राजनीतिनामा

जमानत से जनमत तक का सफर

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की राजनीति को अक्षय तृतीया के दिन जमानत के रूप में नवजीवन मिल गया। जमानत अंतरिम है और केजरीवाल को 2 जून को दोबारा अदालत के समक्ष समर्पण करना होगा ,लेकिन वे अपनी जमानत की अवधि में अठारहवीं लोकसभा के लिए होने वाले शेष चार चरणों के चुनाव में खुलकर न सिर्फ प्रचार कर पाएंगे बल्कि भाजपा की उन तमाम साजिशों को भी बेनकाब भी कर पाएंगे जो दस साल से विपक्ष के खिलाफ की जा रहीं हैं।अरविंद केजरीवाल के लिए अच्छा हुआ की वे 50 दिन की जेल यात्रा कर आये। स्वाधीनता से पहले जेल यात्राओं को एक तरह का बलिदान माना जाता था । आजादी के बाद जेल यात्राओं का रंग ही बदल गया। अब नेता भ्र्ष्टाचार के आरोपों में जेल जाते हैं। जनांदोलनों के चलते जेल जाने वालों की संख्या लगातार घटी है। केजरीवाल हालाँकि आंदोलन की कोख से निकले ही नेता हैं ,,लेकिन हैं तो पुराने नौकरशाह। इसीलिए वे भाजपा के मोदी और शाह से टक्कर ले पा रहे हैं। उन्हें जेल भी शायद इसीलिए जाना पड़ा लेकिन क़ानून ने उनकी मदद की और अंतत: अंतरिम जमानत दिला दी।लोकसभा चुनाव के चार चरण अरविंद केजरीवाल के बिना समपन्न हो गए। विपक्षी आईएनडीआईए गठबंधन को केजरीवाल से जो लाभ मिलना चाहिए था ,उतना नहीं मिल पाया। लेकिन जमानत पर आने के बाद वे बीस दिन में इतना कुछ काम कर लेंगे की भाजपा सरकार को चुनौती दी जा सके। अरविंद पहले भाजपा की बी टीम समझे जाते थे किन्तु बाद में वे इस छवि से बाहर निकल आय। उन्होंने शराब घोटाले में अपने आपको लपेटे जाने के बाद भाजपा के खिलाफ कमर कास ली थी। केजरीवाल और उनकी पार्टी की हैसियत इस समय कांग्रेस को छोड़ दीगर क्षेत्रीय दलों से कहीं ज्यादा है। उनकी अकेली ऐसी पार्टी है जिसकी एक से अधिक राज्यों में सरकारें हैं। आम आदमी पार्टी को केजरीवाल एंड कम्पनी दिल्ली से बाहर पहले पंजाब तक ले गयी और बाद में उसने गोवा,गुजरात में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। और अब आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर भाजपा को अपदस्थ करने के महाअभियान में शामिल है।
                                             आपको पता ही है की भाजपा की इस समय सिट्टी-पिट्टी गुम है । भाजपा अपने घोषणा पत्र के आधार पर चुनाव लड़ने के बजाय उन मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है जो की उसे काँग्रेसने दिए हैं। भाजपा अब मोदी जी के चेहरे और मोदी जी की गारंटियों पर चुनाव नहीं लड़ रही । चुनाव जीतने के लिए भाजपा को हारकर हिन्दू-मुसलमान पर आना पड़ा । मतदाताओं को अल्पसंख्यक मुसलमानों से आतंकित करने के लिए पहले मंगलसूत्र छीने जाने ,बाद में विरासत पर कार लगाए जाने और सबसे बाद में अंकल सैम पित्रोदा के निजी बयानों का इस्तेमाल करने पर विवश होना पड़ा। केजरीवाल के जेल से बाहर आने के बाद अब भाजपा कौन से हुआ खड़ा करेगी ये कहना कठिन है।केजरीवाल अपनी अंतरिम जमानत का इस्तेमाल जनमत को आईएनडीआईए के पक्ष में बनाने के लिए कार सकते है। वे मुख्त वक्ता हैं। दिल्ली में उनकी पार्टी की राज्य सरकार है। सबसे बड़ी बात तो ये हैं की वे कंगाल नहीं हैं। पंजाब में भी उनकी सरकार है। दिल्ली की जनता उन्हें पसंद करती है। इसका असर दिल्ली की ७ लोकसभा सीटों के अलावा दुसरे राज्यों पर भी पडेगा। अब विपक्ष के पास राहुल हैं ,अखिलेश भी हैं और केजरीवाल भी। ये तिकड़ी भाजपा का खेल बिगाड़ने के लिए काफी है। भाजपा जितने हौवे मतदाताओं को भयभीत करने के लिए खड़े कर सकती थी ,वो कर चुकी। अरविंद को भाजपा हौवे की तरह इस्तेमाल नहीं कर सकती। वे प्रखर वक्ता हैं ,नेता है और मोदी से किसी भी मायने में कम नहीं हैं।मोदी जी की घबड़ाहट और केजरीवाल की रण में वापसी के चलते चुनाव के शेष चार चरण और महत्वपूर्ण होने वाले हैं। अभी कोई 260 सीटों के लिए मतदान होना बाक़ी है। इन सीटों में से अरविंद केजरीवाल कितनी सीटों को प्रभावित कर सकते हैं कहना कठिन है ,लेकिन ये लगभग तय है की भाजपा के 370 बनाम 400 पार का लक्ष्य अब भाजपा के लिए आसान नहीं है। केजरीवाल को मिली जमानत इसी तरह के दूसरे मामलों में विचाराधीन कैदी की तरह जेलों में बंद दुसरे जन नेताओं के लिए भी नजीर का काम कर सकती है।अरविन्द भ्रष्ट हैं या नहीं इसका प्रमाण पत्र तो उन्हें अदालत और जनता की अदालत से मिलेगा, लेकिन वे जन नेता हैं इसका प्रमाण पत्र उन्हें शायद नहीं चाहिए।अब वे मोशा के सिर पर सवार दूसरे राजनीतिक भूत हैं, जो भाजपा की विजय यात्रा पर किसी ग्रहण की तरह लग चुके हैं।4 जून 2024 तय करेगा कि जनता जीती या हारी ? @ राकेश अचल जी

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