धर्म-ग्रंथ

मझगुवां अहीर में संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा प्रारंभ

भागवत कथा हमारे एकमात्र लक्ष्य भगवत प्रेम की प्राप्ति के लिए है : श्री हृषीकेष जी महाराज
सागर। राजघाट रोड स्थित मझगुवां अहीर में मंगलवार को भव्य और विशाल कलश यात्रा के साथ मंगलमय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा का शुभारंभ हुआ। प्रथम दिन कथा ब्यास श्री भक्ति प्रसाद हृषीकेष महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा के महत्व और उद्देश्य पर विशेष प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जीव अपने स्वरूप को भूल चुका है और भगवत प्रेम की प्राप्ति ही हमारा लक्ष्य है। इसी लक्ष्य को श्रीमद्भागवत कथा के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। दोपहर करीब ११ बजे कलश यात्रा श्री हनुमान मंदिर                                              मझगुवां से प्रारंभ होकर नीरज तिवारी कृषि फार्म पहुंची। कलश यात्रा में घोडा बग्गी, बैंड बाजों के साथ बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल थीं। कथा के प्रारंभ में मुख्य यजमान पं. रामशंकर तिवारी द्वारा सपरिवार आरती की गई।
कथा ब्यास श्री भक्ति प्रसाद हृषीकेष महाराज जी ने हर क्षण भगवान के स्मरण पर जोर देते हुए कहा कि संसार के सारे मनुष्य दुख में पड़े हैं और क्लेश ही क्लेश पा रहे हैं। किसी को सुख-शांति नहीं है इसका कारण यही है कि हम खुद का स्वरूप भूलकर करोड़ों जन्मों से भटक रहे हैं। इस ब्रह्मांड में भ्रमते-भ्रमते गुरू कृष्ण कृपा से ही भक्ति पाई जा सकती है।उन्होंने कहा कि भटकते-भटकते सद्गुरू की शरण में आने पर श्रीमद्भागवत कथा के माध्यम से अपने स्वरूप का बोध होगा। कथा लौकिक धन के लिये नहीं है, इससे भगवान का प्रेम और भक्ति पाई जाती है। हालांकि यह भी सत्य है कि इससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष भी प्राप्त होता है परन्तु कथा निष्काम भाव से ही करना और सुनना चाहिए। श्री चैतन्य महाप्रभु कृष्ण अवतार हैं और दोनों हाथ उठाकर बुला रहे हैं कि कहां भटक रहे हो? पांच हजार वर्ष पहले ही श्रीकृष्ण धराधाम पर आये और उन्होंने यही कहा कि सब त्याग कर मेरी शरण आ जाओ, मैं तुम्हें हर पाप और अपराध से मुक्त कर दूंगा। इतनी स्पष्ट घोषणा के बावजूद हम क्यों भटक जाते हैं?
श्री भक्ति प्रसाद हृषीकेष महाराज ने कहा कि हम ईश्वर के अंश हैं इसलिये अविनाशी होने के कारण हमारा विनाश नहीं होता। हमारी आत्मा की अमरता को भूलने के कारण ही मृत्यु का भय होता है। राजा पारीक्षित को तो सात दिन मिले थे लेकिन हमारे पास सात सेकेंड का समय भी तय नहीं है कि कब काल का ग्रास बन जायें इसलिये हमेशा भगवान को याद करो। भगवान का स्मरण करने से आपका जीवन अमृतमय बन जायेगा। कथा उपरान्त शुकदेव जी ने जब पारीक्षित से कथा का अनुभव पूछा तो उन्होंने यही कहा था कि अब मुझे मृत्यु का भय नहीं रहा, यही अभय की स्थिति हमें भी प्राप्त करना है। हमारा एक मात्र कर्तव्य भगवान को प्रसन्न करना है। भगवान का स्वरूप सच्चिादानंद यानि सत्य, ज्ञान और आनंद का स्वरूप है, यही स्वरूप ईश्वर अंश होने के कारण हमारा भी है। इसी स्वरूप को भूलने के कारण दुख पाते हैं। भगवान को अलग करके हम मालिक बन बैठे और खुद भोगता भी हो गये। आपके जीवन में भगवत तत्व आ जाये तो भगवान की सारी सम्पत्ति और यश वैभव के आप अधिकारी हैं ही लेकिन हम अविधिपूर्वक अधिकार जमाना चाहते हैं। भगवान विभु सच्चिादानंद और हम अणु सच्चिादानंद हैं। उनसे जुडऩे पर हम भी उनके समान शक्ति रखते हैं जो भगवान के हो जाते हैं भगवान उनके हो जाते हैं इसमें घाटा क्या है? श्री भक्ति प्रसाद हृषीकेष महाराज ने कहा कि जो भगवान का भक्त हो जाता है उसके दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तापों का नाश हो जाता है, मगर हम कामनाओं की पूर्ति में लगे रहते हैं। हम इंद्रियों को प्रिय लगने वाले प्रैय की तरफ बढ़ते हैं जबकि हमें श्रेय को अपनाना चाहिये। यदि गुरू प्रसन्न हो गया तो योगियों को दुर्लभ भगवान की प्राप्ति हो जायेगी। उन्होंने हिरण्याकश्यप के वृतांत का उदाहरण देते हुए बताया कि उसके पास सारी सम्पत्ति थी। भगवान की तलाश कर रहा था तो भगवान उसके हृदय में छिप गये। फिर हिरण्याकश्यप की वृत्तिया बहिरमुखी थीं तो वह बाहर ही खोजता रहा। इसी तरह की गति हमारी भी है, हमारे प्रभु हृदय में बैठे हैं पर हमारी दृष्टि बाहर है।
श्री भक्ति प्रसाद हृषीकेष महाराज ने कहा कि हिरण्याकश्यप का भक्त प्रहलाद को छोड़कर सभी पर शासन था। प्रहलाद ने एक मात्र सद्गुरू का आश्रय लिया था। गर्भअवस्था में ही उसे सद्गुरू के माध्यम से भ”वत तत्व का ज्ञान हो गया था। सद्गुरू के मिलने पर जीव पूर्ण हो जाता है यही सद्गुरू का लक्षण है। गुरू तत्व आने पर सभी कुछ प्राप्त हो जाता है। उन्होंने भागवत कथा का महत्व बताते हुए कहा कि देवता समुद्र मंथन में मिला अमृत कलश लेकर सुकदेव जी के पास गये थे कि इस अमृत कलश के बदले उन्हें अमृतमयी भागवत कथा श्रवण कराई जाये, लेकिन शुकदेव जी ने कहा कि भागवत का कोई तौल नहीं है, इसका विनिमय नहीं हो सकता। कथा का जो मोल करे तो उसका कोई लाभ करने और सुनने वाले को नहीं मिलता। हम भागवत के बदले कामना चाहते हैं यह गलत है। निष्काम होने पर ही कथा सुनने का लाभ मिलेगा।

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