धार्मिक फैसलों के अलावा उमा भारती ने मुख्यमंत्री के रूप में एक संवेदनशील प्रशासक की छवि गढ़ने की शुरुआत मकर संक्रांति से की। उस दिन 90 आदिवासी ब्लॉकों के 14 लाख बच्चों को दलिया के स्थान पर पूरा पका हुआ स्वादिष्ट भोजन देने की योजना शुरु की गई। डिण्डोरी के कोहका गाँव में जब यह योजना आरंभ की गई तब वह बच्चों के लिए एक नये युग की शुरुआत थी। क्योंकि इसके बाद उनको स्कूल जाने के लिए एक अच्छा कारण था। इस निर्णय के साथ ही लाखों गरीब बच्चों के एक समय के भोजन की जिम्मेदारी सरकार ने उठा ली। इसके पहले स्कूलों में भोजन की योजना तमिलनाडू में थी। इसके पहले उमा भारती की तीसरी कैबिनेट मीटिंग में जब स्कूलों में बच्चों के लिए संपूर्ण भोजन की व्यवस्था करने के लिए वित्त विभाग को निर्देशित किया तो प्रमुख सचिव आर एस सिरोही ने पूरे मंत्रिमंडल के सामने ऐसा करने से मना कर दिया। उन्होंने तर्क दिया कि ऐसा इसलिये नहीं किया जा सकता क्योंकि राज्य की आर्थिक हालत बहुत खराब है और अगर तत्काल आमदनी के प्रबंध नहीं किये गये तो रिजर्व बैंक आफ इंडिया को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है।
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जब सिंह ने सरकार छोड़ी थी तब खजाना खाली था और सरकार पर 28,699 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज़ था। यह अलग बात है इन पन्द्रह वर्षों में यह कर्ज़ बढ़कर 1 लाख 60 हजार करोड़ से ज्यादा हो गया है। तब सिरोही की चिन्ता यह थी कि आने वाले मार्च महीने में बजट कैसे तैयार होगा। एक अच्छे प्रशासक के तौर पर उनकी चिन्ता जायज थी। शायद बताने का तरीका गलत हो गया था। इस बात से उमा भारती बहुत नाराज हुईं और उन्हें लूप-लाईन में डाल दिया गया। सरकार बनने के साथ ही सब कुछ ठीक नहीं था। मुख्यमंत्री बनने के चार दिन बाद ही दस दिसम्बर को स्वामी लोधी, उमा भारती के पास मशहूर तांत्रिक चंद्रास्वामी को लेकर पहुँच गये। चंद्रास्वामी के साथ उमा भारती की मुलाकात जब समाचार पत्रों में छपी तो लालकृष्ण आडवाणी बहुत नाराज हुए। इसके कुछ दिनों बाद ही शिक्षामंत्री रमाकांत तिवारी को लकवा मार गया और उन्हें बंबई सरकारी जहाज से ले जाना पड़ा। सरकार की शुरुआत में ही शिक्षा विभाग बिना मंत्री के हो गया। लगभग दो महीने तक यही आलम रहा फिर तिवारी को बिना विभाग का मंत्री घोषित कर दिया गया।
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