राजनीतिनामा

भारत के हजार टुकड़ों की तैयारी

अब तक भारत में जिन अनुसूचित जातियों और जन-जातियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाता रहा है, अब उनकी संख्या बढ़ाने की मांग हो रही है। अदालत में कई याचिकाएं भी लगी हुई हैं। संविधान सभा में पहले सिर्फ उन्हीं अनुसूचितों को आरक्षण मिला हुआ था, जो अपने आप को हिंदू मानते थे लेकिन 1956 में सिखों और 1990 में बौद्ध अनुसूचितों को भी इस जमात में जोड़ लिया गया।हालांकि गौतम बुद्ध और गुरु नानक अपने अनुयायियों को जातिभेद से दूर रहने का उपदेश देते रहे लेकिन थोक वोटों के लालच में फंस कर नेताओं ने धर्म को भी जाति के पांव तले ठेल दिया। आश्चर्य है कि उन अ-हिंदू धर्मावलंबियों ने उनके इस धर्म विरोधी कृत्य को सहर्ष स्वीकार कर लिया। अब उन्हीं की देखादेखी हमारे मुसलमान, ईसाई और यहूदी भी मांग कर रहे हैं कि उनमें जो अनुसूचित हैं और पिछड़े हैं, उन्हें भी सरकारी आरक्षण दिया जाए।

 मोदी सरकार अपने आप को परम राष्ट्रवादी कहती है लेकिन वह भी कांग्रेसियों और समाजवादियों की तरह देश को जातिवाद की भट्ठी में झोंकने के लिए तैयार हो गई है। उसने एक आयोग की घोषणा की है, जो काफी खोज-बीन के आधार पर यह तय करेगा कि मुसलमान, ईसाई और यहूदी लोगों को कभी भूतपूर्व पसमांदा, अछूत या दलित हिंदू रहे हैं, उन्हें भी आरक्षण दिया जाए या नहीं? इस आयोग के सदस्य लोग काफी अनुभवी और योग्य हैं लेकिन कह नहीं सकते कि वे क्या सुझाव देंगे।मेरी समझ यह है कि ‘काणी के ब्याव में सौ-सौ जोखिम’ हैं। जातीय आरक्षण ने पहले ही देश में अयोग्यता और भ्रष्टाचार को बढ़ा रखा है। दूसरा, उनमें जो एकाध प्रतिशत मलाईदार लोग हैं, वे ही सारी नौकरियों पर कब्जा कर लेते हैं। असली गरीब लोग ताकते रह जाते हैं। तीसरा, यदि इसमें नए धर्मों को भी जोड़ लिया गया तो जैनों ने कौन सा अपराध किया है? दक्षिण भारत के सैकड़ों जैन-परिवारों को मैं जानता हूं, जो जैन बनने के पहले वंचित और अस्पृश्य हिंदू थे।

चौथा, इन नए मुसलमान और ईसाई लोगों के जुड़ जाने से क्या पहले वाले आरक्षितों के अवसर नहीं घटेंगे? पांचवां, उन्हें यह शक भी है कि यह भाजपा का एक बहुत चालाकी  भरा पैंतरा है, जो मुसलमानों और ईसाइयों को जातिवाद में फंसाकर उनका ‘हिंदूकरण’ करना चाहती है। छठा, विपक्षी नेताओं का आरोप है कि यह ‘वोट बैंक’ की राजनीति का नया पैंतरा है। ये तर्क सही हैं या नहीं, इस पर अलग से विचार किया जा सकता है।लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि 1947 में मजहब के आधार पर भारत के दो टुकड़े हो गए थे, अब यदि जातिवाद ही हमारी राजनीति का आधार बन गया तो भारत के जमीनी टुकड़े हों या न हों, भारत हजार टुकड़ों में बंट जाएगा। जमीन तो शायद हमारी न टूटे लेकिन हमारे दिलों के हजार टुकड़े हो जाएंगे। जन्म के आधार पर सारे आरक्षण खत्म किए जाएं लेकिन जरुरत के आधार पर जरुर दिए जाएं। जातीय और मजहबी आधार पर बिल्कुल नहीं।

आलेख श्री वेद प्रताप वैदिक जी, वरिष्ठ पत्रकार ,नई दिल्ली।

साभार राष्ट्रीय दैनिक नया इंडिया समाचार पत्र  ।

 

Share this...
bharatbhvh

Recent Posts

बहनें लाड़ली हैं तो भाई लाडले क्यों नहीं ?

मध्यप्रदेश में शुरू हुई लाड़ली बहना योजना और उससे मिलती जुलती महतारी योजनाओं ने भाजपा…

19 hours ago

राहुल तुम केवल गुंडे हो नेता नहीं

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को पहचानने में भाजपा भूल कर गई ।…

3 days ago

मानव अधिकार उल्लंघन के ”11 मामलों में” संज्ञान

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के माननीय अध्यक्ष श्री मनोहर ममतानी ने विगत दिवसों के विभिन्न…

5 days ago

कभी टोले से डरती है ,कभी झोले से डरती है

आजकल जैसे संसद में मुद्दों पर काम नहीं हो रहा उसी तरह मुझे भी लिखने…

6 days ago

सीएमसीएलडीपी के छात्रों ने सागर नगर की प्रतिष्ठित संस्था सीताराम रसोई का भ्रमण किया

सागर /मप्र जन अभियान परिषद् सागर विकासखंड द्वारा संचालित मुख्यमंत्री नेतृत्व क्षमता विकास पाठ्यक्रम के…

1 week ago

धमकियों से तो नहीं चल सकती संसद

संसद का शीत सत्र धमकियों से ठिठुरता नजर आ रहा है। इस सात्र के पास…

1 week ago