काबुल में पिछले साल तालिबान की सरकार क्या कायम हुई, पाकिस्तान समझने लगा कि उसकी पौ-बारह हो गई, क्योंकि पिछले दो-ढाई दशक से तालिबान और उसके पहले अफगान मुजाहिदीन को शै देनेवाला पाकिस्तान ही था। तालिबान ने पहले अपने हिमायती अमेरिका को सबक सिखाया और अब वह पाकिस्तान के छक्के छुड़ा रहा है। आए दिन तालिबानी और पाकिस्तानी सीमा-रक्षकों के बीच गोलीबारी की खबरें आती रहती हैं। अफगानिस्तान और ब्रिटिश भारत के बीच जब सर मोर्टिमोर डूंरेड ने 1893 में डूंरेड-रेखा खींची थी, तभी से एक के बाद एक अफगान सरकारों ने उसे मानने से मना कर दिया था।अब जबकि पाक-सरकार 2700 किमी की इस डूंरेड रेखा पर खंभे गाड़ने की कोशिश कर रही है, तालिबान सरकार उसका विरोध कर रही है। हजारों अफगान और पाकिस्तानी नागरिक पासपोर्ट और वीज़ा के बिना एक-दूसरे के देश में रोज आते-जाते हैं। दोनों देशों के बीच तनाव इतना बढ़ गया है कि उप-विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार को काबुल जाकर बात करनी पड़ी। काबुल में पाक दूतावास के एक वरिष्ठ राजनयिक की हत्या का भी असफल प्रयास हुआ। इसके पहले अल-क़ायदा के नेता अल-जवाहिरी की काबुल में अमेरिका ने जो हत्या की थी, उसके लिए भी पाकिस्तान की सांठ-गांठ बताई गई थी।
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यह अभियान प्रकट तौर पर काबुल के तालिबान नहीं चला रहे हैं। इसे चला रहे हैं- ‘तहरीक़े-तालिबान-ए-पाकिस्तान’ के लोग। वे हैं तो पाकिस्तानी लेकिन उन्होंने आजकल काबुल को अपना ठिकाना बना लिया है। वे इमरान और शाहबाज शरीफ सरकारों से मांग करते रहे हैं कि पाकिस्तान का शासन इस्लामी उसूलों पर चले। काबुल के तालिबान दिखाने के लिए इस्लामाबाद और तहरीक के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं लेकिन वे पूरी तरह से ‘तहरीक’ के साथ हैं।उन्होंने दोनों के बीच 5-6 माह का युद्ध-विराम भी करवा दिया था लेकिन तालिबान की ही नहीं, औसत पठानों की भी मान्यता है कि पाकिस्तान के पंजाबी हुक्मरान उन्हें अपना गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं। मुझे पेशावर और काबुल में दोनों पक्षों से खुलकर बात करने के मौके कई बार मिले हैं। मैंने कुछ पाकिस्तानी दोस्तों को यह कहते हुए भी सुना है कि देखिए, अफगान कितने नमकहराम हैं? रूसी कब्जे के वक्त लाखों अफगानों को हमने शरण दी लेकिन वे अब भी पेशावर पर कब्जा करना चाहते हैं। उधर अफगान कहते हैं कि ये पंजाबी लोग हमारी ज़मीन पर लगभग डेढ़-सौ साल से कब्जा किए हुए हैं और हमारे साथ चोरी और सीनाजोरी करते हैं। पाकिस्तान सरकार को अब पता चल रहा है कि उसने अफगान आतंकवाद को बढ़ावा देकर अपने लिए गहरी खाई खोद ली है। अब वे ही अफगान पाकिस्तान के सिरदर्द बन गए हैं। मियाँ की जूतियाँ मियाँ के सिर पड़ रही हैं।
आलेख श्री वेद प्रताप वैदिक जी, वरिष्ठ पत्रकार ,नई दिल्ली।
साभार राष्ट्रीय दैनिक “नया इंडिया” समाचार पत्र ।
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