लोकतंत्र-मंत्र

नरेश गोयल के बहाने न्याय पर बात

रोज लिखने वाले मेरे जैसे आम लेखक के लिए ये बहुत कठिन होता है कि वो किस विषय पर लिखे और किसे त्याग दे। नियमित पाठकों की अपेक्षाएं अलग होतीं है ,क्योंकि वे खुद लिखने में समर्थ नहीं हैं या लिखना नहीं चाहते। आज मेरे सामने भी कदाचित यही पशोपेश है। मेरे सामने लिखने के लिए विषयों की कमी नहीं है किन्तु विषयों के चुनाव की दिक्क्त जरूर है । आज मै राजनीति और धर्म के घिसे-पिटे विषय पर लिखने के बजाय न्याय और अन्याय पर लिख रहा हूँ । परेशान न हों मेरा आज का विषय पूरी तरह अराजनीतिक है। कांग्रेस देश में 14 जनवरी से भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाल रही है। ये एक राजनीतिक यात्रा है लेकिन यदि इसमें सचमुच भारतीय न्याय व्यवस्था की मौजूदा स्थिति को जोड़ लिया जाये तो और बेहतर हो।आज मै बात कर रहा हूँ जेट एयरवेज के मालिक नरेश गोयल के बहाने से। गोयल साहब केनरा बैंक के साथ 538 करोड़ रुपये की कथित धोखाधड़ी के मामले में पिछले साल 1 सितंबर से जेल में हैं। नरेश गोयल ने शनिवार को यहां एक विशेष अदालत में हाथ जोड़कर कहा कि वह जिंदगी की आस खो चुके हैं और इस स्थिति में जीने से बेहतर होगा कि वह जेल में ही मर जाएं।गोयल साहब को पता नहीं है कि उन जैसे देश में लाखों नरेश गोयल हैं जो न्याय व्यवस्था से निराश होकर जेल में ही मर जाना चाहते हैं। क्योंकि अदालतें न उन्हें जमानत देती हैं और न सजा सुनाती हैं ,क्योंकि अदालती प्रक्रिया ही ऐसी है।देश की जेलों में एक नरेश गोयल होता तो आलेख लिखने की कोई जरूरत शायद न होती ,लेकिन जब इनकी संख्या लाखों में हो जाये तो फिर इस मुद्दे पर लिखना जरूरी हो जाता है। क्योंकि मौजूदा न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता इस तरह के मामलों से प्रभावित होती है । कभी-कभी लगता है कि देश की अदालतें जांच एजेंसियों और सत्ता प्रतिष्ठान के सामने असहाय हैं और वे चाहकर भी न्याय नहीं कर पा रहीं हैं। देश की न्याय व्यवस्था के प्रति इस तरह की धारणा हाल के एक -दशक में ज्यादा बढ़ी है क्योंकि इस एक दशक में अदावत की सियासत ने जिस तरह से काम शुरू किया है उसे देखकर लगता है कि हमारी न्याय व्यवस्था को या तो बेपटरी किया जा रहा है या फिर उसे प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है।
                               देश की जेलों और अदालतों के आंकड़े हासिल करना वैसे तो टेढ़ी खीर है लेकिन जब तब संसद में इस तरह के आंकड़े दिए जाते हैं तो उन्हें देखकर ही विस्मय होता है। पिछले दिनों संसद में बताया गया कि देश भर की जेलों में वर्ष 2017 से 2021 के बीच बंद विचाराधीन कैदियों की कुल संख्या साढ़े 17.64 लाख से अधिक है और इनमें सर्वाधिक कैदी अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं। हालांकि सरकार के पास यह आंकड़ें नहीं है कि इस अवधि में कितने विचाराधीन कैदियों की हिरासत में मृत्यु हुई है।केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में बुधवार को बताया कि वर्ष 2017 से लेकर 31 दिसंबर 2021 की स्थिति के अनुसार देश भर में विचाराधीन कैदियों की कुल संख्या 17,64,788 है।उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2017 में विचाराधीन कैदियों की संख्या 3,08,718, वर्ष 2018 में 3,24,141, वर्ष 2019 में 3,32,916, वर्ष 2020 में 3,71,848 और वर्ष 2021 में 4,27,165 थी।आप कल्पना कीजिये कि जिस देश में इतनी बड़ी सख्या में विचाराधीन कैदी हों उस देश की न्याय व्यवस्था कितनी बेचारगी की शिकार होगी ? लगता है कि कहीं जमानत देने कि लिए आधार नहीं मिलता ,तो कहीं जमानत न देने कि लिए जान-बूझकर स्थितियां बनाई जातीं है और अदालत ऐसे में विचाराधीन कैदी की कोई मदद नहीं कर पाती। देश के विचाराधीन कैदियों में सभी ने नरेश गोयल की तरह किसी बैंक के साथ धोखाधड़ी नहीं की है । इनमें बहुत से जेबकतरे भी हैं और बहुत से छोटे-छोटे अपराधों के आरोपी। इनमें से बहुत से तो ऐसे हैं जिन्हें मूल अपराध के लिए मिलने वाली सजा से ज्यादा अवधि तक विधारधीन कैदी की हैसियत से जेल में रहना पड़ रहा है। बहुत से क्या जयादातर तो ऐसे हैं जो नरेश गोयल की तरह अपना वकील तक जमानत के लिए खड़ा नहीं कर सकते।आपको बता दूँ कि 70 वर्षीय गोयल ने कहा कि उन्हें अपनी पत्नी अनीता की कमी बहुत खलती है, जो कैंसर के अंतिम चरण में हैं।गोयल की ही तरह दिल्ली सरकार कि उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया हों या आम आदमी पार्टी कि संसद संजय सिंह या अंधविश्वास उन्मूलन संस्था का कोई पदाधिकारी यदि एक बार जेल कि सींखचों कि पीछे पहुँच गया तो फिर उसका या तो भगवान मालिक है या फिर सरकार। ये दोनों यदि आपके अनुकूल नहीं हैं तो आपको भी सहाराश्री की ही तरह बिना सजा सुने मृत्युलोक से रवानगी डालना पड़ सकती है। जेट एयरवेज के संस्थापक नरेश गोयल से मेरी कोई सहानुभूति न होती यदि उनके खिलाफ कार्रवाई गतिशील होती ।कितना कारुणिक दृश्य रहा होगा जब गोयल ने हाथ जोड़कर और कांपते हुए कहा कि उनका स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया है। उनकी पत्नी बिस्तर पर पड़ी है और उनकी एकमात्र बेटी भी अस्वस्थ हैं। उन्होंने कहा कि जेल कर्मियों की भी उनकी मदद करने की सीमाएं है। न्यायाधीश ने कहा, मैंने उनकी बात ध्यान से सुनी और जब वह अपनी बात रख रहे थे तो मैंने उन्हें ध्यान से देखा। मैंने पाया कि उनका शरीर कांप रहा है। उन्हें खड़ा होने के लिए भी सहारे की जरूरत है। न्यायाधीश ने कहा, मैंने उनकी हर बात पर गौर किया है। मैंने आश्वस्त किया कि उन्हें बेसहारा नहीं छोड़ा जाएगा और उनके मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य का हर संभव ख्याल रखा जाएगा और इलाज कराया जाएगा। अदालत ने उनके वकीलों को उनके स्वास्थ्य के सिलसिले में उपयुक्त कदम उठाने का निर्देश दिया।हमारी सरकार अंग्रेजों कि जमाने कि कानूनों,प्रतीकों को बदलने में लगी है। भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में भी सरकार ने पिछले दिनों विपक्ष की अनुपस्थिति में क़ानून बनाये हैं लेकिन देश की जर्जर होती न्याय व्यवस्था को सुधरने की सुध उसे नहीं है क्योंकि शायद मौजूदा न्याय व्यवस्था उसके माकूल है।राहुल गांधी की न्याय यात्रा में यदि इस विन्दु को भी शामिल किया जाये तो मुमकिन है कि देश का जनमत सरकारों पर न्याय व्यवस्था में परिवर्तन का दबाब डाले।
राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक

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