राजनीतिनामा

यह गांधीवाद नहीं, गोड़सेवाद है

मध्यप्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष राज पटेरिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘हत्या’ करने की बात कह दी और अब वे सफाई देते फिर रहे हैं कि उनका हत्या से मतलब था- मोदी को हराना। वे अपने बचाव में कह रहे हैं कि वे गांधीभक्त और लोहियाभक्त हैं। उनके इस निरंकुश बयान ने उन्हें गिरफ्तार तो करवा ही दिया है, नरेंद्र मोदी के प्रति लोगों के सदभाव को भी मजबूत बना दिया है। यदि आज गांधी और लोहिया जिंदा होते तो वे अपना माथा कूट लेते। न सिर्फ भाजपा के नेता पटेरिया की भर्त्सना कर रहे हैं, बल्कि कई कांग्रेसी नेता भी उनकी इस गिरावट की भर्त्सना कर चुके हैं। वे म.प्र. के वरिष्ठ नेता हैं, विधायक और मंत्री भी रह चुके हैं। उनके इस बयान से मोदी के लिए शुभकामनाओं की बयार बहने लगी है और कांग्रेस को गहरा नुकसान हो रहा है। क्या पटेरिया को याद नहीं है कि सोनिया गांधी के जन्मदिन पर मोदी ने उन्हें दीर्घायुष्य की शुभकामना दी थी और उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना की थी। यदि कांग्रेसी नेता और कुछ प्रांतीय नेता मोदी से नाखुश हैं तो वे उनका डटकर विरोध जरूर करें लेकिन उनकी हत्या की बात कहना और अपने आप को गांधीवादी बताना तो उल्टे बांस बरेली पहुंचाना है।

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यह गांधीवादी होना नहीं है। यह गोड़सेवादी होना है।इस तरह के बयान क्या सिद्ध करते हैं? क्या यह नहीं कि कांग्रेसी लोग घनघोर निराशा के दलदल में फंस चुके हैं। उन्हें लग रहा है, खास तौर से बुजुर्गों को कि उनके जीवन-काल में मोदी को कोई हटा नहीं सकता। इसीलिए अब यह घुटन इतने गर्हित बयानों में प्रकट हो रही है। मेरी याददाश्त में आज तक किसी प्रधानमंत्री के खिलाफ इस तरह का ज़हरीला बयान कभी नहीं दिया गया। दुर्भाग्य तो यह है कि यह बयान उस कांग्रेस के नेता की तरफ से आया है, जिस कांग्रेस के दो प्रधानमंत्रियों की हत्या हुई और जिसका तीसरा नेता भी दुर्घटना का शिकार हुआ।इस तरह का बयान जारी करना उस बयानबाज़ की बीमार मानसिकता का सबूत तो देता ही है, वह यह भी बताता है कि जो नेता अपने आप को अनुभवी कहते हैं, उन्हें देश की राजनीति की कितनी समझ है। मोदी पर देश के टुकड़े करने के आरोप लगाना और यह कहना कि सिर्फ कांग्रेस ही ‘देश जोड़ो’ की बात कर रही है, बिल्कुल हास्यास्पद है। संविधान की रक्षा के लिए मोदी की हत्या को जरूरी बताना राहुल की भारत-जोड़ो यात्रा पर पानी फेरने से कम नहीं है। म.प्र. की सरकार ने इस कांग्रेसी नेता को जेल भेज दिया है, यह तो न्यूनतम सजा है। बेहतर तो यह है कि कांग्रेस अपनी इज्जत बचाने के लिए ऐसे नेताओं को पार्टी से तुरंत निकाल बाहर करे। इस निरंकुश बयानबाजी की दुखद घटना से सभी पार्टियों के नेताओं को सबक लेना होगा कि वे जो कुछ बोलें, सोच-समझकर बोलें।

आलेख श्री वेद प्रताप वैदिक जी, वरिष्ठ पत्रकार ,नई दिल्ली।

साभार राष्ट्रीय दैनिक  नया इंडिया  समाचार पत्र  ।

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