राजनीतिनामा

बिलावल की बिलबिलाहट और हम

भारत में एक कहावत है कि बांस के पौधे में गांठ पड़ती है। ये एक बार पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो द्वारा भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी पर की गई टिप्पणी से प्रमाणित हो गया है। भारत ने बिलावल भुट्टो को बिना वजह क गई टिप्पणी क माकूल जवाब दे दिया। गनीमत है कि बिलावल क बिलबिलाहट की वजह से भारत में कोई खास हलचल नहीं हुई। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी अपने देश में भले ही रोजाना विरोधियों की किलो, दो किलो गालियां खाते हों लेकिन भारत के बाहर किसी को ये हक नहीं क कोई उनके बारे में एक भी अपशब्द कहे। खासतौर पर पाकिस्तान को ये अधिकार तो बिल्कुल नहीं है। भारत की आवाम को शायद ठीक से पता नहीं है कि बिलावल भुट्टो ने मोदी जी को लेकर क्या बकवास की है? बिलावल भुट्टो ने पिछले दिनों अमेरिका में एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के विदेश मंत्री जयशंकर द्वारा आतंकवाद पर की गई परोक्ष टिप्पणी से बिलबिला कर मोदी जी को गरियाना शुरू कर दिया। उसने कहा, कि“ओसामा बिन-लादेन की तो मौत हो चुकी है लेकिन ‘गुजरात का कसाई’ अब भी ज़िंदा है और वह भारत के प्रधानमंत्री हैं. उन पर अमेरिका ने अपने यहाँ आने पर पाबंदी लगा दी थी और यह पाबंदी उनके पीएम बनने तक लगी रही. भारत के प्रधानमंत्री आरएसएस के हैं और विदेश मंत्री भी आरएसएस के हैं. आरएसएस क्या है? आरएसएस हिटलर के एसएस से प्रेरणा लेता है. आरएसएस गांधी की विचारधारा में भरोसा नहीं करता है बल्कि गांधी के हत्यारे आतंकवादी में विश्वास करता है.” बिलावल भुट्टो ज़रदारी की उम्र महज़ 34 साल है. वो इसी साल अप्रैल महीने में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बना है। कोई 18 साल पहले 27 दिसंबर, 2007 को माँ बेनज़ीर भुट्टो की हत्या के बाद बिलावल भुट्टो को पाकिस्तान पीपल्स पार्टी का उत्तराधिकारी घोषित किया गया था उस वक्त बिलावल महज़ 19 साल का था और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के क्राइस्ट कॉलेज में इतिहास में ग्रेजुएशन कर रहा था।
                        बिलावल भुट्टो भारत के राहुल गांधी तो नहीं है लेकिन उनकी विरासत एक सी है।विरासत और तरबियत में फर्क है। लगता है कि इस मामले में बिलावल भुट्टो बदनसीब निकले।उनकी तरबियत में बहुत कमी रह गई और वे न राजनीतिक शब्दावली सीख पाए न कूटनीतिक।धोबी के श्वान की तरह न घर के रहे न घाट के।और अब तो वे बेनकाब हो गये हैं। मुझे याद है कि बिलावल भुट्टो नाम के इस बच्चे को 2009 में अमेरिका-पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान के एक सम्मेलन में पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनाया गया था. तब उनके पिता आसिफ़ अली ज़रदारी पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे और बिलावल की उम्र 21 साल थी. विदेश मंत्री बनने से पहले इस अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने के अलावा बिलावल के पास कूटनीतिक मामलों में कोई अनुभव नहीं था. शहबाज़ शरीफ़ की सरकार में बिलावल को विदेश मंत्रालय दिया गया तब कहा जा रहा था कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामले में सबसे मुश्किल दौर में है, विदेश मंत्रालय की बागडोर ऐसे व्यक्ति के हाथ में सौंप दी गई है जिनके पास कोई अनुभव नहीं है. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 15 दिसंबर को न्यूयॉर्क में पाकिस्तान के तमाम आरोपों का जवाब देते हुए पाकिस्तान का नाम लिए बिना कहा, कि “जो देश सीमा पार आतंकवाद को आधिकारिक रूप से प्रश्रय देता है, जो ओसामा बिन लादेन को पनाह देता है, जिस देश की भूमिका भारतीय संसद पर हमले में थी, वह आंतकवाद पर उपदेश नहीं दे सकता है.” बिलावल भुट्टो की बचकानी, बेवकूफी भरी इस टिप्पणी को असभ्य बताते हुए भारत के विदेश मंत्रालय ने जवाब दे दिया.जबकि इसकी जरूरत थी नहीं। पाकिस्तान बीते 75 साल में एक सभ्य देश,पडौसी और दोस्त बनने की काबिलियत हासिल कर ही नहीं सका। ऐसे में बिलावल भुट्टो की बदजुबानी का क्या दोष ? काश ! आज बिलावल भुट्टो की मां बेनजीर जीवित होती। बेनजीर भी उसी आतंकवाद की शिकार हुई थी,जिसे लेकर बिलावल बिलबिला रहे हैं। वे होतीं तो शायद बिलावल का कान पकड़कर उससे माफी मांगने को कहतीं। मेरा मानना है कि बिलावल भुट्टो ने सस्ती लोकप्रियता हासिल करने और पाकिस्तानी अवाम को खुश करने के लिए मोदी जी पर अभद्रतापूर्ण हमला किया। वरना उसके बयान में नया क्या है ? गुजरात में नाइंसाफ़ी हुई है, ये सच है. आकाश नीला है, ये सच है, नई बात यह है कि बिलावल ने अपनी हैसियत भूलकर गलत समय,गलत मंच से गलत तरीके से अपनी बात कही। हम उस पीढी के लोग हैं जिन्होंने जुल्फिकार अली भुट्टो से लेकर इमरान खान तक का बनाया पाकिस्तान देखा है। हमने टूटता,बिलखता,भूख से तड़पता, बारूद के ढेर पर बैठा पाकिस्तान देखा है। हमें हमेशा पाकिस्तान की बदकिस्मती पर तरस आता है, लेकिन जब वहां कोई बिलावल भुट्टो बिलबिलाता है तो लगता है कि पाकिस्तान के साथ ऊपर वाला जो बर्ताव कर रहा है, ठीक ही है।

व्यक्तिगत विचार-आलेख-

श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार , मध्यप्रदेश  । 

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