हिमाचल प्रदेश, गुजरात विधानसभा और दिल्ली महानगर निगम के चुनाव परिणाम सामने हैं।इन नतीजों से देश में प्रचलित दो कहावतें एक बार प्रमाणित हुई हैं। पहली ये कि -‘दिया तले हमेशा अंधेरा होता था, होता है और होता रहेगा।और दूसरी ये कि अगर आपको नाचना नहीं आता तो आंगन के टेढ़ेपन को दोषी करार नहीं दे सकते। इन तीन छोटे -बड़े चुनावों से मुल्क की सियासी तस्वीर बदलने वाली नहीं है। जीतने और हारने वाले राजनीतिक दलों की ताकत भी कम या ज्यादा होने वाली नहीं है, हां प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की घर में गिरती साख को जरूर सहारा मिला है। मोदी जी की ‘औकात’ को जो खतरा पैदा हुआ था तो वो टल गया है।अब खड़गे मल्लिकार्जुन जी को अहसास हो जाना चाहिए कि मोदी जी के सचमुच एक से अधिक दिमाग हैं। हिमाचल में भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत से देश के मतदाताओं को एक बात जरूर समझ लेना चाहिए कि-‘ रोटी और सत्ता को तय समय पर पलटना बहुत जरूरी होता है। गुजरात में और गुजरात के तमाम राज्यों में मतदाता रोटी सेंकने और सरकार चुनने का आजमाया फार्मूला भूल चुकी है। गुजरात की जनता ने चौथी बार भाजपा को चुना जरूर है लेकिन इस बार का चुनाव असाधारण था, क्योंकि प्रधानमंत्री जी को अपने ही घर में अपनी औकात की दुहाइयां देना पड़ी थीं। गुजरात की असाधारण और अप्रत्याशित विजय का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री जी को है लेकिन हैरानी होती है कि इस बार उन्होंने ये श्रेय पार्टी अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह को दिया है। प्रधानमंत्री ने ये उदारता से किया या मजबूरी से, ये वो खुद जानते हैं। उन्हें पता है कि दिल्ली में भाजपा के दीपक के नीचे का अंधेरा पहले से ज्यादा घना और गहरा हो चुका है। भाजपा का सपना देश को कांग्रेस विहीन करने का है, दुर्भाग्य से भाजपा का ये सपना पूरा हो नहीं पा रहा है।
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भाजपा अगर मप्र में कांग्रेस की सरकार गिरा कर भाजपा की सरकार बनाई तो हिमाचल में कांग्रेस फिर सिर उठाकर खड़ी हो गई। भाजपा सारे ठठकर्म के बावजूद राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सत्ता का बाल बांका नहीं कर सकी, उसे इस बार अपनी सारी ताकत गुजरात बचाने में लगाना पड़ी। गुजरात बच भी गया किन्तु भाजपा का ख्वाब अधूरा ही रह गया। अब आइए कांग्रेस की बात करें। कांग्रेस इन दिनों ‘भारत जोड़ो यात्रा ‘ में व्यस्त हैं, लेकिन हकीकत ये भी है कि कांग्रेस सरकार और संगठन चलाना भूल चुकी है, अन्यथा उसे गुजरात में ये दिन न देखना पड़ते। हिमाचल प्रदेश की जीत कांग्रेस की गुजरात में हार के ज़ख्म नहीं भर सकते।ये जख्म बहुत गहरा है।इसे गहरा होने से रोका जा सकता था। कांग्रेस ये नहीं कर पायी। कांग्रेस के नये अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे भी ये नहीं कर सके, लेकिन खड़गे जी से इस्तीफा नहीं मांगा जा सकता। हम जैसे लोग उस जमात से हैं जिन्हें भाजपा और कांग्रेस के मुस्तकबिल से कुछ लेना देना नहीं है। हमें देश की फ़िक्र है। लोकतंत्र की फ़िक्र है।आज भी देश में और देश के बाहर ये सोचने वाले लोग हैं जो सोचते हैं कि देश इस समय कठिन दौर से गुजर रहा है। आज के लोकतंत्र में प्रधानमंत्री और जनता के रिश्ते जनता और सेवक के नहीं रहे।ये रिश्ते अब राजा और प्रजा जैसे हो गये हैं। यही बदलाव सबसे बड़ा खतरा है। मुझे अच्छा लगा ये सुनकर कि प्रधानमंत्री जी ने हिमाचल और दिल्ली की हार तथा गुजरात की जीत को पूरी विनम्रता से स्वीकार किया है। उन्होंने जहां सत्ता गंवाई है, वहां भी उन्होंने सहकार से काम लेने का भरोसा दिलाया है।काश! कि वे अपने कौल पर टिके रहें। क्योंकि आशंका इस बात की है कि प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी बदले की राजनीति पर न उतर आए। भाजपा ने बीते आठ साल में सियासत से सौजन्य हमेशा के लिए समाप्त कर दिया है।इसकी बहाली आसान काम नहीं है । आने वाले दिनों में कांग्रेस और भाजपा को आत्मचिंतन के नये दौर से गुजरना है। इस देश की तकदीर का फैसला इन्हीं दोनों दलों को करना है।तीसरी पार्टियों को ये भूमिका हासिल करने के लिए अभी दस,बीस साल लगातार मेहनत और इंतजार करना होगा।इस देश का सियासी इतिहास गवाह है कि यहां बहुत से राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल बने और बिगड़ गये, लेकिन कांग्रेस, नहीं मरी। भाजपा मर नहीं रही है। बहुत से दल हासिए पर आते जाते हैं लेकिन उनकी हैसियत कांग्रेस या भाजपा जैसी नहीं बन सकी। यहां तक कि दुनिया की प्रमुख विचारधाराओं में से एक वामपंथ भी भाजपा और कांग्रेस का मुकाबला नहीं कर सका।
व्यक्तिगत विचार-आलेख-
श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार , मध्यप्रदेश ।
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