राजनीतिनामा

कूनों के अफ्रीकी चीतों के फजीते

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर मध्य्प्रदेश के कूनों राष्ट्रीय अभ्यारण्य में छोड़े गए अफ्रीकी चीतों की जान आफत में है ।आफत में क्या है उनको जान के लाले पड़े हैं । पिछले छह महीने में 8 अफ़्रीकी चीते अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं .किसी भी चीते की मौत का कारण सपष्ट नहीं हो पाया है .बेचारे चीते 9 हजार किलोमीटर दूर से यहां आये थे कूनों को आबाद करने और अब खुद ही बर्बाद हो रहे हैं ।मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में एक और चीते की मौत हो गई। अफ्रीका से लाया गया मेल चीता सूरज का शव शुक्रवार सुबह मिला। कूनो में पिछले चार महीने में 8 चीतों की मौत हो चुकी है, जबकि इसी हफ्ते में मरने वाला ये दूसरा चीता है। इसी साल 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री जी के जन्मदिन पर नामीबिया से लाये गए 8 अफ़्रीकी चीतों को कूनों नेशनल पार्क में छोड़ा गया था .कूनों में 70 साल बाद ये छींटे नमूदार हुए थे । वैसे यहां आना तो गुजरात के गिर के शेर थे लेकिन गुजरात ने शेर देने से इंकार कर दिया तो विकल्प के तौर पर अफ़्रीकी चीतों को यहां लाया गया । .18 फरवरी को 12 चीतों की दूसरी खेप यहां लायी गयी थी । कुल छह महीने में ही कूनों का नेशनल पार्क 8 अतिथि चीतों की मौत का कारण बन गया ।
                                                  इन चीतों की मौत पर किसी ने भी आंसू नहीं बहाये ।आखिर चीतों का यहां है कौन ? प्रदेश के वन मंत्री विजय शाह का कहना है कि कहा कि जंगली जानवरों में ये आम बात है। ये मौतें भोजन या संभोग को लेकर लड़ाई के कारण हुईं। भारत सरकार की एक टीम आई है और हम अफ्रीका की टीम से भी संपर्क कर रहे हैं।’मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ कहते हैं कि ‘ राजनीतिक प्रदर्शन-प्रियता के लिए वन्य प्राणियों को शोभा की वस्तु नहीं बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जल्द ही ऐसा कोई प्लान बने, जिसमें प्राणियों के जीवन की रक्षा हो सके।’ जाहिर है कि चीते सियासत के किसी काम के नहीं होते,अन्यथा अभी तक प्रदेश और देश में सियासी तूफ़ान खड़ा हो जाता इन मूक वन्य प्राणियों की अकाल मौत पर ।कूनों में अफ्रीकी चीतों के मरने का सिलसिला 26 मार्च 2023 से शुरू हुआ जो लगातार जारी है। 26 मार्च को नामीबिया से लाई गई 4 साल की मादा चीता साशा की गुर्दे में संक्रमण से मौत हो गई थी ।साशा की मौत के जख्म को ज्वाला नाम की मादा चीते ने चार शावकों को जन्म देकर भर दिया था। ज्वाला के बच्चों के जन्म के साथ ही कूनो में शावकों सहित चीतों की संख्या 23 हो गईथी .लेकिन ये ख़ुशी ज्यादा दिन नहीं ठहरी । 23 अप्रेल को चीते उदय की मौत हो गई। शॉर्ट पीएम रिपोर्ट में बताया गया कि चीता उदय की मौत कार्डियक आर्टरी फेल होने से हुई।कूनों मेहमान चीतों के लिए माफिक ठहरा ही नहीं ।9 मई को नर चीता दक्षा प्रजनन के समय हुए संघर्ष में घायल होकर अपनी जान गंवा बैठा । फिर 23 और 25 मई को ज्वाला के चारों बच्चों की मौत हो गयी । 11 जुलाई को तेजस ने दम तोड़ दिया और अब सूरज भी नहीं रहा ।
                                                अफ़्रीकी चीतों की मौत को लेकर न भारत के अधिकारी चिंतित हैं और न दक्षिण अफ्रिका के । दोनों कहते हैं कि स्थान परिवर्तन के बाद प्राय ऐसा होता है । कोई इन मौतों के लिए बदइंतजामी को वजह नहीं मानता । अतिथि चीते इस बारे में किसी से शिकायत करने से रहे । ज्यादा कहिये तो विशेषज्ञ कहते हैं कि चीतों के बच्चों की मृत्यु दर 95 प्रतिशत है । यानि उन्हें तो मरना ही है. कूनों में मरें या दक्षिण अफ्रिका के अभ्यारण्यों में ।कूनों के चीता प्राजेक्ट को लेकर पहले से ही कहा गया था कि पहले साल आए 20 चीतों में से अगर 10 यानी आधे भी जीवित रह जाते हैं तो यह प्रोजेक्ट सफल माना जाएगा। दक्षिण अफ्रीका में प्रिटोरिया यूनिवर्सिटी के वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट एड्रियन टॉर्डिफ के हवाले से कहा जाता है कि इस प्रोजेक्ट में कोई खामी है, इस पर कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी।आपको स्मरण करा दूँ कि 1948 में भारत में आखिरी चीता मार डाला गया था और 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से मान लिया था कि भारत में कोई चीता नहीं बचा है। लेकिन उनके पुनर्वास के लिए दशकों तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का कहना था कि आजादी के अमृतकाल में अब देश नई ऊर्जा के साथ चीतों के पुनर्वास के लिए जुट गया है। प्रधानमंत्री की आशा के अनुरूप ये परियोजना चल नहीं पा रही है ।अंचल में जैव विविधता के पुनर्जीवित होने का सपना बीच में ही टूटता नजर आ रहा है ।जिस कूनों राष्ट्रीय अभ्यारण्य में ये चीते लाये गए थे वो विंध्यांचल पर्वत श्रृंखला पर श्योपुर और मुरैना जिले में है । कूनो-पालपुर वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना 1981 में हुई थी। 2018 में सरकार ने इसे इसे नेशनल पार्क का दर्जा दिया था। अपनी स्थापना के समय इस वन्यजीव अभ्यारण्य का क्षेत्रफल 344.68 वर्ग किलोमीटर था। बाद में इसमें और इलाके जोड़े गए। अब यह करीब 900 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।इस अभ्यारण्य में चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर, चिंकारा, चौसिंघा, ब्लैक बक, ग्रे लंगूर, लाल मुंह वाले बंदर, शाही, भालू, सियार, लकड़बग्घे, ग्रे भेड़िये, गोल्डेन सियार, बिल्लियां, मंगूज समेत कई प्रजातियों के जानवर पाए जाते हैं। अफ़्रीकी चीते इन सबके मेहमान हैं .ये मेहमान कितने दिन और यहां जीवित रह पाएंगे कहना कठिन है. लेकिन आइये हम सब इनकी सलामती के लिए दुआ करें।
राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक

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