राजनीतिनामा

मप्र: स्थानीय निकाय चुनाव में स्थापित नेताओं की तूती

भोपाल। 27 सितंबर को प्रदेश में होने जा रहे 46 नगरीय निकाय के चुनाव के लिए रविवार शाम को प्रचार जरूर थम गया लेकिन प्रत्याशियों के दिलों की धड़कन बढ़ गई है क्योंकि यह चुनाव पूरी तरह से वहां के स्थानीय स्थापित नेताओं के भरोसे पर लड़े जा रहे हैं। कहीं दबाव प्रभाव का तो कहीं स्वभाव का जलवा दिखाई दे रहा है।

दरअसल, चुनाव भले ही छोटे हो लेकिन इनके संदेश बड़े हैं। खासकर उन नेताओं के क्षेत्र में चुनाव हो रहे हैं जो प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। शायद यही कारण है कि पार्षद पद के प्रत्याशी पूरी तरह से अपने स्थानीय नेता के भरोसे हैं। बहुत कम जगह पार्टी नेताओं की भूमिका नजर आ रही है। प्रदेश में 1 साल बाद विधानसभा के आम चुनाव होना है उसके पहले इन चुनाव को पेनाल्टी कार्नर की तरह देखा जा रहा है। जिसमें पूरी तरह से चुनाव जिताऊ भूमिका में स्थानीय विधायक या मंत्री की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है।

खासकर मंत्री गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, ठाकुर विजय शाह, विधायक कांग्रेस झूमा सोलंकी, हर्ष विजय गहलोत, विजयलक्ष्मी साधो जिनके विधानसभा क्षेत्र गढ़ बन चुके हैं वहां पर यह चुनाव परोक्ष रूप से इन्हीं को लड़ना पड़ रहा है। रविवार शाम को चुनाव प्रचार थमने के पहले क्षेत्रों में आम सभा आयोजन भी किया गया और जहां अंतर साफ नजर आया। मसलन मंत्री गोपाल भार्गव के गढ़ाकोटा क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस की सभाए हुई। भाजपा की सभा गढ़ाकोटा बस स्टैंड पर हुई। जिसमें हजारों की संख्या में भीड़ थी वहीं कांग्रेस की सभा बजरिया में हुई जोकि सैकड़ा की भी संख्या की भीड़ नहीं जुटा पाए।

भाजपा की सभा में मंत्री गोपाल भार्गव ने जहां राज्य और केंद्र में भाजपा की सरकार होने से गढ़ाकोटा के विकास में और गति लाने के लिए सभी पार्षदों को जिताने की बात कही उन्होंने तब गढ़ाकोटा कैसा था और अब गढ़ाकोटा कैसा है, इसका अंतर भी समझाया। भाजपा जिला अध्यक्ष गौरव सिरोठिया और भाजपा नेता अभिषेक भार्गव ने भी सभा को संबोधित किया। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की सभा में अधिकांश वक्ता भार्गव की आलोचना करते रहे। अंतिम सभा में भीड़ का जो अंतर था उससे भाजपा खेमे में उत्साह तो कांग्रेस में मायूसी देखी गई। सागर जिले की खुरई विधानसभा की खुरई नगर पालिका में अब मतदान केवल औपचारिकता जैसा रह गया है क्योंकि 32 वार्डों में से 21 वार्ड भाजपा निर्विरोध जीत चुकी है, केवल 11 वार्डों में चुनाव हो रहे हैं। जिनमें से कांग्रेस केवल 2 वार्डों में लड़ रही है।

कोई आश्चर्य नहीं यहां भाजपा सभी वार्ड में जीत दर्ज कर ले यहां के विधायक रहे कांग्रेसी नेता अरुणोदय चौबे के कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद कांग्रेसियों निराशा छा गई है। सागर और भोपाल के कांग्रेसी भी सभी वार्डों में कांग्रेस के प्रत्याशी नहीं कर पाए। मंत्री भूपेंद्र सिंह लगातार कांग्रेस मुक्त खुरई करने का अभियान चलाए हुए। सागर जिले की ही कर्रापुर नगर परिषद में सभी वार्डों में रोचक मुकाबला है लेकिन जिस तरह से भाजपा संगठन में पिछले एक सप्ताह में जमीनी जमावट की है और स्थानीय विधायक प्रदीप लारिया मेहनत कर रहे हैं। उसके बाद यहां भी भाजपा की उम्मीदें बढ़ गई है। प्रदेश में इस समय हरसूद नगर परिषद के चुनाव की चर्चा ज्यादा हो रही है क्योंकि यहां 15 वार्डों में से 11 वार्डों में हिंदू महासभा ने प्रत्याशी मैदान में उतार दिए। लगातार 7 बार चुनाव जीत रहे मंत्री विजय शाह को पार्षद के इन चुनावों में पसीना बहाना पड़ रहा है।

प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत शर्मा भी यह सभा करके गए हैं। आखरी समय तक हिंदू महासभा को मनाने के प्रयास भी चल रहे हैं। कुछ इसी तरह खरगोन के भीकनगांव नगर परिषद के चुनाव में कांग्रेस विधायक झूमा सोलंकी को अपने गढ़ में सेंध लगने का खतरा लग रहा है। सबसे गढ़ बचाने की मशक्कत कांग्रेस विधायक हर्ष विजय गहलोत को करनी पड़ रही क्योंकि सैलाना नगर परिषद पर भाजपा कभी अपना अध्यक्ष नहीं बैठा पाई और इस बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लेकर सैलाना की पूर्व विधायक संगीता चारोल तक पूरी कोशिश कर रहे हैं कि भाजपा यहां अध्यक्ष पद पर काबिज हो जाए। मुख्यमंत्री की सभा के बाद मुकाबला दिलचस्प हो गया है। सभी 15 वार्डों में कुछ इसी तरह महेश्वर और मंडलेश्वर नगर परिषद में पूर्व मंत्री और कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री विजयलक्ष्मी साधो को मतदाताओं को साधने में एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। भाजपा यहां 2017 की तरह मंडलेश्वर में जीत का दावा कर रही है जबकि साधु का पूरा जोर है कि किसी तरह महेश्वर नगर निकाय तो कम से कम कांग्रेस के पक्ष में बची रहे।

कुल मिलाकर प्रदेश के 46 नगरी निकाय के चुनाव में 27 सितंबर को मतदान होना है जिसके लिए चुनाव प्रचार थम गया है लेकिन किसका जोर चलेगा और किसको लगेगा झटका उसका फैसला तो 30 सितंबर को ही पता चलेगा लेकिन यह चुनाव पूरी तरह से पार्षद प्रत्याशियों से ज्यादा वहां के स्थानीय स्थापित नेताओं के चेहरे पर हो रहे हैं यही कारण है कि दिग्गज नेताओं को अपना गढ़ बचाने के लिए जो लगाना पड़ रहा है।

 

देवदत्त दुबे भोपाल मध्य्प्रदेश 

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