हमारा इतिहास

हमारा इतिहास : शिवराज ने राघवजी के टिकट का विरोध किया

भाजपा में चुनाव के पहले टिकट वितरण को लेकर खूब खींचतान हुई। कुछ नेता विरोधियों को टिकट नहीं मिलने देना चाहते थे। चुनाव के पहले राघवजी को टिकिट को लेकर भीतर ही भीतर शिवराज सिंह ने विरोध किया। उमा भारती ने शिवराज विरोधी होने के कारण राघवजी का टिकिट सुनिश्चित करवाया था। जब राघवनी शमशाबाद से 2003 का विधानसभा का टिकट मिला तब भी शिवराज सिंह ने उनका विरोध किया। राघवजी चुनाव लड़कर विधानसभा का उपाध्यक्ष बनना चाहते थे। कहते है बहुत बड़े वर्ग को ऐसा भी लग रहा था कि भाजपा फिर चुनाव नहीं जीतेगी और विधानसभ में वरिष्ठता के चलते राघवजी को उपाध्यक्ष बनाया जायेगा । इसी तरह सुन्दरलाल पटवा के घर होने वाली चुनाव समिति की बैठक में उमा भारती ने विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा को टिकिट दिए जाने का विरोध किया। उन्होंने टिकट के नाम पर विक्रम वर्मा को बहुत भला बुरा कहा। बाद में जब विक्रम वर्मा बहुत नाराज हो गये तो उमा भारती ने माफी मांग ली। होशंगाबाद से सांसद और भाजपा के उपाध्यक्ष सरताज सिंह ने इटारसी की सीट को लेकर इस्तीफा दे दिया।
                       अपने पत्र में पार्टी अध्यक्ष कैलाश जोशी को उन्होंने लिखा कि उनके  जैसे नेताओं से यदि उनके जिले में टिकिट के मामले में परामर्श नहीं किया गया तो उनका पार्टी में रहना बेकार है। सरताज इटारसी से डॉ. सीतासरन शर्मा का विरोध कर रहे थे। उमा भारती, अनूप मिश्रा को भी टिकट नहीं देना चाहतीं थीं। दोनों के बीच मतभेद जगजाहिर थे। केन्द्र सरकार में जब उमा भारती खेल एवं युवा कल्याण मंत्री थी तब अनूप मिश्रा नेहरू युवा केन्द्र के उपाध्यक्ष । युवा कल्याण मंत्री, नेहरू युवा केन्द्र का पदेन अध्यात होता है। उमा भारती और मिश्रा में तब खूब तकरार हुई जब उनके हित एक ही विभाग के अंदर काम करने से टकराते । उमा भारती तब अनूप मिश्रा को बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थीं। लेकिन पार्टी में बड़े नेताओं के हस्तक्षेप और अटल बिहारी वाजपेयी के लिहाज के कारण मिश्रा को टिकट भी मिला और उन्हें राज्यमंत्री भी बनाया गया। हालांकि मिश्रा को दबाव में रखने के लिए ग्वालियर के ही नरेन्द्र सिंह तोमर को पहली बार में ही कैबिनेट मंत्री बनाकर महत्वपूर्ण ग्रामीण विकास विभाग दिया गया। तोमर उमा भारती के लिए तब से प्रिय थे जब वे उमा भारती की परिवर्तन यात्रा के सहप्रभारी बने थे।
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक
श्री दीपक तिवारी कि किताब “राजनीतिनामा मध्यप्रदेश” ( भाजपा युग ) से साभार ।

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