बारहवीं विधानसभा में तेरह सालों के बाद जब भाजपा सत्ताधारी दल के रूप में आई तब विधानसभा में जमुना देवी को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया। इन सालों में विधानसभा का भवन बदल चुका था। पहली बार चार्ल्स कोरिया के बनाये भवन में उमा भारती मुख्यमंत्री के लिए निर्धारित सदन की पहली सीट पर बैठीं। इस भवन में वे भाजपा की तरफ से पहली सदन की नेता थीं। इसके पहले कोई भी भाजपा का विधायक इसमें मुख्यमंत्री के तौर पर नहीं बैठा। पहले दिन उमा भारती ने बड़ा ऐतिहासिक भाषण सदन में दिया। उन्होंने अपने जीवन की संघर्ष भरी कहानी और सामंती शोषण की जो तस्वीर पेश की उससे लगा कि लोकतंत्र सचमुच में महान है, सभी को समान अवसर देता है। विधानसभा में उमा भारती और चार मंत्रियों ने संस्कृत में शपथ ली। संस्कृत में शपथ लेने वाले मंत्रियों में गोपाल भार्गव, कैलाश विजयवर्गीय, रमाकांत तिवारी एवं ओमप्रकाश धुर्वे थे।
इसी तरह विधायक यशोधरा राजे सिंधिया, सुधा जैन, जालम सिंह पटेल एवं सुनील नायक ने भी संस्कृत में शपथ ली। कांग्रेस के इन्द्रजीत पटेल, केपी सिंह एवं निशीथ पटेल ने भी संस्कृत में शपथ ली। मुख्यमंत्री सचिवालय में काम करने के लिए अधिकारियों के चयन के साथ उमा भारती ने अतुल जैन, अनिल दवे, निर्मला बुच को अपना सलाहकार बनाया। अतुल जैन एक रुपये मासिक के वेतन पर नियुक्त हुए। इसके पहले वे उमा भारती के मीडिया सलाहकार हुआ करते थे। इन नियुक्तियों के लिए बाकायदा “मुख्यमंत्री के सलाहकार” पद का सृजन किया गया। अनिल दवे और अतुल जैन चुनाव अभियान के समय उमा भारती की टीम अभिन्न अंग थे। मुख्यमंत्री बनने के साथ उमा भारती इन्हें अपनी टीम से अलग नहीं करना चाहतीं थीं। दोनों अपने स्टाफ में रखने तथा फाइलों को देखने का अधिकार देने के लिए सलाहकारों को सरकारी हैसियत देना जरूरी था। इसलिए इनको सरकारी सेवा शर्तों के साथ नियुक्त किया गया। निर्मला बुच, सुन्दरलाल पटवा की पिछली भाजपा सरकार में मुख्यसचिव रह चुकीं थीं। इसलिए प्रशासनिक देख-रेख के लिए उन्हें सलाहकार बनाया गया। चूंकि पूरी नौकरशाही पर दिग्विजय सिंह की छाप लगी थी इसलिए मुख्यमंत्री ने निर्मला बुच को अपने पास रखा जिससे नौकरशाही का “दिग्विजय प्रेम” पकड़ा जा सके।
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक
श्री दीपक तिवारी कि किताब “राजनीतिनामा मध्यप्रदेश” ( भाजपा युग ) से साभार ।