जीवन शैली

बच्चे राष्ट्रीय संपत्ति हैं,बोझ नहीं

ये तस्वीर यदि भारत के किसी स्कूल के प्रबंधन द्वारा ली गई होती तो शायद बवाल खड़ा हो जाता, लेकिन अमेरिका में ये बहुत स्वाभाविक तरीके से बच्चों को खुश रखने के लिए किया जाता है।भारत के स्कूलों में पढ़ने के लिए जाते बच्चे बस्ते के बोझ से दोहरे हुए जा रहे हैं। बच्चों को पढ़ाना अभिभावकों की कमर तोड़ देता है। ऐसे में या बच्चे खुद स्कूल छोड़ देते हैं या स्कूल छुडवा दिया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के शिक्षा कार्यक्रम को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शैक्षिक कार्यक्रमों में से एक माना जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के स्कूलों में सीखने का तरीका अन्य देशों की तुलना में थोड़ा अलग है। वे सैद्धान्तिक ज्ञान की अपेक्षा व्यवहारिक ज्ञान पर अधिक ध्यान देते हैं। साथ ही, दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित शिक्षा प्रणालियों में से एक से शिक्षित होना आपको रोशनी में खड़ा कर देगा। अमेरिका में शत-प्रतिशत साक्षरता कोई ख्वाब नहीं बल्कि हकीकत है क्योंकि अमेरिका दुनिया के किसी भी देश की तुलना में एक छात्र के लिए शिक्षा पर अधिक पैसा खर्च करता है। संयोग से मेरे पौत्र अमरीका में जन्मे हैं। एक पौत्र स्कूल जाने लगा है,इसी बहाने मुझे भी इस देश की स्कूली शिक्षा प्रणाली में झांकने का मौका मिला। अमरीकी में इसकी वजह है कानून। ये कानून के कारण जो यह राज्य कानून 6 से 8 वर्ष से लेकर 16 और 18 वर्ष की आयु के प्रत्येक छात्र को शिक्षा प्राप्त करने के लिए सुनिश्चित करता है। हालांकि यह प्री-स्कूलों पर लागू नहीं होता है, और अलग-अलग राज्यों में इसकी रूपरेखा अलग-अलग होती है। अमेरिका में निजी, सार्वजनिक और घरेलू स्कूल उपलब्ध हैं। अमेरिका में अधिकांश छात्र, लगभग 87 फीसदी, राज्य के स्वामित्व वाले या पब्लिक स्कूलों में जाते हैं। छात्रों का दूसरा हिस्सा, लगभग 10 फीसदी, निजी स्कूलों में जाता है और बाकी घर के स्कूलों में जाता है।

