सम्पादकीय

यथार्थवाद के साहित्य-सूर्य -मुंशी प्रेमचंद

वर्तमान युग में तकनीकि के अदभुत प्रयोग और प्रगति ने संपूर्ण विश्व को एकसूत्रता में बांधने का अभूतपूर्व कार्य किया है परंतु आधुनिक युग में भी प्रत्येक समाज की कुछ एंसी विषेशताएँ या मौलिकता होती है जो उसमें बसने वालों के अवचेतन मन समायी हुई होती है और जीवन के किसी भी दौर उम्र या कर्मक्षेत्र – कार्यक्षेत्र में व्यक्ति को प्रभावित भी अवश्य ही करती है भारतीय समाज के अवचेतन में कुछ नाम ऐंसे है जो अपने विचारों से कई वर्षो बाद भी जीवंत से प्रतीत होते है जिनके बिना आज भी भारतीय समाज को समझना जानना कठिन दिखाई देता है फिर चाहे वो राष्टपिता महात्मा गांधी की ग्रामींण विकास की अवधारणा और सत्य अहिंसा के प्रयोग हो या 31 जुलाई 1880 को बनारस नगर से चार मील दूर लमही गांव में जन्में धनपतराय राय श्रीवास्तव उर्फ महान उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की काल्पनिक कहानियों का रोमांच और यर्थाथवाद का रोचक संसार हो हमें आज के भागदौड और व्यस्त जीवनशैली के बाद भी अपनी मौलिकता के प्रति संवेदनषील बनाती हैं प्रेमचंद के लेखन में सनातन भारतीय परंपरा रीति-रिवाज और सामाजिक सोच को मानो जस का तस प्रस्तुत किया गया है छोटी सी उम्र में ही अपने माता पिता के देहांत हो जाने से उपजे शून्य  अनुभवों को यथार्थ की स्याही में भिगोकर भारतीय समाज की संवेदना के उच्च स्तर को कोरे कागज पर उतारने की जो शैली मुंशी प्रेमचंद के साहित्य लेखन में रही उससे मुंशी प्रेमचंद का नाम भारत ही नही वरन संपूर्ण विष्व के प्रमुख कथाकारों में शुमार है ।

प्रेमचंद हिंदी के साथ साथ उर्दू फारसी और अंग्रेजी भाषा के भी कुषल ज्ञाता थे लेकिन हिंदी ने उनके मन से उपजी कहानियों को जो जीवंत स्वरूप प्रदान किया वह आज भी हमारे दैनिक जीवन में हमारे आस-पास साक्षात सा लगता है जिन्हे देख-सुनकर मुषी प्रेमचंद के कहानी के किरदार यकायक आंखों के सामने आ जाते है मुंषी प्रेमचंद ने अपने उपन्यास और कहानियों में जिस प्रकार समाज में व्याप्त सांप्रदायिकता गरीबी कर्जखोरी रूढिवादिता पर प्रहार किया है वह अपने आप में विलक्षंण है।  समसामायिक समाज के प्रस्तुतीकरंण में उन्होने अपनी कहानी के किरदारों को जिस प्रकार समाज के ताने बाने में बुना है उसकी तुलना नहीं की जा सकती आजादी के बाद निष्चित ही हमने प्रगति के पथ पर निरंतर कदम बढाये है लेकिन जो कसक 100 वर्ष पहले प्रेमचंद अपने लेखन में महसूस करते थे वो आज हमें भी खलती है आज भी विकास के तमाम दावों के बीच समाज में एंसी कई घटनाएं घटित होती है जो हमारे अंर्तमन को झकझोर देती है।  देश में आज भी प्रेमचंद्र की कहानियो के काल्पनिक किरदार वास्तिविक जीवन जीने को विवष है जो भौतिकवादी युग में सामाजिक विकास के दावों को कटघरे में खडा करते है प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में समाज के हर वर्ग का चरित्र चित्रंण किया लेकिन मजदूर, स्त्री ,किसान, असहाय और बाल मन को प्रेमचंद ने जिस संवेदनषीलता के साथ अपने साहित्य में उकेरा है वह पाठक के अंर्तमन तक संवेदना प्रवाहित करता है ।

