फिल्मों और वृतचित्रों को लेकर हमारी सरकार दो राहे पर है। सरकार एक तरफ फिल्मों के बहिष्कार की संस्कृति के खिलाफ दिखाई देती है तो दूसरी तरफ वृत्तचित्रों पर रोक लगा कर अपनी छवि को धूमिल होने से बचाने की कोशिश करती है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर सरकार क पहले ऐसे मंत्री हैं जिन्होंने ने कुछ फिल्मों को निशाना बनाने वाली ‘बहिष्कार संस्कृति’ की निंदा की और कहा कि ऐसे समय में ऐसी घटनाएं माहौल को खराब करती हैं, जब भारत एक ‘सॉफ्ट पावर’ के रूप में अपना प्रभाव बढ़ाने को उत्सुक है.। अनुराग ठाकुर से मै कभी नहीं मिला किंतु आभासी रुप से मै उनसे खूब वाकिफ हूं। ठाकुर मितभाषी और शालीन मंत्री हैं।वे किरेन रिजजू की तरह बचकानी बातें नहीं करते। उन्हें देश ने लंबे समय तक देश के अनुवादक वित्त राज्य मंत्री के रूप में भी देखा है। फिल्मों को लेकर अनुराग ठाकुर की सोच यदि केंद्र सरकार की भी सोच है तो ये शुभ लक्षण है।शुभ इसलिए क्योंकि सरकार दूसरी तरफ बीबीसी की लघु फिल्म ‘इंडिया दिस मोदी क्वश्चन ‘पर रोक लगाए बैठी है। सरकार ने इस वृत्तचित्र पर टिप्पणियां तक प्रतिबंधित कर दी है। ताजा मामला शाहरुख खान की फिल्म ‘पठान’ के बहिष्कार का है। भाजपा शासित राज्यों में पठान के प्रदर्शन को रोका जा रहा है।ठाकुर ने कहा कि अगर किसी को किसी फिल्म से कोई दिक्कत है तो उसे संबंधित सरकारी विभाग से बात करनी चाहिए जो मुद्दे को फिल्म निर्माताओं के साथ उठा सकता है.लेकिन ठाकुर की सुनता कौन है ? वे इस मुद्दे पर अकेले हैं। भाजपा और संघ परिवार से जुड़े विभिन्न समूहों द्वारा फिल्मों के बहिष्कार के बारे में पूछे जाने पर ठाकुर ने कहा, ‘‘ऐसे समय में जब भारत एक ‘सॉफ्ट पावर’ के रूप में अपना प्रभाव बढ़ाने को उत्सुक है, ऐसे समय में जब भारतीय फिल्में दुनिया के हर कोने में धूम मचा रही हैं, इस तरह की बातें माहौल को खराब करती हैं.” भाजपा और संघ परिवार अतीत में भी अभिनेता अक्षय कुमार की ‘‘सम्राट पृथ्वीराज”, आमिर खान की ‘‘लाल सिंह चड्ढा” और दीपिका पादुकोण की ‘‘पद्मावत” को बहिष्कार की नाकाम कोशिशें कर चुका है
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) फिल्म महोत्सव का उद्घाटन करने के लिए मुंबई में हैं, जिसमें आठ यूरेशियाई देशों के क्षेत्रीय समूह से 58 फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा. अनुराग ठाकुर मोदी सरकार के पहले मंत्री हैं जो फिल्मों की रचनात्मक स्वायत्तता की भी जोरदार वकालत करते दिखाई दे रहे हैं।ठाकुर ने पता नहीं किसकी शह पर कहा है कि , ‘‘रचनात्मकता पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।”उन्होंने कहा कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को ओटीटी मंच पर सामग्री के बारे में शिकायतें मिलती हैं, लेकिन लगभग 95 प्रतिशत शिकायतों का समाधान निर्माताओं के स्तर पर हो जाता है और अन्य को ‘एसोसिएशन आफ पब्लिशर्स’ के दूसरे चरण में सुलझाया जाता है। अब मोदी पर बने वृत्तचित्र की बात करते हैं। पूरे देश के नामचीन विश्व विद्यालयों में इस वृत्तचित्र के प्रदर्शन की कोशिशें हो रही है और पुलिस उन्हें नाकाम करने में लगी है।बेहतर होता कि सरकार प्रधानमंत्री जी पर बने इस वृत्तचित्र को दूरदर्शन पर दिखाकर अच्छा खासा राजस्व कमाने के साथ ही वाहवाही लूटती। सरकार वृत्तचित्र में कथित झूठ का पर्दाफाश करने के लिए फिल्म के प्रदर्शन के फौरन बाद प्रधानमंत्री को दूरदर्शन पर मन की बात करने का अवसर देती। आपको याद हो या न हो लेकिन आपातकाल में फिल्मों और रचनात्मक अभिव्यक्ति को लेकर तत्कालीन सरकार के रवैए की वजह से तब के सूचना मंत्री विद्याचरण शुक्ल को बाद में बहुत कुछ भुगतना पड़ा था। अच्छी बात ये है कि अनुराग ठाकुर कांग्रेस के विद्याचरण शुक्ल नहीं हैं।वे मोदी जी की नाक का बाल होते तो मुमकिन है कि उनके स्वर में रचनात्मकता को लेकर जो अनुराग दिखाई दे रहा है वो शायद न होता। अनुराग ठाकुर का व्यवहार एक मंत्री के रूप में बदलता रहता है।शाहीन बाग आंदोलन के समय अनशनकारियों पर गोली चलाने की हिमायत करने वाले अनुराग और आज के अनुराग ठाकुर में जो भेद है,वो स्थाई नहीं है। मुमकिन है उन्हें कल फिर मोहन भागवत की बोली बोलना पड़े। लेकिन आज के अनुराग ठाकुर एक उम्मीद बंधाते हैं। हमें उम्मीद करना चाहिए कि फिल्मों, वृत्तचित्रों को लेकर सरकार का रुख बदलेगा। सरकार देख चुकी है दि कश्मीर फाइल बनाने वाले लोग भी किसी काम के नहीं निकले। फिल्मों से मनोरंजन हो सकता है किंतु न किसी की छवि बनाई जा सकती है और न बिगाड़ी जा सकती है। इनसे डरने का मतलब है कि ‘-चोर की दाढ़ी में तिनका है।
व्यक्तिगत विचार-आलेख-
श्री राकेश अचल जी जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश ।
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