मध्यप्रदेश में भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह के दौरे के बाद सत्ता और संगठन में कई पहलू स्पष्ट रूप से सामने आये हैं उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण संदेश यह है कि अब कार्यकर्ता नेताओं की कृपा की दम पर नहीं बल्कि कर्मठता की दम पर पार्टी में पद पा सकेंगे और कर्मठता भी ऐसी की मजदूरी नहीं परिश्रम करना है जिसका परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाई दे।
दरअसल भारतीय राजनीति में पिछले दो दशक में अमूल चूल परिवर्तन आया है जिसमें राजनीतिक मैदान में वही दल या नेता जो पाएगा जो कम से कम 18 घंटे 365 दिन सक्रिय रहेगा। जिसके दरवाजे आम जनता के लिए हमेशा खुले रहेंगे जो कार्यकर्ताओं का ध्यान परिवार के सदस्यों की तरह रखेगा और अपने क्षेत्र के विकास के लिए अथक प्रयास करेगा। अन्यथा अब किसी दल की आंधी नहीं चलेगी मैनेजमेंट आधारित चुनाव होने लगे हैं और मैनेजमेंट अभी काम आएगा जब इतना सब कोई जनप्रतिनिधि कर पाएगा। भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी गुजरात से लेकर दिल्ली तक ऐसे ही राजनीति की पक्षधर रही है और इसी राजनीति को अब वे पूरे देश में भाजपा जनप्रतिनिधियों के बीच ले जा रहे हैं।
बहरहाल प्रदेश की राजनीति में अचानक से सक्रियता बढ़ गई है। एक दिवसीय अमित शाह के दौरे ने भाजपा नेताओं को अब तपती धूप में भी बाहर निकलने के लिए मजबूर कर दिया है क्योंकि अमित शाह ने भोपाल प्रवास के दौरान भाजपा नेताओं की बैठक में 2023 की तैयारियों के संबंध में महत्वपूर्ण टिप्स दिए शाह शुरू से ही बूथ मजबूत के पक्षधर तो रहे ही है। शायद इसी कारण उन्होंने इस बार कमजोर बूथ को जिताने की जिम्मेदारी दिग्गज नेताओं को सौंपने की तैयारी करवाई है। उन्होंने बैठक में स्पष्ट रूप से कहा चाहे मंत्री हो विधायक को सांसद हो या पार्टी पदाधिकारी हो सभी को कम से कम दस बूथ पर जाकर उन्हें मजबूत करना है। संगठन ने तीन श्रेणी के बूथो की जानकारी एकत्रित की है जिसमें ऐसे बूथ की भी संख्या है। जहां भाजपा कभी.कभार ही जीत पाई है। इसी प्रकार की कुछ विधानसभा सीटें भी हैं। जहां पार्टी भाजपा की लहर में भी चुनाव हार गई बूथों और विधानसभा क्षेत्रों को जीतने के लिए अमित शाह ने पार्टी के दिग्गज नेताओं को मैदान में सक्रिय करने के लिए कहा है। यही नहीं मंडल से लेकर प्रदेश स्तर के पदाधिकारी और मंत्री अब सभी की मॉनिटरिंग की जाएगी। सबके कामों का लेखा जोखा तैयार किया जाएगा। उन्होंने इशारों में यह भी संकेत दे दिए हैं कि किसी की कृपा पर पार्टी में पद नहीं मिलने वाले जो सकरी रहेगा और रिजल्ट ओरिएंटेड काम करेगा उसी को महत्त्व मिलेगा।
उन्होंने यहां तक कहा कि मजदूरी नहीं परिश्रम करो जिससे ऊर्जा का सदुपयोग हो सके। शाह ने जिस तरह से संगठन मैं काम करने को महत्वपूर्ण बताया और यहां तक कहा कि मैं भी जब अध्यक्ष बना था तब कम उम्र का था उम्र मायने नहीं रखती काम मायने रखता है। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा की बूथ विस्तारक योजना की सराहना की और यह भी दिखा दिया कि उन्हें एक एक नेता की दक्षता और क्षमता की जानकारी है। मसलन उन्होंने कहा गोपाल भार्गव अच्छे नेता है जनाधार वाले नेता हैं लेकिन यदि आदिवासियों के बीच भेजोगे तो इतने अच्छे परिणाम नहीं आएंगे मतलब साफ था कि किसका क्या उपयोग करना है और यह भी जानते हैं कि कौन नेता जनाधार वाला है और कौन नहीं।
कुल मिलाकर भाजपा में अब किया हुआ व्यर्थ जाता नहीं और किए बिना कुछ मिलता नहीं गीता के निष्कर्ष का फार्मूला लागू होने जा रहा है। यहां तक कि पार्टी के दिग्गज नेताओं की सक्रियता का आंकलन करने के लिए प्रदेश स्तर पर एक टीम का गठन किया जा रहा है। इस टीम की रिपोर्ट को दिल्ली भेजा जाएगा और उसके आधार पर ही अवश्य में नेताओं को जिम्मेदारियां मिलेगी। ेेवे लोग जो दिल्ली चक्कर लगाकर या नेताओं की परिक्रमा करके पद पाने की राजनीति कर रहे हैं। उनके लिए अमित शाह का इसारा काफी माना जा रहा है।
देवदत्त दुबे
भोपाल मध्यप्रदेश