राजनीतिनामा

जया को रोऊँ की रोऊँ जगदीप को ?

राजयसभा में पांचवीं बार पहुंची सातवें दशक की ‘ गुड्डी’ यानि आज की जया बच्चन और राज्यसभा के सभापति जगदीप घनकड़ के बीच हुए वाक्युद्ध के बाद लगता है के राजनीति में कड़वाहट का नया अध्याय शुरू होगा। इस नए अध्याय में जया बच्चन का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन जगदीप धनकड़ हमेशा के लिए एक नाकाम सभापति के रूप में दर्ज हो जायेंगे ,भले ही विपक्ष द्वारा लाया जाने वाला अविश्वास प्रस्ताव सदन में पारित हो या न हो।
संसद के उच्च सदन के सभापति लोकसभा के अध्यक्ष श्रीमान ओम बिरला की ही तरह कठपुतली साबित हुए हैं। दोनों अपने आपको भाजपा का ार्यकता होने की ग्रंथि से मुक्त नहीं हो पाए। काश यदि ऐसा हो जाता दो सदन को और देश को ऐसे बुरे दिन नहीं देखना पड़ते। समस्या ये है की हम धनकड़ का समर्थन करें या जाया बच्चन का ? जया बच्चन अपनी जगह सही हैं और धनकड़ को तो सही होना ही है क्योंकि वे सभापति हैं। लेकिन दुनिया भर के देहभाषा विशेषज्ञ बता सकते हैं कि राज्य सभा में इस कड़वाहट के लिए जिम्मेदार कौन है ?
राज्यसभा के सभापति श्रीमान जगदीप घनकड़ ने घाट -घाट का पानी पिया है लेकिन वे उम्र और अनुभव में जया बच्चन से उन्नीस ही बैठते है। जगदीप जी, जया से तीन साल छोटे है। वे केंद्र में एक बार मंत्री रहे हैं लेकिन जया बच्चन राज्य सभा में पांचवीं बार आयीं हैं । धनकड़ साहब 1978 से सार्वजनिक जीएवं में हैं और जया बच्चन 1968 से। मैंने उनकी पहली फिल्म ‘ महानगर ‘ भी देखी है और आखरी फ़िल्मी ड्रामा रॉकी और रानी की प्रेम कहानी भी देखी है । जब मै युवा था तब मेरी निकटता एक पत्रकार के रूप में जया बच्चन के पिताश्री स्वर्गीय तरुण भादुड़ी से भी थी। वे बताया करते थे कि जया बचपन से तुनकमिजाज रही है ,लेकिन लड़ती हमेशा मुद्दों को लेकर है।
धनकड़ साहब को मै एक केंद्रीय मंत्री के रूप में याद नहीं कर पा रहा हूँ । वे 1990 -91 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की अल्पजीवी सरकार के संसदीय कार्यमंत्री थे। धनकड़ की असल पहचान पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बनने के बाद हुई । राज्यपाल के रूप में जगदीप साहब ने जिस तरह से भाजपा कार्यकर्ता के रूप में बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी से टक्कर ली उसने उन्हें सुर्खियों में ला दिया। बंगाल में उनकी कोशिशों के बावजूद ममता सत्ताच्युत नहीं हो पायीं ,लेकिन धनकड़ साहब की ईनाम स्वरूप देश का उपराष्ट्रपति बना दिया गया। इस नाते वे राज्यसभा के सभापति बन गए ,लेकिन वे ये याद नहीं रख पाए कि एक राज्यपाल की भूमिका और एक सभापपति की भूमिका में जमीन -आसमान का भेद है। माननीय धनकड़ साहब को मै लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला जी के मुकाबले ज्यादा योग्य मानता हूँ। ये मेरी निजी राय है । वे वाकपटु हैं ,विनोदी हैं, सहनशील हैं लेकिन बिरला और धनकड़ में जो समानता है वो ये है कि दोनों अपने आपको मोशा की जोड़ी का वफादार साबित करने की होड़ में स्तरहीन साबित हो गए हैं।
शुक्रवार को राज्यसभा में धनकड़ और जया बच्चन की तकरार जिसने भी देखी उसे ये समझने में कोई दिक्क्त नहीं हुई होगी कि धनकड़ साहब आपे से बाहर थे। जया बच्चन ने जो मुद्दा उठाया था उसे सहजता से सुलटाया जा सकता था । उसके लिए किसी क़ानून की नहीं बल्कि हिकमत अमली की जरूरत थी । लेकिन धनकड़ साहब लगातार इस बात पर अड़े रहे कि जया बच्चन का जो नाम रिकार्ड में दर्ज है वे उसी का उल्लेख कर रहे हैं। सवाल ये है की क्या वे ऐसा सबके साथ करते हैं ? क्या कभी उन्होंने नरेंद्र मोदी जी को रिकार्ड में दर्ज नरेंद्र दामोदर दास मोदी या गृहमंत्री अमित शाह को उनके पूरे नाम से सम्बोधित किया ? शायद नहीं किया और कर भी नहीं सकते क्योंकि वे सरकार के एजेंट के रूप में काम करते दिखाई देते है। देश ने उन्हें सभापपति कि पद पर बैठकर आरएसएस का समर्थन करते हुए देखा है। धनकड़ साहब जितने अविश्वसनीय बंगाल कि राज्यपाल कि रूप में थे ,उतने ही अविश्वसनीय राज्य सभा कि सभापति के रूप में भी हैं।
हमारे यहां कहते हैं कि -‘ अभी भी बेटी बाप की है ‘ अर्थात यदि धनकड़ साहब अपने व्यवहार के लिए खेद प्रकट कर दें तो मुमकिन है कि विपक्ष उन्हें माफ़ कर दे ,लेकिन यदि वे इतना भी नहीं करते तो तय है कि विपक्ष उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है। सत्ता पक्ष धनकड़ को बचाने कि लिए विपक्ष कि खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा है। लेकिन ये समस्या का समाधान नहीं है ,बल्कि इससे कटुता और बढ़ेगी और भविष्य में सदन को चलना मुश्किल हो जाएगा। धनकड़ के व्यवहार को लेकर जया बच्चन इस बार अकेली नहीं हैं। समूचा विपक्ष उनके समर्थन में सदन का बहिष्कार कर चुका है। जया बच्चन ने भी साफ़ कह दिया है कि इस मुद्दे पर वे निजी रूप से कोई फैसला नहीं लेंगी ,जो करना है विपक्ष को करना है । विपक्ष के नेता जो कहेंगे सो होगा। यानि पेंच उलझ गया है।
आज और कल का दिन इस मुद्दे का सम्यक हल निकालने के लिए सत्तापक्ष और खुद धनकड़ साहब के पास है । धनकड़ साहब को समझ लेना चाहिए कि अकड़ से काम नहीं चलेगा । उन्हें इस मामले में अपना आदर्श पूर्व सभापति स्वर्गीय डॉ शंकर दयाल शर्मा के व्यवहार को बना लेना चाहिए। अन्यथा किरकिरी धनकड़ साहब की ही होने वाली है। जया बच्चन का कुछ नहीं बिगड़ने वाला। इस मामले में भाजपा के नेतृत्व से कोई अपेक्षा करने का कोई अर्थ नहीं है। देखिये राजयसभा में कटुता की बेल मुरझाती है या और फैलती है।? मेरी मुश्किल है कि मै न जया बच्चन को सराहना चाहता हूँ और न धनकड़ साहब को । जया जी को भी समझना चाहिए की वे 1971 वाली जया नहीं हैं। वे 2024 की जया बच्चन हैं।
@ राकेश अचल

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