धर्म का विरोध कर तमिलनाडु में अपने लिए सियासी रोटियां सेंक रहे हैं और भाजपा वाले पूरे देश में।किसी भी धर्म को मानना या समर्थन करना निजी मामला है। इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाने वाले लोग ही उदयनिधि के गैर जरूरी बयान को ‘ लत्ते का सांप ‘ बनाकर पूरे देश के हिन्दुओं को भयभीत करने की कोशिश कर रहे हैं। उदयनिधि यदि कोई मूर्खता करते हैं तो उसके पीछे हो-होकर हंगामा करने वाले भी कौन सी समझदारी कर रहे हैं ? सनातन धर्म की ठेकदार बनी भाजपा को क्या नहीं मालूम कि सनातन धर्म सचमुच सनातन है और उसे पिछले हजारों साल में कोई समूल नष्ट नहीं कर पाया। तब भी ,जब कि भाजपा नहीं थी और अब भी, जबकि भाजपा ह। सनातन धर्म पूरी तरह सुरक्षित है । उसकी रक्षा की लिए किसी भी सियासी दल इस देश को नहीं चाहिए।मुद्दों की मामले में लगातार दीवालिया हो चुकी भाजपा को पांच राज्यों की चुनावों में जनता का सामना करने की लिए धर्म की अलावा कोई मुद्दा बचा नहीं है । भाजपा पूरी बेशर्मी की साथ उन राज्यों में जो सूखे की शिकार हैं वातानुकूलित रथों पर सवार होकर जन-आशीर्वाद यात्राएं निकाल रही ह। दाने-दाने को मोहताज किसानों को भाजपा सनातन धर्म खतरे में है कहकर ध्रुवीकृत करने की कोसजिश कर रही है। किसी भाजपाई की अक्ल में नहीं आया कि वो सूखा पीड़ित राज्यों में जन आशीर्वाद यात्राएं निकालना स्थगित कर इन पर होने वाला खर्च किसानों में राहत की तौर पर तकसीम कर दे।उदयनिधि भाजपा की लिए तारणहार बनकर प्रकट हुए हैं। उदयनिधि ने सनातन धर्म को समूल नष्ट करने की बात कहकर कोई तीर नहीं मारा है । इस देश में बहुत से लोग और समाज हैं जो खुद को सनातनी और हिन्दू नहीं मानते । वे अतीत में ऐसा करते रहे हैं। सनातन का विरोध करने भर से सनातन को खतरा नहीं होता । हमारा लोकतंत्र इस बात की इजाजत देता है की विधर्मी भी यहां रहकर अपनने धर्म की बात कर सकते है। लेकिन भाजपा को खतरा होता है ऐसे नेताओं,दलों की आईएनडीआईए में शामिल होने से। भाजपा को उदयनिधि की बयान के बहाने पूरे विपक्षी गठबंधन पर हमला करने का मौक़ा मिल गया है। भाजपा पूरी ताकत से इस मौके को भुनाना चाहती है क्योंकि होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा की तम्बू उखड़ते दिखाई दे रहे हैं।
                                             हम जिस देश में रहते हैं उस देश में सनातन को समझने और मानने वाले लोग भाजपा की सदस्य संख्या से भी ज्यादा है। इस देश में धार्मिक नेताओं की भी कोई कमी नहीं है । वे चाहें तो उदयनिधि की बयान पर बिदक सकते है। उदयनिधि को भला-बुरा काह सकते हैं। लेकिन कोई भी सनातनी इस बयान की लिए उदयनिधि की खिलाफ कोई फतवा जारी करने की बचकानी हारकात नहीं कर सकता ,क्योंकि सब जानते हैं की केवल गाल बजाने से कोई धर्म न खत्म होता है और न उसकी स्थापना होती है। दयानिधि अपनी राजनीति कर रहे है। वे कोई राष्ट्रीय नेता नहीं हैं । उनका दल भी कोई राष्ट्रीय दल नहीं है। किन्तु भाजपा राष्ट्रीय दल भी है और सत्तारूढ़ दल भी। उसके नेता भी राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हैं। उन्हें कम से कम उदयनिधि की बचकाने बयान को लेकर पूरे देश में बितण्डावात खड़ा करने की कोशिश नहीं करना चाहिए।एनडीए और आईएनडीआईए की लड़ाई राजनीतिक है और उसे राजनीतक आधार पर ,राजनीतिक मुद्दों की साथ लड़ा जाना चाहिए। धर्म की ओट लेकर यदि ये लड़ाई लड़ी जाएगी तो इससे धर्म का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन देश का सामाजिक तानाबाना जरूर कमजोर होगा। धार्मिक लड़ाइयां लड़ना है तो फिर सियासत करना छोड़ दीजिये। बन जाइये महामंडलेश्वर,शंकराचार्यादि आदि। खोल लीजिये जगह -जगह मठ। छोड़ दीजिये सत्ता और रथ। पहन लीजिये भगवा अंग-वस्त्र ,किसने रोका है। आज ये तय करने की जरूरत है कि देश में मुद्दों की राजनीति हो या धर्म की ? देश के विकास की लिए स्कूल,अस्पताल ,प्रयोगशालाएं उद्योग बनाये जाएँ या जगह-जगह देवी -देवताओं की नाम पर लोक ? प्राथमिकताएं तय कर लीजिये पहले।
                                             उदयनिधि के सनातन विरोधी बयान की मै निंदा करता हूँ ,क्योंकि उससे जन भावनाएं आहत होती हैं लेकिन जो समझदार हैं वे समझते हैं कि उदयनिधि जैसे करोड़ों उदयनिधि भी किसी धर्म का बाल बांका भी नहीं कर सकते। इसलिए न ऐसे लोगों को गंभीरता से लेने की जरूरत है । भाजपा ने खामखां उदयनिधि जैसे एक अनाड़ी को देश की सियासत का खिलाड़ी बना दिया। भाजपा जितनी गंभीर और आक्रामक उदयनिधि के एक कागजी बयान को लेकर आज है उतनी मणिपुर में मानवता के तार-तार होने पर नहीं थी । तब भाजपा ने मौन साध रखा था,क्योंकि तब दुसरे धर्म के पूजाघर जलाये जा रहे थे। सनातन धर्म को वहां कोई खतरे में नहीं था। मनुष्यता को खतरा धर्म पर खतरे से बड़ा है क्या ? जब मनुष्य ही नहीं होगा तब धर्म ध्वजा कौन उठाएगा ? संसद के विशेष सत्र में भी ये मुद्दा भाजपा का एक हथियार होगा ये तय मान लीजिए ।मुझे उम्मीद है कि उदयनिधि के पिता स्टालिन अपने बेटे को राजधर्म और निजी धर्म के बारे में अंतर् समझते हुए इस बात की हिदायत देंगे कि भविष्य में ऐसी कोई बचकानी हरकत न की जाये। वैसे मेरी निजी धारणा ये है कि देश में धर्म को लेकर जितना विभेद भाजपा के राजनीति में आने के बाद हुआ है उतना पहले कभी नहीं हुआ। कांग्रेस ने धर्म की नहीं कहते हैं की तुष्टिकरण की राजनीति की और बाक़ी के दल क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर राजनीति करते रहे। देश के लिए राजनीति और धर्म के लिए राजनीति आज की समस्या है। कल की नही। कल फिर उज्ज्वल होग। बेफिक्र होकर सोइये।आज देश में धर्म नहीं देश की सीमाएं खतरे में है। अल्पसंख्यक खतरे में ह। शिक्षा,स्वास्थ्य,उद्योग खतरे में है। पहले उन्हें बचाइए
राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक 

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