दिग्विजय सिंह ने 1993 से लगातार 10 सालों तक मुख्यमंत्री रह कर मध्य प्रदेश की राजनीति में नया कीर्तिमान बनाया था। उनके पहले इतने लंबे समय तक कोई भी राजनेता मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री नहीं रहा था । साल 2003 में एक बार फिर नया इतिहास बनाने वह विधानसभा चुनाव में उतरे थे अपनी सोशल इंजीनियरिंग और चुनावी प्रबंधन के दम पर उन्हें जीत का पूरा भरोसा था इतना भरोसा कि उन्होंने घोषणा कर दी थी कि यदि वे सरकार नहीं बना पाए तो 10 साल तक कोई पद नहीं लेंगे यह कोई घोषणा नहीं थी बाद में उन्होंने सचमुच में ऐसा ही किया।
भाजपा ने दिग्विजय सिंह को रोकने की जिम्मेदारी उमा भारती को सौंपी उमा भारती ने पूरा चुनाव बिजली-सड़क-पानी के मुद्दों पर केंद्रित किया और दिग्विजय सिंह को मिस्टर बंटाढार कहकर संबोधित करना चालू कर कर दिया उन दिनों राज्य में खराब सड़कें और बिजली संकट प्रमुख विषय हुआ करते थे क्योंकि लोग परेशान थे लिहाजा बीजेपी की यह उपमा मिस्टर बंटाधार लोगों के दिलों दिमाग तक उतर गई। उमा भारती की प्रचार शैली के चलते दिग्विजय पर चस्पा हुआ मिस्टर बंटाधार का लेवल चुनाव दर चुनाव चलता रहा समूची कांग्रेश और स्वयं दिग्विजय से तमाम प्रयासों के बाद भी आखिर तक बंटाधार की छाया से मुक्ति नहीं पा सके। एक तरफ उमा भारती अभियान के रूप में प्रचार कर रही थी दूसरी तरफ आरएसएस और उनके अनुषांगिक संगठन हिंदुत्व और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के माध्यम से वोट बैंक को संगठित कर रहे थे। उन्हीं दिनों प्रदेश के विभिन्न इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा और उठापटक की घटनाएं सुनियोजित पर तेज हो गई । उन्ही दिनों महू के पास खुर्दी गांव में कांग्रेस के आदिवासी नेता प्यारसिंह निनामा और उनके पुत्र की हत्या कर दी गई। हत्या में आर एस एस के प्रचारक सुनील जोशी का नाम प्रमुखता से आया बाद में सुनील जोशी और साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का नाम मक्का मस्जिद ब्लास्ट और समझौता एक्सप्रेस कांड में भी आया। इन घटनाओं में 110 से ज्यादा लोग मारे गए थे बाद में प्रज्ञा ठाकुर इस मामले में बरी हो गई। इसके पहले 2007 में सुनील जोशी की हत्या कर दी गई ।
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महू की घटना के अलावा धार झाबुआ और गंजबासौदा में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा की घटनाएं हुई वैसे भी 2003 का साल सत्ताधारी दल के लिए बहुत अच्छा नहीं था सरकारों के हिसाब से कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था इस साल पूरे प्रदेश में जमकर सूखा पड़ा था ऐसा माना जाता है कि यदि चुनावी साल में सूखा पड़ जाए तो सत्ताधारी दल की हार सुनिश्चित रहती है। ऐसे में दिग्विजय सिंह ने कह दिया था कि जिस देश का राजा कुंवारा होता है वहां सूखा पड़ता है ऐसी लोक मान्यता है। उन दिनों राष्ट्रपति डा अब्दुल कलाम और प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई दोनों ही स संयोग से कुंवारे थे।
बिजली संकट भी उन दोनों इतना विकट था कि भोपाल जैसे शहर में 6- 6 घंटे कटौती होती थी भाजपा ने इस स्थिति का खूब फायदा उठाया रोज बिजली के खिलाफ प्रदर्शन होते 1 दिन भयंकर गर्मी के मई महीने में मुख्यमंत्री निवास को भाजपा के प्रदर्शनकारियों ने तीन तरफ से घेर लिया मुख्यमंत्री अपने घर तक नहीं जा पाए क्योंकि कार्यकर्ता सड़कों पर रात भर डटे रहे। बिजली ही नहीं उन दिनों सरकार द्वारा प्रदेश में दलित एजेंडा लागू किया गया था उसके क्रियान्वयन को लेकर मुख्यमंत्री दिग्विजय से काफी सक्रिय थे लेकिन इसका बहुत विरोध भी था। राजगढ़ जिले में जब ऊंची जाति के लोगों ने दलितों की जमीन पर अपने मवेशी छोड़कर फसल चरवा दी तब सरकार ने 5 गांव पर सामूहिक जुर्माना ठोक दिया इन 5 गांव के 800 परिवारों पर ₹2500000 का जुर्माना तमिल किया गया। इस तरह की घटनाओं ने कांग्रेस का वातावरण बहुत बिगाड़ा उस साल बदलाव का माहौल स्पष्ट समझा में आ रहा था टीकमगढ़ में आयोजित मांझी समाज के एक कार्यक्रम में कांग्रेसी नेता यादवेंद्र सिंह के भाई ने जब हंगामा किया तो दिग्विजय से 20 से ज्यादा लोगों पर पुलिस कार्रवाई करवा कर मामला दर्ज करा दिया। ग्वालियर में दिग्विजय सिंह ने अगस्त क्रांति के उपलक्ष में 10 अगस्त को एक सम्मेलन बुलाया था 11:00 बजे बुलाये गए सी सम्मेलन में जब महज पांच सात सौ लोग ही पहुंचे तो मुख्यमंत्री ने सर्किट हाउस में ही रुकना उचित समझा , उसके बाद 2:00 बजे जाकर वह सभा तब हो सकी जब मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा के अनुरूप भीड़ हो गयी ।
केवल भीड़ ही नहीं उन दिनों में अक्सर दिग्विजय सिंह की सभाओं में विरोध हो जाता था विरोध करने वाले ज्यादातर कांग्रेसी ही होते थे भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन द्वारा 13 अप्रैल 2003 को अंबेडकर जयंती पर इंदौर के रविंद्र नाट्य गृह में आयोजित कार्यक्रम में 1 घंटे देरी से पहुंचे छात्रों ने उनका विरोध किया सीटियां बजाने लगे तब उन्होंने खुद ही जाकर बिना उद्घोषक की चिंता किए दीप प्रज्वलित कर दिया ,इतना ही नहीं 5 मिनट में मंच छोड़कर चल भी लिए।
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