देश में टमाटरों के लाल- पीले होने से सरकार भी चिंतित है । सरकार के उपभोक्ता संरक्षण विभाग ने टमाटरों की कीमतें नियंत्रित करने के लिए कम से कम देश की जनता से एक अभियान ‘ हैकथॉन ‘ चलकर सुझाव तो मांगे ,अन्यथा सरकार जनता से कभी कुछ मांगती ही कहाँ है ? सरकार मांगती नहीं बल्कि देती है। लेकिन टमाटरों ने सरकार को भी पिलपिला कर दिया है।दरअसल मै पिछले अनेक दिनों से टमाटर के बारे में लिखना चाहता था ,लेकिन मैंने टमाटर की उसी तरह उपेक्षा कर दी जिस तरह सरकार ने मणिपुर की हिंसा की उपेक्षा की है। अपेक्षा और उपेक्षा में आखिर फर्क है ही कितना ? हमारे प्रधानमंत्री जी अमेरिका से शहडोल तक मणिपुर की हिंसा के बारे में एक बोल तक नहीं बोलते। इसलिए मैंने भी टमाटर के बारे में एक भी शब्द खर्च न करने की कसम खा रखी थी,किन्तु सरकार के उपभोक्ता संरक्षण मंत्रालय ने मुझे मेरी जिम्मेदारी का बोध करा दिया। मुझे खुशी है कि केंद्र सरकार के तमाम मंत्रालयों में से कम से कम एक तो ऐसा है जो न सिर्फ अपनी जिम्मेदारी समझता है बल्कि देश की चिंताओं में जनता को भी भागीदार बनाता है।
आपको पता ही है कि देश में कई शहरों में टमाटर की कीमत 100 के पार चली गई है।हालांकि उसे दो सौ के पार होना चाहिए था,क्योंकि हमारी सरकार हर सूबे में जब भी चुनाव होते हैं तब एक ही नारा देती है ‘ अबकी बार , दो सौ के पार ‘। ये बात अलग है कि सरकार ये लक्ष्य कभी प्राप्त नहीं कर पाती। अच्छी बात ये है कि , केंद्र सरकार को उम्मीद है कि आने वाले 15 दिन में टमाटर की कीमतें स्थिर हो जाएँगी । डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स ने टमाटर की कीमतों को काबू में रखने के लिए जनता से सुझाव भी मांगे हैं। इसे ‘टोमैटो ग्रैंड चैलेंज हैकथॉन ‘ कहा गया है। इसकी शुरुआत हो गई है।स्टूडेंट्स, रिसर्च स्कॉलर सहित अन्य लोग टमाटर के उत्पादन, प्रोसेसिंग और स्टोरेज क्षमता बढ़ाने को लेकर अपने सुझाव कंज्यूमर अफेयर डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर भेज सकते हैं। इन सुझावों पर काम होगा और सब ठीक रहा तो इसे लेकर योजना भी तैयार की जाएगी, ताकि टमाटर की कीमतें सालभर स्थिर रखी जा सकें।मै अक्सर कहता हूँ कि सरकार को हर मामले में अपने साथ जोड़कर रखना चाहिए। जनता साथ हो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है । जनता साथ हो तो सरकार के सर से कांग्रेस और राहुल गांधी का भूत भी फौरन उतर जाता है। लेकिन सरकार तो सरकार है। अपने मन की करती है। अब माननीय प्रधानमंत्री जी हमारे सूबे में आये,आदिवासियों के बीच गए । एक करोड़ ‘ आयुष्मान कार्ड’ बाँट गए। हमेशा की तरह कांग्रेस को कोसा। आदिवासियों के संग खाना खाया। शायद आदिवासी इस बार मध्यप्रदेश में उनकी पार्टी का बेड़ा पार कर दें। लेकिन प्रधानमंत्री जी ने यहां भी न मणिपुर की बात की और न टमाटर की। वैसे भी आदिवासियों का मणिपुर और टमाटर से क्या लेना-देना। ये तो सियासी मुद्दे हैं। प्रधानमंत्री जी इन मुद्दों पर अपनी ऊर्जा क्यों बर्बाद करें ? प्रधान जी के सामने तो केवल और केवल कांग्रेस और चूं-चूं का ‘ एकता मुरब्बा बनाता विपक्ष है।बात टमाटर की चल रहीी थी और मै कहाँ भटककर आदिवासियों और प्रधानमंत्री जी तक आ पहुंचा । मेरे मित्र भी मुझे इस कमजोरी के लिए अक्सर कोसते है। अब कमजोरी तो कमजोरी है । जैसे प्रधानमंत्री जी की कमजोरी कांग्रेस और राहुल गांधी हैं,वैसे ही मेरी कमजोरी सत्ता प्रतिष्ठान और माननीय प्रधानमंत्री जी है। मै अपने प्रधानमंत्री जी को जी जान से चाहता हूँ। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री जी का जिक्र किये बिना मेरी कोई बात पूरी होती ही नहीं है। खैर मै प्रधानमंत्री जी के साथ अपने सूबे के जिन आदिवासियों को देख रहा था उन्हें पहचानना मेरे लिए मुश्किल था। सब के सब गुलाबी पगड़ी पहने बाराती लग रहे थे। जबकि हमारे सूबे में आदिवासी आज भी पूरे कपडे नहीं पहन पाते। बेचारों के लिए गुलाबी पगड़ी तो ‘ आकाश कुसुम ‘ जैसी है। प्रधानमंत्री जी का आभार कि उनकी वजह से सूबे के परेशान आदिवासियों को कम से कम गुलाबी पगड़ी पहनने को तो मिली।
