भोपाल। प्रदेश में संपन्न हुए त्रिस्तरीय पंचायती राज और नगरीय निकाय के चुनाव में मतदाताओं ने कई प्रकार के संदेश दिए हैं। कहीं गढ़ ध्वस्त हुए हैं, कहीं कोर वोटर बदला है, कही मतदाता की प्रतिबद्धता बदली है, कहीं दिग्गजों को आईना दिखाया है तो कहीं तीसरे दल की आमद दर्ज कराई है और निर्दलियों को भी खूब तवज्जो मिली है। इन संदेशों के साथ-साथ मतदाता सिलेक्टिव हुआ है। पार्षद को किसी दल को और महापौर में किसी दल को वोट देकर उसने अपनी मनपसंद शहर सरकार चुनी है।
दरअसल, इन चुनाव के पहले तक शहरी क्षेत्र भाजपा के अवैध गढ़ माने जाते थे और ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस बढ़त बनाती थी लेकिन इस बार भाजपा के शहरी इलाकों में जहां कांग्रेस में सेंध लगाई है। वहीं ग्रामीण इलाकों में भाजपा ने अधिकतम सीटों पर जीत दर्ज की है। ग्वालियर, जबलपुर, रीवा, मुरैना और छिंदवाड़ा सीट कांग्रेस ने जीती हैं। जिसमें ग्वालियर और जबलपुर को लेकर भाजपा में हड़कंप जैसी स्थिति है क्योंकि 57 साल बाद ग्वालियर सीट हारी है और 22 साल बाद जबलपुर की सीट पार्टी ने हारी है। यह दोनों ही इलाके भाजपा और संघ के मजबूत पकड़ वाले माने जाते रहे हैं इन इलाकों में भाजपा के दिग्गज नेताओं की लंबी फेहरिस्त है। वैसे तो चंबल क्षेत्र में ग्वालियर और मुरैना, विंध्य क्षेत्र में रीवा सिंगरौली और महाकौशल क्षेत्र में जबलपुर कटनी एवं छिंदवाड़ा सीट खोने के बाद भाजपा आत्मचिंतन की मुद्रा में आ गई है।
हालांकि इन क्षेत्रों में छिंदवाड़ा को छोड़कर बाकी जगह भाजपा के पार्षद जीतने और निगम में अध्यक्ष भाजपा के बन जाने की स्थिति बन गई है और पार्टी से कांग्रेस की आधी अधूरी जीत बता रही है लेकिन सभी 16 सीटें जीतने का उसका सपना टूटा है लेकिन ग्रामीण इलाकों में पार्टी को अच्छी खासी सफलता मिली है। 76 नगर पालिकाओं में से 50 में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला है। वहीं 15 स्थानों पर वह कांग्रेस से आगे हैं। इस तरह पार्टी ने 65 नगर पालिका क्षेत्रों में जीत का दावा किया है जबकि उसके अनुसार केवल 11 स्थानों पर कांग्रेस जीती है। इसी तरह 255 नगर परिषदों में से 185 स्थानों पर भाजपा को स्पष्ट बहुमत और 46 स्थानों पर कांग्रेस से आगे होने का दावा किया है और पार्टी का मानना है कि 231 नगर परिषदों में भाजपा के अध्यक्ष होंगे। सिर्फ 24 स्थानों पर कांग्रेस काबिज हो पाएगी। नगर पालिकाओं में जीत 85 प्रतिशत वहीं नगर परिषद में 90% जीत मिली है और इसे पार्टी बूथ पर कार्यकर्ताओं की जीत बता रही है। वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल कांग्रेस नगर पालिका नगर परिषद की चर्चा न करके वह पांच नगर निगम जीतने के उत्साह में हैं और नेता इसे 2023 के लिए अच्छा संकेत मान रहे हैं।
कुल मिलाकर नगरी. निकाय के सभी परिणाम आ चुके हैं। वहीं त्रिस्तरीय पंचायती राज के चुनाव का तमाम प्रकार के गठन की प्रक्रिया 29 जुलाई तक पूरी हो जाएगी और तब पूरे प्रदेश की तस्वीर स्पष्ट हो पाएगी लेकिन प्रदेश में 16 नगर निगम के परिणाम के आधार पर राजनीतिक दल एक – दूसरे का मूल्यांकन कर रहे हैं और दलों के अंदर नेताओं का मूल्यांकन भी शुरू हो गया है। मसलन, ग्वालियर चंबल क्षेत्र में मुरैना और ग्वालियर नगर निगम हारने के बाद केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी नेताओं को हार के कारण बताएंगे। वहीं जबलपुर नगर निगम में मिली हार पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह के लिए झटके से कम नहीं है और कटनी नगर निगम हमें पार्टी की हार से पार्टी प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा पूर्व मंत्री संजय पाठक की अब पूरी कोशिश रहेगी निर्दलीय जीती प्रीति सूरी वापिस पार्टी में आ जाए।ं वही रीवा और सिंगरौली सीट हारने के पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला के प्रबंधन पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। इंदौर, भोपाल, उज्जैन, खंडवा जीत जहां भाजपा अपने जनाधार की जीत मान रही है, वहीं बुंदेलखंड में मिली जीत भाजपा नेताओं के प्रबंधन का कमाल माना जा रहा है।
मंत्री गोपाल भार्गव के विधानसभा क्षेत्र रहली नगर पालिका के चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के गढ़ को ध्वस्त किया है। मंत्री भूपेंद्र सिंह का खुरई विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस मुक्त विधानसभा क्षेत्र बन गया है। जहां सभी पार्षद भाजपा के जीते हैं। इसी तरह सुरखी विधानसभा क्षेत्र में सुरखी और बिलहरा में कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई। वहीं राहतगढ़ में केवल दो पार्षद ही कांग्रेस के जीत पाए और बुंदेलखंड की एकमात्र नगर निगम सीट सागर भी भाजपा ने जीत ली है जिसे नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर चुनाव लड़ा और तमाम प्रकार के प्रबंधन करके कांग्रेस के माहौल पर मैनेजमेंट की जीत दर्ज की। गोपाल भार्गव और गोविंद राजपूत भी समय-समय पर क्षेत्र में प्रचार करते रहे।
जाहिर है मतदाता इन चुनावों में सिलेक्टिव हुआ है। एक ही बार वोट डालने पर अलग-अलग मशीनों में अलग-अलग दल के प्रत्याशी को वोट दिया है और कहीं आप तो कहीं निर्दलीयों वह भी चुनाव जताया है जिससे दोनों ही प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस का 2023 के लिए सतर्क और सावधान होना जरूरी हो गया है अब प्रयोग की बजाय बेहतर प्रत्याशी ही पार्टी की नैया पार लगा सकता है।
देवदत्त दुबे, भोपाल, मध्यप्रदेश
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