उनके प्रमुख कहानी और उपन्यास गबन ,निर्मला ,बूढी काकी ,पूस की रात ,बडे घर की बेटी, शतरंज  के खिलाडी, ईदगाह में हम पात्रों की मनोस्थिति को महसूस कर समाजिक कमियों का अवलोकन कर सकते हैं प्रेमचंद्र के मन से उपजी कहानियों का यर्थाथ से एंसा संबध रहा है कि आज भी जब देश के किसी हिस्से में गरीब असहायों पर अत्याचार की कोई निर्मम घटना सामने आती है तो आंखों के सामने मुंषी प्रेमचंद का यर्थाथवादी चेहरा आ जाता है । दरअसल गहराई से सोचने पर प्रेमचंद के उपन्यास और कहानी के किरदार हमें अपने अंदर झांकने पर विवष करते है हम में से हर कोई जीवन की अनिष्चितताओं में कहीं न कहीं प्रेमचंद के किसी किरदार के रूप में ही खुद को खडा पता है । अपनी कहानियों से समाज के प्रत्येक पहलू को उजागर एवं जीवंत करने वाले प्रेमचंद आज भी भारतीय समाज के जनमानस में समाये हुए लगते है आज के दौर में भी प्रेमचंद की कहानियों की प्रासंगिकता को नकारा नहीं जा सकता वरन आज के दौर बदलती हुई परिस्थतियों में जहां मानव समाज की प्राथमिकताएं बदली है अमीर और गरीब के बीच गहराती हुई खाई,  भौतिकता की अंधी दौड के लिए लालायित समाज , धर्म के नाम पर उद्धंड होती कटटरता , भ्रष्टाचार और असंवेदनषीलता जैसी समस्याओं से जूझते समाज के लिए प्रमचंद्र के साहित्य के मर्म को समझने की सर्वाधिक आवष्यकता भी है प्रेमचंद ने अपने यर्थाथ लेखन को अपनी जीवनषैली में भी बखूबी उतारा था                                                                          आर्य धर्म से प्रभावित प्रेमचंद सामाजिक एवं धार्मिक सुधारों के प्रबल पक्षधर थे उन्होने बाल विधवा विवाह कर अपने कथनी और करनी की समानता का प्रमाण दिया तो महात्मा गांधी के आव्हान पर नौकरी से भी त्यागपत्र दिया अंग्रेजी षासन में उनके देषभक्ति एवं आजादी से प्रेरित लेखों के कारंण कई बार उन्हे ब्रिटिश हुकूमत की बेरूखी का शिकार भी होना  पडा लेकिन वह अपने विचारों से पीछे नहीं हटे उनके अनुसार एक लेखक स्वभाव से ही प्रगतिषील होता है और जो एंसा नहीं है वह लेखक नहीं है  प्रेमचंद ने अपने जीवनकाल में लगभग 300 कहानियां और 14 उपन्यास लिखकर भारतीय साहित्य में अपना अमूल्य योगदान दिया प्रेमचंद और भारतीय साहित्य लगभग एक दूसरे के पर्याय हो गये उनके उपन्यास एवं कहानियो का लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। 8 अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की आयु में मुंशी प्रेमचंद के निधन के साथ ही भारतीय साहित्य में कल्पनाओं के आकाश में यर्थाथवाद के सूर्य का अस्त हो गया । लेकिन वर्तमान परिपेक्ष्य में जब हमें उन संवेदनाओं और नैतिक शिक्षाओं सर्वाधिक आवष्यकता है तभी हमारी जीवनषैली और मनोविज्ञान पष्चिम सभ्यता से प्रभावित होता जा रहा है तब हमें प्रेमचंद, गांधी जैंसे महानायकों जिन्होने सारी दुनिया को नैतिकता और भारतीय दर्शन से प्रभावित किया है उनकी शिक्षाओं और सुझावों पर पुर्नचिंतन की आवष्यकता है।

दुनिया की तमाम विकसित सभ्यताओं ने कहीं कहीं आज भी अपने महापुरूषों के आदर्षाें, संघर्ष और शिक्षाओं को अपने डीएनए में समेटा हुआ है उसी का परिणाम है हमें विश्व की एंसी घटनाओं के रूप में देखने मिलता है जहां युवा शक्ति  ने अपने आंदोलनों से बडे बडे सत्ता -संगठन को झुकने पर विवश किया है भारतीय ज्ञान एवं संस्कृति की शिक्षा का लोहा पूरी दुनिया ने मांना है और आज भी हम भारतीयो के अस्त्तिव को विश्व जिस रूप में स्वीकारता है वो इन महान आदर्शों की ही देन है लेकिन विगत दो दशकों से भारतीय युवा के मन मष्तिक्स में अपने इतिहास और परंपराओं के प्रति जो उदासीनता का भाव आया है उसी का परिणाम हम आज के परिवेश में अनुभव  कर सकते है। आज देश  धर्म ,जाति ,परंपरा जो हमारी विशेषता रही है उसी में बटता सा प्रतीत होता है हमारी सांसक्रतिक धरोहर और भारतीय नैतिक शिक्षाओं और संवेदनषीलता को आज के युवाओं में पुऩ जाग्रति के प्रयास से हमारे द्धारा भारतीय साहित्य के महानायकों में से एक मुंशी प्रेमचंद की भारतीय समाज को एकसूत्र में पिरोने वाली रचनाओं का वर्तमान पीढी की रूचि के अनुरूप ही प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
धन्यवाद ।

संपादक 

भारतभवः 

Share this...
bharatbhvh

Recent Posts

बागेश्वर धाम की हिन्दू एकता पदयात्रा आज से प्रारम्भ

जहां देश में एक तरफ जातिगत जनगणना को लेकर वार पलटवार का दौर चल रहा…

9 hours ago

ग्राम बोधिपुर में सिद्ध स्थान राजा बाबा के यहां वार्षिक मढ़ई महोत्सव का आयोजन

देवरीकला। वीरान ग्राम बोधिपुर में सिद्ध स्थान राजा बाबा के यहां वार्षिक मढ़ई महोत्सव का…

1 day ago

कमलनाथ की हार और कुमार विश्वास का तंज

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और बीते साल मध्यप्रदेश कांग्रेस के सबसे बड़े नेता रहे कमलनाथ…

1 day ago

सागर – ई-चालान का भुगतान न करने वाले 997 वाहन चालकों पर की जाएगी सख्त कार्यवाही

यातायात नियमों का उल्लंघन करने पर पांच या पांच से अधिक ई-चालान जिन वाहनों पर…

2 days ago

कलेक्टर ने की लापरवाह शिक्षकों पर सख्त कार्रवाई

शिक्षा, स्वास्थ्य में लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी - कलेक्टर संदीप जी आर   डीईओ ,डीपीसी,…

2 days ago

धीरेंद्र शास्त्री से डर गई कांग्रेस या वजह कुछ और….!

धीरेंद्र शास्त्री से डर गई कांग्रेस या वजह कुछ और....! - उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री…

3 days ago