ज्ञान-विज्ञान

बहिवि की शान को बट्टा लगाने वाले लोग

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का अपना इतिहास है,गौरव है, मान्यता है।माना जाता है कि इस विश्वविद्यालय से पढ़ा छात्र विद्वान तो होगा ही। लेकिन इस धारणा को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र मनोज सिन्हा ने अपनी विद्वत्ता से एक झटके में बदल दिया। उन्होंने महात्मा गांधी की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल खड़े किए। कहा बाबा पर वकालत की कोई डिग्री,सिग्री नहीं थी।एक डिप्लोमा भर था। मनोज सिन्हा भाजपा के नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री और अब जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल है।उनकी विद्वता पर मैं कोई सवाल खड़े नहीं कर सकता।मेरी कोई हैसियत ही नहीं है। हैसियत होती तो भी मैं सिन्हा साहब को कुछ नहीं कहता। मैंने सिन्हा के भाषण के वक्त कान में उंगली लगा ली थी।इस वजह से तकलीफ कुछ कम हुई। मुझे पता है कि दीवार पर सिर पटकने से दीवार नहीं सिर फूटता है। हमारे एक साथी ने सिन्हा के सामान्य ज्ञान को चुनौती देते हुए कानूनी नोटिस भेजा है कि सिन्हा साहब माफी मांगे।वे तो माफीवीरों की संस्था से ही आते हैं। माफी मांग भी लेंगे, लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है।वे बीएचयू की मान प्रतिष्ठा की प्रतिष्ठा तो बढ़ने वाली है नहीं और गांधी जी की मान प्रतिष्ठा पर कोई फर्क पड़ने वाला है नहीं। हकीकत ये है कि मनोज सिन्हा साहब जिस संस्था से आते हैं वहां डिग्रियों का नहीं अंतरध्वनियों को महत्व दिया जाता है। लोग प्रधानमंत्री जी की डिग्रियों पर खामखां सवाल करते हैं। अरे डिग्री से होता क्या है। हमारे सूबे के राज्यपाल के पास कोई डिग्री नहीं है और सिन्हा साहब के पास है, तो क्या फर्क पड़ा? जहां सब धान एक दाम पर खरीदे,बेचे जाते हों वहां डिग्रियों की बात करना ही बेमानी है।

दरअसल सिन्हा का कुनवा बिना डिग्री के राष्ट्र पिता से लेकर राष्ट्र प्रमुख तक चाहता है। उनकी पार्टी विश्वविद्यालय की डिग्री में यकीन नहीं करती। मजबूरी में जेएनयू के डिग्रीधारी उनके यहां वित्त मंत्री बनाना पड़ते हैं क्योंकि वित्त का काम बिना डिग्री के नहीं चलता।अगर मुमकिन होता तो कोई सीतारमण देश का वित्त मंत्री ने बनता। बात मनोज सिन्हा के सामान्य ज्ञान की चल रही थी।वे अपनी डिग्री पर बड़े इतराते थे,सो उन्हें पहले रेल मंत्रालय से हटाया फिर बाद में उत्तर प्रदेश की राजनीति से और भेज दिए गए जम्मू कश्मीर। वहां जाकर भी मनोज सर का रंग रूप ही निखरा, बुद्धि नहीं बदली।वे आई आई टी पढ़कर भी नागपुर विश्वविद्यालय की छाया से मुक्त नहीं हो सके।बार बार कहते हैं कि न आइंस्टीन पर कोई डिग्री थी और न गांधी पर। शायद वे कहना चाहते हैं कि देश के प्रधानमंत्री के पास भी डिग्री न होना कोई पाप नहीं है। हमारा भी अनुभव है कि आदमी बिना डिग्री के भी डिग्रीधारकों से बेहतर काम कर सकता है। माननीय प्रधानमंत्री जी ने ये प्रमाणित कर दिखाया है।वे देश और देश की संसद को कांग्रेस विहीन करने में लगे हैं। ऊपर वाला उन पर मेहरबान है,सो उन्हें लगातार कामयाबी भी मिल रही है। उनके मन की बात देश की जनता समझे या न समझे किंतु अदालतें समझ रही है। आप रायशुमारी करा लीजिए,इस दुनिया में बहुमत डिग्री वालों का नहीं बिना डिग्री वालों का निकलेगा। देश, दुनिया को डिग्री वाले नहीं अंतरध्वनियों को पहचानने वाले प्रतिभाशाली लोग चाहिए। बिना डिग्री वाले , डिग्री वालों से लाख गुना ज्यादा श्रेष्ठ हैं। ऐसे में भला कौन नहीं मनोज सिन्हा नहीं होना चाहेगा ? भाजपा के पास एक और डिग्री वाले यशवंत सिन्हा थे, शत्रुघ्न सिन्हा थे। उन्होंने भाजपा की नाक में दम कर दी थी। उन्होंने साबित कर दिया था कि डिग्री वालों में अंतरध्वनियों को सुनने की क्षमता नहीं होती। महात्मा गांधी हमेशा कहते थे कि उन्हें माफ करो जो डिग्रीधारी होकर भी बिना डिग्री वालों की आराधना करते हैं। मैंने तो मनोज सिन्हा साहब की बात पर ध्यान ही नहीं दिया।देता भी क्यों ? आखिर उन्होंने अपना ज्ञान नहीं अज्ञान ही तो प्रकट किया है। मै तो कहता हूं कि अगले आम चुनाव में डिग्री वालों के चुनाव लड़ने पर ही रोक लगा देना चाहिए।न रहेगा बांस,न बजेगी बांसुरी।अमृतकाल में देश बाबाओं,संत, महंतों और योगियों के हाथों में होना चाहिए। ये लोग ही सत्ता की जरूरत हैं। वक्त की जरूरत है मै अपने भावुक और जल्द आहत होने वाले मित्रों से अनुरोध करूंगा कि वे न सिर्फ सिन्हा साहब को बल्कि उनके पूरे कुनबे को माफ करें।

व्यक्तिगत विचार आलेख

श्री राकेश अचल जी  ,वरिष्ठ पत्रकार  एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश  ।

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