कर्नाटक में कांग्रेस को बढत के मायने: इन दिनों देश की राजनैतिक परिस्थिति नये रूप में सामने आ रहीं है 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में विपक्ष को धूल चटाने के बाद क्या भाजपा के लिये 2024 का आम चुनाव भी उतना ही आसान होगा या फिर इस बार आने वाले 25 सालों का रोडमेप लिय भाजपा के लिये चुनावी विजय पताका फहराना कठिन होने वाला है इस सवाल का जबाब देना आसान नहीं है लेकिन इन दिनो देश के जो सियासी हालात है उनसे एक बात तो तय है कि इस बार चुनाव पिछले दोनो लोकसभा चुनावों से बहुत अलग होंगे और शायद इस बदलाव की नीव कर्नाटक विधानसभा चुनावों के परिणाम से रखी जावेगी लंबे अरसे के बाद भाजपा और कंाग्रेस के बीच सीधी टक्कर और भारी वार पलटवार से भरे कर्नाटक विधानसभा चुनावों में जो भी एक्ज्टि पोल निकलकर सामने आ रहे है उन्में कांग्रेस को या तो बहुमत मिलता हुआ दिखाई दे रहा है या फिर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आयी है गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने शायद कर्नाटक विधानसभा चुनाव में ही अपनी पूरी ताकत झोंकी हुई थी और उसका परिणाम प्रचार सभाओं में भी देखने को मिला था इन एक्जिट पोल से कांग्रेस नेता और कार्यकर्ताओं में उत्साह है हालाकि कर्नाटक चुनाव परिणाम 13 मई को आयेंगे लेकिन आने वाले महीनों में महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनावों को देखते हुए ये परिणाम कांग्रेस के लिये संजीवनी की तरह काम कर सकते है ं यदि कर्नाटक में कांग्रेस अपनी दम पर सरकार बनाती है तो यह उसके लिये बहुउददेशीय राजनीति साधने का कारक होगा मसलन 2024 के आम चुनावों में विपक्षी एकता बनाने के जो प्रयास चल रहे है उसमें कांग्रेस दमदारी से अपना पक्ष रख सकेगी और मध्यप्रदेश , छतीशगढ और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में जहां कांग्रेस की स्थिति मजबूत है वहां उसके कार्यकर्ताओं को बल मिलेगा और चुनाव से पहले दल बदलने वाले बड़े नेता कांग्रेस में ही अपनी जगह को मजबूत करने में ताकत लगायेंगे । मध्यभारत के प्रमुख तीन राज्यों मध्यप्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ में राजनैतिक परिस्थितियां फिलहाल कांग्रेस के पक्ष में है ।
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राजस्थान में तमाम अटकलों और उठापटक के बाद भी अशोंक गहलोत की सरकार ने अपना कार्यकाल मानो पूरा कर ही लिया है तो ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने जैसी कई लाभदायी योजनाओं के साथ जनता के मध्य अपनी छवि को भी ंसंभाला है भाजपा की ओर से शायद एंसा कोई नेता नहीं है जिसने लगातार पांच साल तक सरकार का सदन और सड़क पर पुरजोर विरोध किया हो हां कांग्रेस के सचिन पायलट ही कांग्रेस के लिये एक बड़ी चुनौती हो सकते है फिलहाल राजस्थान के वर्तमान हालात जैसे बने हुए है उनमें विधानसभा चुनावों तक का अंदाजा लगाना संभव नहीं है तो एंसे ही छत्तीसगढ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकार के सामने कोई भाजपायी चेहरा नहीं है पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कभी भी तेजतर्रार विपक्ष की भूमिका नहीं निभाई इसी बीच मुख्यमंत्री बघेल की छवि इन पांच सालों में बड़े और देशव्यापी मुददों पर अपनी दो टूक राय रखने वाले बेबाक नेता और गांधी परिवार के करीबी के रूप में बनी है शुरूआती दौर में उन्हे घेरने वाले कांग्रेस नेता टीएस सिंहदेव भी लंबे अरसे से चुप दिखाई देते है अब विधानसभा चुनावों तक हालात क्या हांेगे यह देखना होगा लेकिन अभी तो छत्तीसगढ में सब आल इज वेल नजर आता है इन दोनो राज्यों से इतर मध्यप्रदेश में इन दिनों जो हो रहा है शायद उसे ही राजनीति कहा जाता है अपनी बनी बनाई सरकार गिराई जाने का विषपान किये बैठे कमलनाथ मध्यप्रदेश में जितने सक्रिय है उतने शायद अपने लंबे राजनैतिक जीवन में कभी नहीं रहें होगे मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पुराने धुरंघर कमलनाथ और दिग्यविजय लगातार कांग्रेस संगठन की मजबूती के लिये और भाजपा सरकार को घेरने का कार्य कर रहे है अरूण यादव और जीतू पटवारी जैसे प्रदेश कांग्रेस के बड़े चेहरे सरकार पर तीखे हमले कर रहे है तो कंेद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की सहायता से फिर से सरकार में आई भाजपा सत्ता परिर्वतन के तीन साल बाद सिंधिया और सहयोगियों के कारण ही मुश्किलों में घिरती नजर आ रही है पिछले सप्ताह ही जहां भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी ने कांग्रेस की सदस्यता ली तो अन्य स्थानों पर भी सिंधिया खेमे की वजह से अपनी राजनैतिक विरासत में अतिक्रमण झेलने वाले बड़े भाजपायी कांग्रेस के संपर्क में है और खुलकर भाजपा संगठन और सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे है कांग्रेस भी भाजपा की इस कमजोर कड़ी पर ही वार कर रही है और ऐंसे प्रभावशाली नेताओं को किसी भी प्रकार से अपने पक्ष में करना चाहती है इसके अतिरिक्ति एक और महत्वपूर्ण बात मध्यप्रदेश में जो दिखाई देती है वह चुनावी साल में सरकार की घोषणाओ ंऔर योजनाओ का विपक्ष में रहते हुए न सिर्फ मुकाबला करना बल्कि आम जनता में उन योजनओं के समांनातर घोषणाओ के विकल्प प्रस्तुत करना जैसे मध्यप्रदेश सरकार की महिला मतदाताओं को लुभाने के लिये लाई गई महत्वकांक्षी लाड़ली बहना योजना के जबाब में कांग्रेस ने बड़े ही जोरशोर से नारी सम्मान योजना का शुभारंभ किया जिसमें महिलाओं को 1500 रूपये देने के साथ साथ रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 500 रूपये करने की घोषणा की गई खास बात यह है कि घोषणा के साथ साथ महिलओं से नारी सम्मान योजना के फार्म भरवाने जैसी औपचारिकताऐं भी कराई जा रही है जिससे मतदाता के मन में एक मजबूत विकल्प की जमावट हो रही है अब देखना यह होगा कर्नाटक चुनावों मे जिस प्रकार कांग्रेस के नेतओ और कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर सत्ताधारी भाजपा का मुकाबला किया है क्या इसी शैली को कांग्रेस के कंेद्रीय और प्रदेशिक नेता अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों तक जारी रख सकेंगे या फिर कांग्रेस से अधिक भाजपा इन चुनाव परिणामों से सबक लेकर अन्य राज्यों और लोकसभा के चुनावों में अपनी रणनीति को बदलकर और अधिक प्रभावशाली बनाने में कामयाब होगी।
अभिषेक तिवारी
संपादक भारतभवः