पाकिस्तान में अशांत खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के पेशावर में उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र में खचाखच भरी एक मस्जिद में सोमवार को दोपहर की नमाज की दौरान एक शक्तिशाली आत्मघाती बम विस्फोट होने से 61 लोगों की मौत हो गई, जबकि 157 घायल हो गये। पहले से आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए ये वारदात ‘ कोढ़ में खाज की तरह है। पेशावर में हुआ विस्फोट भारत के विदेश मंत्री जयशंकर द्वारा पाकिस्तान पर लगाए गए आरोपों की ताईद करते हैं।कहा जाता है कि इस विस्फोट के पीछे तहरीक-ए-तालिबान का हाथ है।इस संगठन के पाकिस्तान के मृत कमांडर उमर खालिद के एक भाई ने दावा किया कि यह आत्मघाती हमला अफगानिस्तान में पिछले साल अगस्त में मार दिये गये उसके भाई की मौत का बदला है। आपको बता दूं कि ये संगठन प्रतिबंधित है। इसके फिदाईन सुरक्षाकर्मियों को निशाना बनाते हुए अतीत में कई आत्मघाती हमले किये हैं, उसे पाकिस्तान तालिबान नाम से भी जाना जाता है। धमाके के समय इलाके में सैकड़ों पुलिस अधिकारी मौजूद थे । जाहिर है कि”यह वारदात सुरक्षा चूक की वजह से हुई है. दुनिया भर में भीख मांगते फिर रहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने यह कहते हुए इस हमले की कड़ी निंदा की। वे और कर भी क्या कर सकते हैं। वे सफाई देते हैं कि इस घटना के पीछे जिन हमलावरों का हाथ है ।उनका “इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है ” ।शरीफ कहते हैं कि “आतंकवादी उन लोगों को निशाना बनाकर डर पैदा करना चाहते हैं जो पाकिस्तान की रक्षा करने का कर्तव्य निभाते हैं ।”
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मुझे हैरानी होती है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ बेशर्मी से झूठ कैसे बोल लेते हैं।उन्होंने कहा कि विस्फोट में मारे गये लोगों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी ।उन्होंने कहा कि “समूचा राष्ट्र आतंकवाद की इस बुराई के विरूद्ध लड़ाई में एकजुट है । पिछले दिनों जब भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने पाकिस्तान पर आतंकवाद को प्रश्रय देने का आरोप लगाया था उसे लेकर पाकिस्तान के नाबालिग विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी बिलबिला गये थे।अब पेशावर विस्फोट के बाद भीगी बिल्ली बने हुए हैं। आतंकवाद ने पाकिस्तान को ही नहीं बल्कि भारत को भी परेशान किया हुआ है। इसलिए भले ही पाकिस्तान से हमारे ताल्लुक ठीक न हों तो भी हमें पेशावर में मारे गए लोगों के प्रति हमारी संवेदनाएं हैं। हमें डर है कि पाकिस्तान के खराब आर्थिक हालात की वजह से पाकिस्तान में आतंकवादी एक बार फिर ताकतवर न हो जाएं। भारत में आतंकवाद का सबसे बड़ा शिकार जम्मू कश्मीर है। तीन साल से सूबे में राष्ट्रपति शासन के बावजूद हालात सुधरने के बजाय बिगड़ते जा रहे हैं। तीन साल से केंद्र के अधीन लद्दाख भी संतुष्ट नहीं है, लेकिन केंद्र कोई ठोस कदम उठाने को तैयार नहीं है। जानने वाले जानते हैं कि पेशावर और कश्मीर की हालत में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है। दोनों जगह लोकतंत्र एक तरह से स्थगित है।आतंकी इसका फायदा उठाना चाहते हैं। उन्हें रोका जाना चाहिए। वहां भी और यहां भी। ये तभी मुमकिन है जब दोनों मुल्कों के बीच ताल्लुक ठीक हों। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने शुरू में रिश्ते सुधारने की पहल भी की थी, लेकिन उन्हें भी तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की तरह नाकामी ही हाथ लगी। पेशावर की वारदात के बाद भारत बेफिक्र होकर चैन से नहीं बैठ सकता। भारत की सतर्कता ही भारत की सुरक्षा की गारंटी है।हम उम्मीद करते हैं कि मौजूदा सरकार भले ही विदेशी मामलों में बहुत ज्यादा कामयाब न हुई हो लेकिन पाकिस्तान के मामले में अभी तक सरकार का रवैया ठीक है। दोनों मुल्कों के रिश्ते ठीक करना आवाम के नहीं सरकार के हाथ में है। पाकिस्तान में एक कमजोर सरकार है इसलिए उसकी तरफ से कोई कारगर पहल की उम्मीद कम है। ऊपर वाला रहम करे।
व्यक्तिगत विचार-आलेख-
श्री राकेश अचल जी जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश ।
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