अनुभवी मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल को यह सब प्रशासनिक कार्य मुश्किल नहीं थे। उस दिन शुक्ल कांग्रेस हाईकमान के बुलावे पर सन 1957 में होने वाले आम चुनाव में टिकट वितरण के सिलसिले में दिल्ली गए थे । वे 30 और 31 दिसंबर को जबलपुर के लोकसभा सदस्य सेठ गोविंद दास के कैनिंग रोड स्थित बंगले पर ठहरे। ऐसा कहा जाता है कि कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें उसी समय सन 1957 में होने वाले आम चुनाव में टिकट देने की बात कही थी उनसे कहा गया था कि उन्हें किसी भी प्रदेश में राज्यपाल बनाकर भेजा जा सकता है हालांकि इस बात की कोई अधिकारिक घोषणा नहीं की गई थी पर समाचार पत्रों ने खबर छापी थी और महत्वपूर्ण लोगों को यह बात बता दी गई थी।
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यह जानकारी मिलने के बाद शुक्ल कांग्रेश के जंतर-मंतर स्थित मुख्यालय से सीधे कनॉट पैलेस पहुंचे जहां 2 घंटे अपने एक मित्र हरिश्चंद्र मरोठी के साथ घूमते रहे उसके बाद भी लौटे, तो रात में हृदयाघात के कारण उनका निधन हो गया दूसरे दिन उनका शव भोपाल लाया गया और बाद में उनकी अंत्येष्टि विधायक विश्रामगृह के सामने की गई जहां आज भी उनकी प्रतिमा लगी है यह प्रतिमा मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र ने लगवाई थी । द्वारका प्रसाद मिश्र ,रविशंकर शुक्ल को अपना गुरु मानते थे। विधायक विश्रामगृह के सामने का इलाका जंगल जैसा था। बाद में सेठ गोविंद दास ने भी केनिंग लेन, दिल्ली का मकान छोड़ दिया । उन दिनों कांग्रेस का मुख्यालय 7 जंतर मंतर रोड पर हुआ करता था, सन 1969 में जब कांग्रेस का विभाजन हुआ तो इंदिरा गांधी इसे विंडसर प्लेस के बंगले में ले गयीं । बाद में कांग्रेस का मुख्यालय राजेंद्र प्रसाद रोड पर स्थित हो गया और उसके बाद सन 1978 में 24 अकबर रोड पर गया जहां आज तक चल रहा है। कांग्रेस ने कई बार प्रयास किए कि जंतर मंतर रोड का बंगला उसे मिल जाए, पर ऐसा नहीं हो सका जनता पार्टी के समय चतुराई से इसे सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम पर एकट्रस्ट बनाकर सौंप दिया गया।
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