सम्पादकीय
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में हुए महत्वपूर्ण मंत्रीमंडल विस्तार ने मोदी सरकार के हमेशा की तरह होने वाले त्वरित निर्णयों की तरह ही इस बार भी सबको चैकाया और इस बार भी ये निर्णय शुरुवात में मनभावन और नयापन लिये हुए है। अब इनका भविष्य आने वाले समय में तय होगा बहरहाल अपने महत्वपूर्ण मंत्रीमंडल विस्तार मेे प्रधानमंत्री मोदी ने पूरी तरह अपने मन का मंत्रीमंडल बनाया है और अब टीम मोदी में आने वाले आम चुनावों तक फेरबदल की कोई संभावना नहीं है नवगठित मंत्रिमंडल में राज्यों के आने वाले विधानसभा चुनावों के राजनैतिक और जातिगत समीकरणो के साथ साथ विगत दिनों से लगातार कमजोर हो रही सरकार की छवि को सुधारने का प्रयास भी किया गया है और भविष्य में इन विषयो पर विशेष ध्यान देने की आवष्यकता पर जोर दिया गया है मंत्रिमंडल में हुए बड़े उलटफेर ,मंत्रियों के प्रमोशन, डिमोशन और बर्खास्तगी का हल्ला इसका उदाहरण है मसलन टिवटर और अन्य सोषल मीडिया प्लेटफार्म पर सरकार के लगातार विवादित रहने के कारंण जहां सूचना एवं प्रसारण मंत्री भाजपा के वरिष्ठ नेता रविषंकर प्रसाद षुक्ला का इस्तीफा लिया गया और पूर्व आईएएस आश्विन वैष्णव को महत्वपूर्ण रेल मंत्रालय के साथ साथ इसकी कमान दी गयी इसी प्रकार युवा चेहरों को महत्वपूर्ण मंत्रालयों की बागडोर सौपकर मंत्रिमंडल को यंग एंड एनर्जेटिक दिखाने की कोशिश की गयी है । इसी क्रम में मध्यप्रदेश के राजयसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया जिनका नाम तो मंत्रिमंडल विस्तार में बहुत पहले से ही तय था लेकिन यह देखना रोमांचक था की भाजपा उन्हें टीम मोदी के अहम् खलाड़ी के रूप में शामिल करती है या सिर्फ सांत्वना पुरुष्कार देती है और भाजपा ने नागरिक उड्डयन का अहम् मंत्रालय देकर सिंधिया को मन से स्वीकार करने की कथनी करनी को सिद्ध भी किया है
मंत्रीमंडल में महत्वपूर्ण मंत्रालय के केबिनेट मंत्री के पद के साथ शामिल होना राज्यवसभा सांसद सिंधिया के लिये उनके राजनैतिक जीवन का दूसरा अहम मोड़ है। मार्च 2020 में अपने सर्मथको के साथ कांग्रेस की सरकार गिराकर भजपा को संजीवनी देने वाले सिंधिया ने तब अपने जीवन का सबसे बडा दाव खेला था और तमाम अटकलों ,शंकाओ और कांग्रेस की बयानबाजी के बाद भी भाजपा के वरिष्ठ नेताओ पर पूरा विश्वास जताया था । राज्यसभा सांसद बनने के बाद सिंधिया ने भाजपा की रीति नीति में ढलने के साथ साथ लगातार भाजपा और संघ के नेताओं के साथ परस्पर व्योवहार बढाया और बनाये रखा , कोरोनाकाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान को भी हर निर्णय और मुददे पर सिंधिया का सर्मथन रहा , उपचुनाव जीतने के बाद जीते सर्मथको को मंत्री पद में देरी और हारने वालों को निगम मंडल और संगठन में सम्मानजनक जगह दिलाये जाने जैसे मुद्दों पर भी पूरा धैर्य बनाये रखा और पिछले डेढ साल में शायद एक भी एंसा मौका नहीं आया जहां सिंधिया की नाराजगी या नखरों की खबर चर्चा का विषय बनी हो जिससे विरोधी दल कांग्रेस को चुटकी लेने का मौका मिला हो, हां कांग्रेस नेता सदैव सिंधिया को कांग्रेस में पहली पंक्ति का नेता बताकर भाजपा में बैकबैचर की भूमिका पर तंज करते थे तो मंत्रीमंडल विस्तार में सिंधिया को महत्वपूर्ण और अंर्तराष्टीय महत्व से जुड़ा मंत्रालय देकर और पहली पंक्ति में स्थान देकर जहाँ भाजपा ने कांग्रेस की बोलती बंद की है तो तिरछी निगाहों से भाजपा की तरफ निहार रहे अन्य युवा कांग्रेसियो को भी इशारा किया है। इन सभी अनुकूलताओं के बाद भी अब तक भाजपा में अपने मन का कराने वाले सिंधिया के लिये चुनौतियों का दौर भी लगभग शुरू हो गया है पहला तो अब उन्हे प्रधानमंत्री मोदी के मन की बात सुन – समझकर खुद को साबित करना होगा , दिल्ली के साथ साथ मध्यप्रदेश में भी क्षेत्रीय नेताओं के साथ समन्वय की राजनीती करनी होगी ,भाजपा सरकार के साथ साथ संगठन में भी सिंधिया को स्टार प्रचारक बनाकर आने वाले राज्यों के चुनावों में इसका फायदा लेना चाहेगी खासकर उत्तरप्रदेष विधानसभा चुनावों में जहाँ सिंधिया को भारी मशक्कत करनी होगी क्योकि कांग्रेस की तरह भाजपा में हार को सहजता से स्वीकार नहीं किया जा सकता इन सबसे इतर सिंधिया के लिये भी मंत्रालय को नई पहचान देने के साथ साथ भाजपा संगठन में राष्टीय स्तर को चेहरा बनने का बेहतरीन मौका है और अगर सिंधिया आने वाले एक वर्ष में सरकार और संगठन में अपनी उपयोगिता सिद्ध करते है तो वह अपने लक्ष्य की ओर एक कदम और बढ़ने के साथ साथ भाजपा के एक और मिथक को तोड़ सकते है जो है कि “आरएसएस और भाजपा में दूसरे दल से आया हुआ कोई भी बड़ा नेता कभी मुख्यमत्री पद का दावेदार नहीं होता”
दिनांक
09.07.2021