भोपाल। शहर सरकारों का गठन अब अंतिम चरण में है एक सप्ताह में यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी लेकिन “अंत भला तो सब भला” की तर्ज पर दोनों ही दल भाजपा और कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में रायशुमारी बनाने पर जोर दे रहे हैं क्योंकि जिस तरह से पार्षदों के बीच “एक अनार सौ बीमार” की स्थिति है उसमें बगावत की भी संभावना बनी हुई है जिसे रोकने के लिए पार्षदों की बाड़ेबंदी की गई है।
दरअसल, जिस तरह से अब तक के पंचायती राज और नगरीय निकाय के चुनाव में दलीय निष्ठाएं दरकी है उसके चलते यदि कहीं भी चुनाव की स्थिति बनती है तो परिणाम किसी भी तरफ जा सकता है। पिछले दिनों ऐसे अनेकों उदाहरण सामने आए हैं जिसमें जनपद अध्यक्ष और जिला पंचायत अध्यक्ष उपाध्यक्ष के चुनाव में सदस्यों ने दोनों ओर से वोट देने का वादा कर लिया। इसके पीछे चाहे लोभ लालच या फिर दबाव प्रभाव हो और जहां -जहां चुनाव की नौबत आई वहां पर नाम चकित करने वाले भी आए। यही कारण है कि दोनों दल रायशुमारी बनाने में जुटे हुए हैं जिससे चुनाव की नौबत ना आए।
बहरहाल, जहां-जहां भाजपा और कांग्रेस के पार्षदों की संख्या में बहुत कम अंतर है वहां पर संघर्ष ज्यादा है और जहां किसी भी दल के बहुमत से ज्यादा पार्षद है वहां दल के अंदर तो घमासान हैं लेकिन रायशुमारी होने के बाद निर्विरोध चुनाव होने की स्थिति बन जाएगी और इसी के लिए तमाम तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। सत्ताधारी दल भाजपा हो या विपक्षी दल कांग्रेस पार्षदों की निगरानी में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। वहीं नगर परिषद और नगर पालिका के चुनाव में सत्ताधारी दल भाजपा ने चुनाव के बाद कई जगह अपनी स्थिति सुधारी है जहां निर्दलीय पार्षदों को पार्टी में शामिल कराया है।
पार्टी द्वारा प्रेक्षक सभी नगरीय निकाय क्षेत्रों में भेजे जा रहे हैं जहां वे पार्टी पदाधिकारियों विधायक सांसद मंत्रियों और पार्षदों से रायशुमारी करके सर्व सम्मत की स्थिति बनाएंगे। पार्टी को सबसे बड़ी दिक्कत उन नगरीय क्षेत्रों में है जहां पार्टी के ही नेता गुटबाजी के चलते अपने विरोधियों को नीचा दिखाने के लिए नेता विरोधी लोगों को हवा दे रहे हैं। पार्टी के नेता यह करते हुए भूल रहे हैं इसी चक्कर में चंबल विन्ध्य और महाकौशल में पार्टी को अच्छा खासा नुकसान उठाना पड़ा है। एक – दूसरे को निपटाने में पार्टी ही निपट रही है और ऐसा ही यदि अध्यक्षों के चुनाव में हुआ तो पार्टी के लिए और भी ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। हालांकि पार्टी नेतृत्व सतर्क और सावधान हुआ है जिसमें स्थानीय विधायक को रायशुमारी बनाने का जिम्मा सौंपा गया है और यदि वे सफल नहीं होते हैं तो फिर पर्यवेक्षक पार्षदों से रायशुमारी करके चुनाव करवाएंगे।
कुल मिलाकर नगरीय निकाय चुनाव के अंतिम चरण में अध्यक्षों के चुनाव के लिए रायशुमारी बनाने पर दिया जा रहा है जिससे चुनाव की स्थिति ना बने और पार्टी विद्या का सामना करना पड़े?
देवदत्त दुबे ,भोपाल -मध्यप्रदेश