खेल के मैदान में राजनीति का खेला क्यों ?

खेल के मैदान में राजनीति का खेला क्यों ?

इससे भी आवश्यक और न्यायसंगत मांग यह हो सकती थी कि खेलों से संबधित बोर्ड में , और योजनाओं में ऐंसे खिलाडियों कि भूमिका जिन्होंने अपना सारा जीवन खेल को समर्पित किया है उनकी भूमिका राजनेताओं से अधिक होनी चाहिए ।

टोक्यो ओलिंपिक में भारतीय हॉकी खिलाडियों के शानदार प्रदर्शन और पुरुष हाकी टीम द्वारा कांस्य पदक जीतने के बाद पूरे देश में उत्साह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर देश के सर्वोच्च खेल सम्मान जिसे अब तक राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड के नाम से जाना जाता था का नाम बदलकर हॉकी के महान खिलाडी और हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद के नाम पर करने की घोषणा की है जिसका सभी ने स्वागत किया है । लेकिन इस घोसणा ने एक नई बहस को जन्म भी दिया है , कि क्या देश में खेल से संबधित सभी पुरुष्कार और प्रतिष्ठानों का नाम देश के खिलाडियों के नाम पर होना चाहिए ? जो एक सकारात्मक बदलाव सिद्ध हो सकता है कांग्रेस ने प्रधानमंत्री कि घोषणा पर व्यंगात्मक रूप से ही सही लेकिन यह मांग कि है कि देश के खेल प्रतिष्ठानों का नाम खिलाडियों के नाम से करें और शुरुवात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद अहमदाबाद में अपने नाम से बने स्टेडियम का नाम बदलकर करें । इससे भी आवश्यक और न्यायसंगत मांग यह हो सकती थी कि खेलों से संबधित बोर्ड में , और योजनाओं में ऐंसे खिलाडियों कि भूमिका जिन्होंने अपना सारा जीवन खेल को समर्पित किया है उनकी भूमिका राजनेताओं से अधिक होनी चाहिए । वर्तमान में खेल संबधी बोर्ड में पदाधिकारी होना राजनेताओं के लिए स्टेटस सिंबल मन जाने लगा है खासकर क्रिकेट में राज्य स्टार के बोर्ड चुनाव में जिस प्रकार कि राजनीती होती है वह खेल से ज्यादा रोमांचक होती है । कोई भी राजनेता किसी खिलाडी कि दृष्टि से उस खेल को न तो समझ सकता है और न ही उसके लिए उत्तम योजनाएं बना सकता है और ओलिंपिक जैसे बड़े आयोजनों के लिए यदि हमें अपने युवाओं को तैयार करना है तो यह बदलाव सबसे अधिक आवश्यक है जिससे खेलो के प्रति सद्भाव और स्वाभिमान कि भावना सिर्फ आयोजन के समाप्त होने तक सिमट कर न रह जाये बल्कि उसमे निरंतरता बनी रहे । आज हम टोक्यो प्लयम्पिक में अपने खिलाडियों से जिन मैडल लाने कि आशा कर रहे है उनमे से शायद ही कभी हमने उन खेलो पर ध्यान दिया हो खिलाडियों और उनके प्रशिक्षण कि बात तो दूर कि है आज सिर्फ मैडल कि संख्या बढ़ने के लिए हर खेल पर नजर लगाने वाले हमारे राजनेता , उधोगपति और जनता तक कि सुहानुभूति या सहायता से ये खिलाडी उतने लाभान्वित नहीं हुए जितने क्रिकेट या मनोरंजन जगत के सितारे होते रहे है कुलमिलाकर यदि सरकार या देश कि राजनीति सच में भारतीय खेलों के प्रति जागरूक होकर सकारात्मक द्रष्टिकोड रखती है तो खेल के मैदान में राजनीति का खेला बंद कर सच्ची खेल भावना दिखानी होगी ,इस ओलिंपिक से जगी देसी स्वाभिमान कि भावना को ध्यान में रखते हुए सिर्फ नाम में ही नहीं पूरी खेल व्यवस्था में ही आमूलचूल परिवर्तन करना होगा जिसका परिणाम अगली विश्व स्तरीय खेल प्रतियोगताओं में निश्चित ही दिखाई देगा ।

धन्यवाद

जय हिन्द।।

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