मध्यप्रदेश के आने वाले चुनावों में सत्ताधारी दल भाजपा और खार खाये बैठी प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने अपनी रणनीतिक तैयारी कर कागजों पर उतार ली है और अब इसे अमली जामा पहनाये जाने की तैयारी है । दोनो ही दल मध्यप्रदेश में बड़े और एकमुश्त लहर वाले वोटबैक पर ज्यादा फोकस और मेहनत करना चाहते है और प्रदेश में आदिवासी वोटबैक दोनो ही दलों के लिये महत्वपूर्ण है जहां हर हाल में सरकार बनाने की तैयारी कर रही भाजपा अंदाज बदल बदल कर आदिवासियों के कार्यक्रम कर रही है जिससे उन्हें पुख्ता तौर पर अपना बनाया जा सके क्योंकि प्रदेश का चुनावी इतिहास बताता है कि जिधर आदिवासी चले जाते हैं उधर की सरकार बन जाती है। 2018 में कांग्रेस ने आदिवासियों की दम पर सरकार बनाई थी और अब भाजपा 2013 की तरह इस वर्ग को अपनी ओर करने में जुटी है।
दरअसलए मध्यप्रदेश की जिस तरह की राजनीतिक परिस्थितियां हैं और अब तक का प्रदेश का जो चुनावी इतिहास है। उसमें भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला होता आया है और एक दो चुनाव को छोड़ दें तो प्राप्त होने वाले मतों के प्रतिशत में भी ज्यादा अंतर नहीं रहा है। थोड़ी सी चूक करने पर सरकार की वापसी नहीं होती थोड़ी सतर्कता बरतने पर सरकार बन जाती है। 2ण्18 में कांग्रेस की सरकार प्रदेश में बनी और 15 वर्षों की भाजपा सरकार सप्ताह से जरूर बाहर हो गई क्योंकि कांग्रेस की अपेक्षा उसके 8 विधायक कम पड़ रहे थे लेकिन मत प्रतिशत में कांग्रेसी से आगे थी चुनाव परिणाम से अचंभित भाजपा ने प्रदेश में डेढ़ साल बाद ही सत्ता में वापसी कर ली और ना केवल वापसी कर ली वरन ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे ऊर्जावान युवा चेहरे को पार्टी में शामिल करके 2023 और 2024 के लिए भी तैयारी शुरू कर दी इस बार पार्टी किसी भी प्रकार के ओवरकॉन्फिडेंस में नहीं रहना चाहती वह हर हाल में सत्ता में वापसी के लिए चौतरफा प्रयास कर रही है।
बहरहालए प्रदेश में 2018 में 15 वर्षों की भाजपा सरकार की विदाई कि जब कारणों की समीक्षा की तो पार्टी ने एक बड़ा कारण आदिवासी सीटो का हारना समझ में आया जबकि 2013, 2008 और 2003 में इस वर्ग की अधिकांश सीटें जीतकर पार्टी सरकार बनाती रही है और इसके बाद से ही पार्टी आदिवासी वर्ग को पुख्ता तौर पर अपने पक्ष में करने के लिए अलग अलग अंदाज में अपनाने के प्रयास कर रही है और इसमें राष्ट्रीय नेतृत्व का भी मार्गदर्शन मिल रहा है। 15 नवंबर को राजधानी भोपाल में जनजातीय गौरव दिवस मनाया गया जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए और अनेकों घोषणाएं आदिवासी वर्ग के पक्ष में की गई और यहां तक कि हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापति स्टेशन रखा गया जैसे कि इस वर्ग के स्वाभिमान वृद्धि हो और 22 अप्रैल को केंद्रीय गृहमंत्री और भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह के मुख्य आतिथ्य में विशाल तेंदूपत्ता बोनस वितरण का कार्यक्रम राजधानी के उसी जंबूरी मैदान में रखा गया। जहां प्रधानमंत्री आए थे और एक बार फिर आदिवासी वर्ग के पक्ष में घोष्णायें की गई और इसके बाद से लगातार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस वर्ग की बीच जाने की कोशिश कर रहे हैं।
सोमवार को मुख्यमंत्री निवास पर ट्राईबल एडवाइजरी काउंसिल की बैठक आयोजित की गई जिसमें इस वर्ग के विधायक और अधिकारियों को विशेष रुप से बुलाया गया और मुख्यमंत्री ने डिनर भी सबके साथ किया। इस दौरान महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की गई जिन पर अमल करके इस वर्ग के हित में तेजी से काम किया जा सके। इस वर्ग में पकड़ रखने वाले आदिवासी वर्ग के नेता और मंत्री विजय शाह की नज़दीकियां भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से देखी जा रही हैं जबकि 2018 के पहले कितनी निकटता नहीं थी।
हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब सर से मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना की शुरुआत की तब विजय शाह स्टेशन पर ढोल बजाते हुए नजर आए। भाजपा यह भी जानती है की कांग्रेसमें कमलनाथ की आदिवासी वर्ग पर पकड़ अन्य नेताओं की बजाय ज्यादा है और 2018 में इसी वर्ग ने कमलनाथ की मदद की और कमलनाथ एक बार फिर से कांग्रेस की चेहरा है। इस कारण यह वर्ग अब कांग्रेसी या कमलनाथ की तरफ ना जाए। इस कारण भी भाजपा ने इस वर्ग को अपनी और करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है और अभी आगामी दिनों में इस वर्ग पर विशेष रूप से काम किया जाएगा।
कुल मिलाकर तू डाल डाल मैं पात पात की तर्ज पर भाजपा और कांग्रेस आदिवासी वर्ग को अपनी और करने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं लेकिन भाजेेेपा ने जिस तरह से राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर वर्ग पर फोकस बनाया है। उसे 2023 ही विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में इस पर्व की महत्वपूर्ण भूमिका हो गई है।
देवदत्त दुबे – भोपाल मध्यप्रदेश
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