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फेसबुक के बिना भी है दुनिया

दुनिया की सबसे ज्यादा लोकप्रिय सोशल मीडिया नेटवर्किंग ‘फेसबुक’ के बिना भी एक दुनिया है, जहां थोड़ी सी कोशिश के बाद आराम से जिया जा सकता है। फेसबुक पिछले डेढ़ दशक से मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा थी, लेकिन बीते कुछ रोज से हम दोनों में अनबन है। मेरा निजी अनुभव है कि ‘फेसबुक ‘का नशा भी दीगर नशों की तरह है जो आपके स्नायु तंत्र को प्रभावित करता है। फेसबुक का प्रभाव अलग -अलग उपयोगकर्ता पर अलग -अलग होता है, लेकिन होता जरूर है। बहुत से लोग फेसबुक का स्वाद लेकर आगे चलते बनते हैं, कुछ लोग इसकी लत लगने से पहले ही सम्हल जाते हैं और अधिकांश मेरी तरह होते हैं,जो इसकी गिरफ्त से बाहर ही नहीं निकलना चाहते। हैरानी की बात है कि फेसबुक दुनिया में धर्म के बाद दसरा नशा बन गया है। दुनिया की 40 फीसदी आबादी इसकी गिरफ्त में है। उत्तर अमरीका की तो 82 फीसदी आबादी फेसबुक का उपयोग करती है। अकेले अफ्रीका है जो अभी इस नशे से बचा है, हालांकि यहां भी 20 फीसदी आबादी फेसबुक की आदी हो चुकी है। देश में इंटरनेट के बढ़ते प्रसार और युवाओं की बड़ी आबादी के बल पर विश्व की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ने भारत में अपना तेजी से विस्तार किया है दुनिया का हर तीसरा व्यक्ति फेसबुक से जुड़ा है. पूरी दुनिया में फेसबुक के 291 करोड़ उपभोक्ता हैं. भारत में सबसे ज्यादा 34 करोड़ लती हैं. अमेरिका में फेसबुक के 20 करोड़ से ज्यादा उपभोक्ता हैं.

 

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फेसबुक अपने यूजर्स और विज्ञापन के बलबूते हर घंटे 100 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई करता है. आपको मालूम हो कि फेसबुक अपनी कुल कमाई का 98 फीसदी विज्ञापनों से कमाता है. मै भी इस बड़े आंकड़े का एक अंक मै भी हूं। फेसबुक के जरिए मेरी पहुंच प्रतिदिन औसतन 50 से 60 हजार लोगों तक रही। इनमें 7500 फालोअर और 4700 मित्र शामिल हैं। वर्ष 2020 से मै नियमित रूप से प्रतिदिन एक आलेख और औसतन हर तीसरे दिन एक कविता पोस्ट करता हूं।एक आशु लेखक के लिए ये उपलब्धि है। फेसबुक की बदौलत मेरे लेख छोटे – बड़े अखबारों और वेबसाइट्स के जरिए लोगों तक पहुंच रहे हैं सो अलग। लेकिन इस सब पर इस सप्ताह अचानक ब्रेक लग गया। मुझे लगा जैसे वज्रपात हुआ हो। तकनीकी कारणों से पहले मेरा पेज ब्लाक हुआ, फिर गायब हुआ।रीस्टोर भी हुआ लेकिन मैं अभी तक अपना खाता लागइन नहीं कर पा रहा हूं। फेसबुक से दूर होने से पूरी दिनचर्या ही बदल गई।अब पल-पल मोबाइल में नहीं झांकना पड़ रहा। हालांकि दो -तीन दिन बेचैनी से बीते, फिर हथियार डाल दिए। फेसबुक बंद होने से बहुत से प्रिय, अप्रिय मित्रों से संपर्क कट गया है, किंतु अभी भी कोई डेढ़ हजार मित्रों को वाट्स अप के जरिए अपनी सेवाएं दे रहा हूं। मै सोचता हूं कि जो लोग फेसबुक के अलावा दूसरे सोशल मीडिया मंचों पर हैं वे कितना समय खर्च करते होंगे। इतना समय यदि घर,समाज और देश को मिले तो कितना कुछ बदल सकता है ? मुझे नहीं मालूम कि कब तक फेसबुक पर वापस लौटूंगा। फेसबुक के पास मेरी रचनाधर्मिता का बड़ा खजाना है। तस्वीरें हैं। इन्हें छोड़ने का दुःख है, लेकिन आराम भी है।अब नींद साढ़े नौ बजे सिरहाने आकर बैठ जाती है। सुबह 4.50 पर नींद खुल जाती है।घर वालों के लिए समय की कोई कमी नहीं है। लेकिन मन के एक कोने में कहीं न कहीं एक कसक है।

 

व्यक्तिगत विचार-आलेख-

श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार , मध्यप्रदेश  । 

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