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अमेरिका में शिक्षा प्रणाली एक अलग श्रेणी में आती है। छात्रों को तेजी से नई चीजें सीखने और तलाशने में मदद करना। अमेरिकी शिक्षा प्रणाली छात्रों के लिए विकल्पों का एक समृद्ध क्षेत्र प्रदान करती है। ऐसे कई स्कूल और कार्यक्रम हैं जो छात्रों को प्रभावित करते हैं। आइए उनकी विभिन्न श्रेणियों और प्रकारों पर चर्चा करें। अमेरिका में बच्चे 5 या 6 साल की उम्र में स्कूल जाना शुरू करते हैं और 17 या 18 साल की उम्र में पूरा करते हैं। स्कूल का वातावरण इतना सहज है कि बच्चे स्कूल देखकर बिदकते नहीं हैं। कक्षा एक से नीचे के बच्चों को अभिभावकों को स्वयं लेकर आना -जाना होता है। प्री केजी और केजी के बच्चों के बैग में पानी की बोतल के अलावा कुछ नहीं रखना पड़ता। नाश्ता कागज, खिलौने सब स्कूल में मिलते हैं। छुट्टी के बाद भी बच्चे को उसके अभिभावकों को ही सौंपा जाता है। अभिभावकों को हाजरी भरना होती है सो अलग। एक छात्र को लंबे समय तक छुट्टी या खराब प्रदर्शन के कारण एक कक्षा को दोहराना पड़ता है, हालांकि यह दुर्लभ है।स्कूली शिक्षा के कुल 12 साल हैं।प्राथमिक विद्यालय, या प्राथमिक विद्यालय, में 1 से 5 तक के ग्रेड होते हैं।जूनियर हाई, या मिडिल स्कूल, में 6 से 8 तक के ग्रेड होते हैं।हाई स्कूल, या माध्यमिक विद्यालय, में 9 से 12 तक के ग्रेड होते हैं। अमरीकी स्कूल सितंबर में खुलते हैं और मई या जून तक काम करते हैं है।अधिकांश स्कूल दो टर्म या दो सेमेस्टर के लिए चलते हैं। पहला सेमेस्टर सितंबर से दिसंबर तक है। जनवरी से मई तक दूसरा सेमेस्टर और वसंत।कुछ स्कूल चार टर्म या चार तिमाहियों तक चलते हैं। शर्तें सितंबर से दिसंबर, जनवरी से मार्च और मार्च से मई या जून हैं।प्राथमिक और उच्च विद्यालयों में स्कूल का दिन सुबह 8 से दोपहर 3 बजे के बीच पूरा होता है। इससे छोटे बच्चे स्कूल में ढाई घंटे तक रहते हैं। अमेरिका के कुछ स्कूलों में शामिल होने से पहले बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है। स्कूल बच्चों के टीकाकरण आदि का पूरा ख्याल रखता है और यथा समय अभिभावकों को स्मरण भी कराता है बच्चे को पोलियो, डीटीपी (डिप्थीरिया, टेटनस, और पर्टुसिस या काली खांसी), के साथ ही MMR (खसरा, कण्ठमाला, और रूबेला या जर्मन खसरा) का टीका लगा होना चाहिए। अमेरिकी सार्वजनिक शिक्षा नि:शुल्क है और आमतौर पर किंडरगार्टन से लेकर ग्रेड 12 तक चलती है, जिसका नाम K-12 शिक्षा है। इसलिए अमरीकी नागरिकों के अलावा यहां ग्रीनकार्ड और वीजा पर रहने वाले प्रवासी बच्चों की शिक्षा को लेकर बेफिक्र रहते हैं। स्कूल में रंगभेद कोई समस्या नहीं है।ऊंच नीच,गरीब,अमीर का सवाल भी नहीं उठता क्योंकि सबके घरों में न्यूनतम से अधिक बुनियादी सुविधाएं एक जैसी होती हैं। स्कूल भवन, स्कूल बसें सब ठीक होती हैं। कोई स्कूल बिना भवन या बिना स्टाफ का नहीं है। यहां पढ़ाई बोझ नहीं जिम्मेदारी है। और ये जिम्मेदारी जुगाड़ू अतिथि शिक्षक या गुरूजी के कंधों पर नहीं है। यहां बच्चों के लिए स्कूल में मध्यान्ह भोजन न घटिया होता है,न ब्लैक में बाजार में बिकता है। कोई ठेकेदार भी नहीं होता।सब उसी दूकान से आता है जहां से आपके घर का सामान आता है। भारत में प्राथमिक और पूर्व प्राथमिक शिक्षा की जो दुर्दशा है उसे देखते हुए लगता है कि बच्चों को भारत में पैदा ही नहीं होना चाहिए, क्योंकि भारत मे बच्चों का तो छोड़िए जानवरों तक का चारा खाने वाले लोग और व्यवस्था है। भारत की नई शिक्षा नीति में दिखावा तो बहुत किया गया है किन्तु उस पर अमल असंभव है। बच्चों के प्रति जितने संवेदनशील और जागरूक अमरीकी हैं उतने भारतीय शायद कभी नहीं हो सकते। बावजूद इसके अमेरिका में भी लाखों बच्चों को समय पर प्रवेश नहीं मिलता। स्कूल छोड़ने की बीमारी बच्चों में यहां भी है।

व्यक्तिगत विचार-आलेख-

श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार , मध्यप्रदेश  । 

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