प्रधानमंत्री जी ने आदिवासियों को जिस उदारता से आयुष्मान कार्ड बांटे मै उसकी सराहना करता हूँ ,किन्तु शायद प्रधानमंत्री जी को नहीं पता कि हमारे सूबे मध्यप्रदेश में चार हजार आबादी पर एक डाक्टर है जबकि कम से कम एक हजार की आबादी पर एक होना चाहिए। हमारे यहां डाक्टरों के 94 हजार पद रिक्त है। सामुदायिक चिकित्सा केंद्रों से लेकर सुपर स्पेशियल्टी अस्पतालों में भी यही दशा है ,ऐसे में आदिवासी इन कार्डों का आखिर करेंगे क्या ? सरकार की कृपा से इन कार्डों की बदौलत आदिवादियों के बजाय निजी अस्पताल वालों की सेहत जरूर सुधरेगी क्योंकि ये पैसा आखिर में इन्हीं निजी दुकानों में पहुंचता हैबहरहाल बात टमाटर से शुरू हुई थी सो टमाटर पर ही समाप्त होना चाहिए । हमारे देश में सालाना लगभग एक करोड़ 97 लाख टन टमाटर का उत्पादन होता है, जबकि खपत लगभग एक करोड़ 15 लाख टन है । यानि देश में टमाटर को कोई कमी नहीं है। सरकारी आंकड़े तो देश में टमाटर का उत्पादन 2 करोड़ टन बताते हैं। सवाल ये है कि जब हम टमाटर के मामले में आत्मनिर्भर हैं तो बाक़ी टमाटर जाते कहाँ हैं ? वैसे टमाटर उत्पादन में भी चीन हमसे काफी आगे है । पिद्दी सा चीन सालाना 6 878 मिलियन टन टमाटर पैदा करता है। जो विश्व के कुल टमाटर उत्पादन का 34 प्रतिशत से अधिक है। दुनिया में सालाना 187 मिलियन टन टमाटर पैदा होता है। सवाल ये है कि टमाटर के भाव बढ़ते क्यों हैं ? या तो हमारी आदतें खराब हैं या फिर इंतजाम खराब हैं। टमाटर हर साल प्याज की तरह जनता और सरकार को रुलाता है । इसे सख्ती से रोका जाना चाहिए। सरकार के अकेले के बूते का ये काम नहीं। जनता को इसमें साथ देना होगा । सरकार अकेले यदि टमाटर के दाम बढ़ने से रोक सकती तो सबसे पहले कांग्रेस के बढ़ते कदम न रोकती ? कांग्रेस के भाव भी टमाटर के भावों की तरह लगातार बढ़ते चले जा रहे हैं। मुझे पूरा यकीन है की यदि देश में टमाटरके भाव काबू में आ गए तो एक न एक दिन कांग्रेस के भाव भी काबू में आ जायेंगे।वैसे भी टमाटर हमारे योगा की तरह विश्वव्यापी है। इसका पुराना वानस्पतिक नाम लाइकोपोर्सिकान एस्कुलेंटम मिल है। वर्तमान समय में इसे सोलेनम लाइको पोर्सिकान कहते हैं। बहुत से लोग तो ऐसे हैं जो बिना टमाटर के खाना बनाने की कल्पना भी नहीं कर सकते। इसकी उत्पति दक्षिण अमेरिकी ऐन्डीज़ में हुआ। मेक्सिको में इसका भोजन के रूप में प्रयोग आरम्भ हुआ और अमेरिका के स्पेनिस उपनिवेश से होते हुये विश्वभर में फैल गया। कायदे से तो भारत को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की तरह भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय टमाटर दिवस के लिए अभियान चलाना चाहिए। क्योंकि बिना टमाटर सब सूना है।
हमारे देश में टमाटर हो,प्याज हो,रसोई गैस हो या कोई और उपभोक्ता वस्तु के दाम हों कभी चिंता का विषय नहीं रहा । कभी चुनावी मुद्दा नहीं रहां । मुद्दा है कि – ‘आपको मोदी चाहिए की नही।’ कुछ दशक तक पहले देश में ‘ इंदिरा चाहिए कि नहीं ‘ की बात होती थी। यानि कुछ बदला नहीं है । कुछ बदलना भी नहीं है । इंदिरा,राजीव , मनमोहन जायेंगे तो अटल,बिहारी और मोदी जी आएंगे। इनके बीच में महंगाई ,बेरोजगारी ,गरीबी, भुखमरी जगह बना ही नहीं सकती। देश में यदि मजबूत सरकार होगी तो आज 80 करोड़ लोगों को पांच किलो अन्न मुफ्त में देकर पाल रही है,कल 100 करोड़ लोगों को भी पाल सकती है। मजबूत सरकार का अर्थ ‘ पालनहार ‘ सरकार होता है ।
राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक