जीवन शैली

कटटरवाद से मुक्ति :सऊदी अरब से सीखो

धर्म नशा है या नहीं ,ये विमर्श बहुत पुराना पड़ चुका है । नया विमर्श ये है कि क्या धर्म को कटटरवाद के साथ आगे बढ़ना चाहिए या उदारता के साथ ? दुनिया में इन दिनों इस्लाम को सबसे ज्यादा कटटर धर्म माना जाता है। इस्लामिक कानून भी दीगर धर्म आधारित देशों के कानूनों के मुकाबले सख्त और अमानवीय माने जाते हैं,किन्तु अब दुनिया के एक प्रमुख इस्लामिक देश सऊदी अरब ने अपने देश में कटटरता से मुक्ति की और बढ़ते हुए अपने देश में विदेशियों के लिए शराब की दूकान खोलने की इजाजत दे दी है।सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस बिन सलमान ने देश की राजधानी रियाद में शराब की दूकान खोलने की इजाजत दे दी है । यहां 72 साल पहले शराबबंदी कर दी गयी थी । अब गैर इस्लामिक देशों के विदेशी राजनीयिक रियाद में शराब खरीदकर पी सकेंगे। यहां पिछले दिनों महिलाओं को कार चलने,पुरुषों के साथ कार्यक्रमों में शामिल होने ,सिनेमाघरों में जाने और संगीत के कार्यक्रमों में शामिल होने की छूट भी दी गयी है ।इस्लाम में पहले महिलाओं को ये आजादी नहीं थी। शराब खरीदने के लिए खरीदार को पहले मोबाईल के जरिये अपना पंजीयन करना पडेगा ,फिर उसे एक कोड मिलेगा जिसके जरिये शराब खरीदी जा सकेग। शराब के लिए कोटा भी तय किया जाएगा।दुनिया की कुल आबादी में से इस्लाम मानने वालों की आबादी 2 अरब है। इसमें से 85 फीसदी शिया और 15 फीसदी सुन्नी मुसलमान हैं।इस्लाम कोई 1400 साल पुराना धर्म है। इसमें मूर्ति पूजा की मनाही है। इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरान है। इसी के आधार पर क़ानून भी बनाये गए हैं ,लेकिन समय के साथ इस्लाम को मानने वाले बदल भी रहे हैं। सऊदी अरब इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। सऊदी की अर्थ व्यवस्था तेल पर निर्भर है । सऊदी 2030 तक अपनी इस एकिरित अर्थव्यवस्था को बदलना चाहता है और पर्यटन पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है। दुनिया में जिस तरह से इलेक्ट्रानिक वाहनों का इस्तेमाल बढ़ रहा है उसे देखते हुए आने वाले दिनों में तरल ईंधन पर निर्भरता कम होगी ,ऐसे में आय के दुसरे स्रोत खड़े करने के लिए उदारता बरतना आवश्यक हो गया है।
                                                     एक तरफ इस्लाम में कटटरता से मुक्ति के रस्ते खोजे जा रहे हैं वहीं दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का दूसरा देश भारत कटटरता की ओर बढ़ रहा है ,जबकि भारत में धार्मिक वैविध्यता है। बहुसंख्यक आबादी हिन्दू है और हिन्दू धर्म पहले से सहिष्णु और उदार है लेकिन उसे कटर बनाने की सुनियोजित कोशिश की जा रही है।भारत के अनेक राज्यों में जहँ हिंदूवादी भाजपा की सरकारें हैं वहां लोगों के खान-पान और पहनावे के अलावा निजी आचरणों को लेकर सवाल खड़े किये जा रहे है। कहीं मांस बेचने की दुकानों पर रोक लगाई जा रही है ,तो कहीं हिजाब पहनने को लेकर बवाल काटा जा रहा है। एक धर्म विशेष के पूजाघरों से लाउड स्पीकर उतरवाए जा रहे हैं। गैर हिन्दुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की कोशिश की जा रही है।इस्लामिक देशों में धार्मिक कटटरता के बावजूद हिन्दू मंदिर बनाये जाने की इजाजत दी जा रही है। सरकार कि लिए मंदिर उसकी प्रतिष्ठा कि प्रश्न बन चुके हैं।,लेकिन हिंदुस्तान में पुरानी मस्जिदों को निशाना बनाया जा रहा है। इस्लामिक शैक्षणिक संस्थानों में दखल दिया जा रहा है। प्रचारित किया जा रहा है की ये मदरसे आतंवादियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। मदरसों को मिलने वाली राज सहायता रोकी जा रही है। शहरों के नाम बदले जा रहे हैं। इन फैसलों के पीछे उदारता के बजाय कटटरता नजर आती है और ये कटटरता नंगी आँखों से नजर आने लगी है।लौटकर सऊदी अरब पर आते हैं। सऊदी अरब में शराब पर प्रतिबंध साल 1952 से है। उस समय तत्कालीन बादशाह अब्दुल अजीज के बेटे ने शराब के नशे में एक ब्रिटिश डिप्लोमैट की गोली मारकर हत्या कर दी थी। जिसके बाद सरकार ने शराब पर प्रतिबंध लगा दिया था । इस पाबंदी को हटाने के लिए प्रिंस को बहुत सोच-विचार करना पड़ा । धार्मिक नेताओं का विरोध भी उनके सामने था। आज दुनिया में सऊदी अरब को एक प्रगतिशील इस्लामिक देश मना जाता है और भारत की छवि एक हिन्दू तालिबानी मुल्क की बन रही है। राजनीति इसके लिए जम्मेदार है। इसे रोका जाना चाहिए। दुनिया का कोई भी मुल्क हो धार्मिक कटटरता से आगे नहीं बढ़ पाया है। कटटरता से किसी भी देश की प्रगति नहीं हो सकती और न बसुधैव कुटुंबकम ‘ की अवधारणा का पालन किया जा सकता है।
                                                   मुझे अल्सर लगता है कि किसी भी देश में लोगों को धर्म का नशा करने से बेहतर है कि उसे शराब पीने की इजाजत दी जाये । भारत में भी नशे के विरोध को लेकर आंदोलन और अभियान चलते रहते हैं।सऊदी अरब में जैसे तेल अर्थ व्यवस्था का एक बड़ा जरिया है वैसे ही भारत में शराब आधारित अर्थ व्यवस्था है । यहां शराब का कारोबार भ्र्ष्टाचार का भी एक माध्यम है। दिल्ली राज्य के मंत्री और राज्यसभा के सदस्य इसी शराब कारोबार में कथित घोटाले को लेकर जेलों में पड़े हैं। महात्मा गाँधी भी शराब के खिलाफ थे लेकिन गांधीवादी सरकारें हों या हिंदूवादी सरकारें किसी ने शराबबंदी नहीं की । शराबबंदी हुई भी तो भाजपा शासित गुजरात में या जेडीयू शासित बिहार में। बहरहाल ये युग उदारता का युग है और हमें उदारता के रास्ते पर ही आगे बढ़ना चाहिए न की कटटरता के रास्ते पर।

राकेश अचल जी 

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