Dear friends Namaste from bharatbhvh.com
Friends The identity of any inanimate conscious being that exists in the entire universe is above all from its motherland. The qualities and nature inherent in our motherland are present in our inner soul till the last moment. Although in the present global environment every action and deed of our life including social, economic, spiritual, political may contain different types of cultures. But our origin can always be meaningful in our native culture and the sense of co-existence inherent in education which has given us the best dimension of life and has inherited it in the form of eternal tradition (Sanatan dharma) . Just as every plant is best reflected in its native soil, whether the condition are unfavorable or favorable. In the same way the journey of the soul can be most successful only with the qualities acquired from its native land.
Our aim is to make the whole world aware of the contribution and vision of great India in every field of human life, along with contemporary political socio-cultural news. To behave like one’s country in every period, situation of human life and to achieve the ultimate goal of our life by integrating the ancient knowledge in the present.
We have full hope and confidence that you will give your immense positive support to this small effort of ours.
Therefore ‘Bharatbhvh’ means to become one with qualities and nature like the ‘Great India’.
Thank you.
Editor
“Mother & birth-land are better than heaven.”
प्रिय साथियो, सादर प्रणाम
मित्रो ,संपूर्ण ब्रंहाण्ड में अस्तित्व रखने वाले किसी भी जड़, चेतन, जीव की पहचान सर्वोपरी उसकी मातृभूमि से होती है अपनी मातृभूमि में निहित गुण-धर्म अंतिम क्षण तक हमारी अंर्तआत्मा में विधमान होते है, वर्तमान की वैष्विक परिवेष में हमारे जीवन के सामाजिक , आर्थिक ,आध्यात्मिक ,राजनैतिक सहित प्रत्येक क्रिया एवं कर्म क्षेत्र में भले ही विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों का समावेष हो लेकिन हमारा मूल सदैव अपनी संस्कृति एवं उनमें निहित सह-अस्तित्व की संवेदना, शिक्षा में ही सार्थक हो सकता है जिसने हमें जीवन के सर्वश्रेष्ठ आयामों को समेटकर सनातन परम्परा के रूप में विरासत में दिया है जिस प्रकार प्रत्येक वनस्पिति अपनी मूल माटी में ही श्रेष्ठतम गुणों के साथ परिलाक्षित होती है फिर चाहे परिस्तिथिया प्रतिकूल हों या अनुकूल ठीक उसी प्रकार प्रत्येक जीवआत्मा की यात्रा अपनी जन्मभूमि मातृभूमि से प्राप्त गुणधर्म के साथ ही सफलतम पूर्ण हो सकती है।
हमारा उददेष्य समसामायिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक समाचारों के साथ-साथ संपूर्ण विश्व को मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ‘महान भारत’ के योगदान और दृष्टिकोंण से परिचित कराना है। मानव जीवन के प्रत्येक कालखंड, परिस्थिति में अपने देश की भांति व्योवहार एवं पुरातन ज्ञान को वर्तमान में समाहित कर अपने जीवन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करना है।
“अतः ‘भारतभवः’ का अर्थ महान भारत देश के समान गुण-धर्म वाला हो जाने से है।”
हमें पूर्ण आशा एवं विश्वास है कि आप हमारे इस लघु प्रयास को अपना विराट सकारात्मक सहयोग प्रदान करेंगे ।
धन्यवाद ।
संपादक
भारतभव: . काम
“जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” ॥
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