राजनीतिनामा

पसमांदा मुसलमानों का उद्धार…

देश के कुल मुसलमानों में पसमांदा मुसलमानों की संख्या लगभग 90 प्रतिशत है। पसमांदा का मतलब है- पिछड़े हुए! इन पिछड़े हुए मुसलमानों में वे सब शामिल हैं, जो कभी हिंदू थे लेकिन उनमें भी पिछड़े, अछूत, अनुसूचित और निम्न समझी जाने वाली जातियों के थे। इस्लाम तो जातिवाद और ऊँच-नीच के भेद को नहीं मानता है लेकिन हमारे मुसलमानों में ही नहीं, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मुसलमानों में भी जातिवाद जस-का-तस कायम है, जैसा कि वह हिंदुस्तान में फैला हुआ है।

पाकिस्तान के जाट, गूजर, अहीर, कायस्थ, खत्री, पठान और यहां तक कि अपने आप को ब्राह्मण कहने वाले मुसलमानों से भी मेरा मिलना हुआ है। अफगानिस्तान में पठान, ताजिक, उजबेक, किरगीज, खत्री और मू-ए-सुर्ख मुसलमानों से भी मेरा कई बार साबका पड़ा है। इन मुस्लिम देशों में हिंदू-जातिवाद मौजूद है लेकिन वह वहां दबा-छिपा रहता है। भारत में तो जातिवाद का इतना जबर्दस्त बोलबाला है कि भारत के ‘अशराफ’ और ‘अजलाफ’ मुसलमान ‘अरजाल’ मुसलमानों से हमेशा कोई न कोई फासला बनाए रखते हैं।

पहले दो वर्गों में आने वाले लोग अपने आप को तुर्कों, मुगलों और पठानों का वंशज समझते हैं और अजलाफ लोग वे हैं, जो ब्राह्मण और राजपूतों से मुसलमान बन गए हैं। भारत के मालदार, उच्च पदस्थ और शिक्षित मुसलमानों में अरजाल मुसलमानों की संख्या लगभग नगण्य है। उनमें ज्यादातर खेती, मजदूरी, साफ-सफाई और छोटी-मोटी नौकरियां करने वाले गरीब लोग ही होते हैं। इन्हीं मुसलमानों को न्याय दिलाने के लिए तीन-चार पसमांदा नेताओं ने इधर कुछ पहल की है।

उनमें से एक नेता अली अनवर अंसारी ने एक बड़ा सुंदर नारा दिया है, जो मेरे विचारों से बहुत मेल खाता है। वे कहते हैंः दलित-पिछड़ा एक समान। हिंदू हों या मुसलमान!! मैं तो इसमें सभी भारतवासियों को जोड़ता हूँ, वे चाहे किसी भी धर्म या जाति के हों। जाति और धर्म किसी का न देखा जाए, सिर्फ उसका हाल कैसा है, यह जाना जाए। हर बदहाल का उद्धार करना भारत सरकार का धर्म होना चाहिए। इसीलिए मैं जातीय और मजहबी आरक्षण को अनुचित मानता हूं।

आरक्षण जन्म से नहीं, जरूरत से होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पसमांदा मुसलमानों के साथ न्याय की आवाज उठाई है। मेरे ही सुझाव पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिवंगत प्रमुख श्री कुप्प सी. सुदर्शन ने राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की स्थापना की थी।

यदि हम जाति और मजहब को सामाजिक और आर्थिक न्याय का आधार बनाएंगे तो देश में हम जातिवाद और सांप्रदायिकता का जहर फैला देंगे। ऐसा करके हम अगली सदी में भारत के कई टुकड़े करने का आधार तैयार कर देंगे। हमें ऐसा भारत बनाना है, जिसके महासंघ में भारत के पड़ौसी हिंदू, सुन्नी, मुस्लिम, बौद्ध और शिया देश में शामिल होने की आकांक्षा रखें।

आलेख , वरिष्ठ पत्रकार – श्री वेद प्रताप वैदिक, नई दिल्ली ।

साभार- राष्ट्रीय हिंदी दैनिक “नया इंडिया” समाचार पत्र   ।

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