लोहिया की नजर में भोपाल
जितना सुंदर आज भोपाल है बाहर वाले इसकी जितनी तारीफ करते हैं साठ के दशक में भोपाल एक बेतरतीब कस्बे से कुछ थोड़ा ही ज्यादा बड़ा था अपने विशाल महलों और मस्जिदों को छोड़कर यहां आम जनता के हिसाब से आधुनिक शहर व्यवस्था जैसी कोई चीज नहीं थी एक बार समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया भोपाल के विधायक विश्राम गृह में ठहरे हुए थे उन्होंने भोपाल को विशेष अंदाज में परिभाषित किया उनके हिसाब से भोपाल शहर की बनावट बड़ी मजेदार थी। वे कहते थे कि यहां सबसे ऊपर नौकरशाही बैठती है यानी बल्लभ भवन फिर पूंजी पतियों का नंबर आता है , इसलिए क्योंकि उसी पहाड़ी पर नीचे की तरफ उद्योगपति बिरला द्वारा बनाया हुआ मंदिर है इसके नीचे विधायक विश्रामगृह है। सरल शब्दों में कहें तो जनप्रतिनिधियों का दर्जा नौकरशाह और थैलीशाहों के नीचे है फिर जमीन पर है भोपाल का तालाब और इसके आसपास बसी आबादी जिनकी आंखों और कराओ की लहरों से वह हमेशा उद्वेलित रहता है
डांगे को भाया भोपाल
प्रख्यात पत्रकार मदन मोहन जोशी ने ऐसा ही एक दिलचस्प प्रसंग कम्युनिस्ट पार्टी नेता श्रीपाद अमृत डांगे के बारे में लिखा डांगे जब भोपाल एक आम सभा में बोलने के लिए आए तो उन्होंने कहा इतनी सुंदर शहर में रहने वाले हो आप सब को सर्वप्रथम मेरी ओर से अभिनंदन इसके बाद अपनी चिर परिचित व्यंग्यात्मक मुद्रा अपनाते हुए कहा यहां की जेल इतनी खूबसूरत है कि अगली बार जेल जाना पड़ा तो जिद करूंगा कि मुझे इसी जेल में भेजा जाए तब जेल बल्लभ भवन के पास में थी जहां आजकल जेल मुख्यालय है । यहां का टीवी अस्पताल खूबसूरत पहाड़ी पर बना है अगर मुझे टीवी हुई तो यहीं आकर इलाज कराऊंगा , तालाब मुझे और ज्यादा पसंद आया यह इतना विशाल और गहरा है कि कभी आत्महत्या का ख्याल दिमाग में आया तो यहां आकर तालाब में कूद कर जान दूंगा।
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