धर्म-ग्रंथ

मोक्षदा एकादशी : गीता जयंती और सियाराम बाबा का जाना

गीता भी कर्म के महत्व को प्रतिपादित एकादशी पर जन्मे और एकादशी के दिन ही सियाराम बाबा का देवलोक गमन हुआ। वे हमेशा कहा करते थे कोई किसी का साथ ही नहीं केवल कर्म ही साथ रहेगा और संपूर्ण करती है सो गीता जयंती के दिन सियाराम बाबा का जाना। दरअसल निमाड़ के प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा लगभग 110 वर्ष की उम्र में देवलोक गमन कर गए। खरगोन के कसरावद के तेली भट्यांन गांव में नर्मदा किनारे उनका अंतिम संस्कार किया गया। जिसमें लाखों की संख्या में लोग शामिल हुए। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी श्रद्धांजलि देने पहुंचे और उन्होंने इस अवसर पर बाबा की समाधि व क्षेत्र को पवित्र एवं पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा भी की। संत सियाराम बाबा ने मोक्षदा एकादशी के दिन सुबह 6:00 बजे अंतिम सांस ली और इसके बाद पूरे प्रदेश और देश में यह खबर तेजी से वायरल हुई और लोगों ने आश्रम पहुंचना शुरू किया। लगभग 3 लाख से भी ज्यादा लोग अंतिम संस्कार में शामिल हुए। बहरहाल, लगभग 110 वर्ष की आयु तक सियाराम बाबा जिस तरह से अपना काम स्वयं करते थे और बिना चश्मा लगाए प्रतिदिन रामायण का पाठ घंटों किया करते थे यह सब किसी आश्चर्य से काम नहीं है आज जबकि छोटे-छोटे बच्चों को चश्मा लग जाता है। युवावस्था में हार्ट अटैक हो रहे हैं जबकि मौसम से बचाव के पूरे उपाय होते हैं। शरीर स्वस्थ रखने की पूरी जानकारी होती है उसके बावजूद यह सब घटित हो रहा है।

वहीं दूसरी ओर सियाराम बाबा कोई भी मौसम हो केवल एक छोटी सी सफेद लंगोटी लगाया करते थे। किसी भी प्रकार के मौसम में किसी भी प्रकार का बचाव उन्होंने नहीं किया। न ठंड में गर्म कपड़े पहने, न अलाव जलाया, न गर्मी में कूलर-एसी लगाया और इतनी लंबी आयु तक स्वस्थ रहे। आज जब दुनिया में अधिकांश अपराध पैसे को लेकर हो रहे हैं। लोगों में लोभ-लालच इस कदर बढ़ गया है कि मिलावट करने वाले खाद्य पदार्थों को जानलेवा बन रहे हैं। थोड़े से पैसों या जमीन के टुकड़े के लिए भाई-भाई को मार रहा है पर सियाराम बाबा को कोई कितना भी दान दे वह केवल 10 रुपए लेते थे बाकी लौटा देते थे और लगभग 3 करोड़ रुपए उन्होंने दान में दिए। अपने ऊपर उनका कोई खर्च नहीं था। 10 साल तक खड़े रहकर तपस्या की और करीब 70 वर्षों से रामचरितमानस का पाठ कर रहे थे। उनके त्याग और तपस्या से आमजन प्रभावित रहता था। कुल मिलाकर सियाराम बाबा का मोक्षदा एकादशी, गीता जयंती के दिन जाना यह जरूर बताता है कि जीवन में उन्होंने जो कर्म का उपदेश दिया और स्वयं के जीवन में आत्मसात किया। अंतिम समय में भी उनको एकादशी और गीता जयंती का संयोग मिला। आज के दौर में जो साधुओं का वेश रखकर पाखंड और छल-कपट समाज के साथ कर रहे हैं ऐसे समय में सियाराम बाबा जैसे संत मिलना दुर्लभ है। उनके जीवन से गीता का यह सार एक बार फिर प्रतिपादित हो गया कि “किया हुआ व्यर्थ जाता नहीं, किए बिना कुछ मिलता नहीं, कार्य करता जा पुकारता जा मदद तैयार है”।

आलेख – श्री देवदत्त दुबे 

लेखक मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक हैं 

⇑ वीडियो समाचारों से जुड़ने के लिए  कृपया हमारे चैनल को सबस्क्राईब करें , धन्यवाद।

Share this...
bharatbhvh

Recent Posts

कभी टोले से डरती है ,कभी झोले से डरती है

आजकल जैसे संसद में मुद्दों पर काम नहीं हो रहा उसी तरह मुझे भी लिखने…

23 hours ago

सीएमसीएलडीपी के छात्रों ने सागर नगर की प्रतिष्ठित संस्था सीताराम रसोई का भ्रमण किया

सागर /मप्र जन अभियान परिषद् सागर विकासखंड द्वारा संचालित मुख्यमंत्री नेतृत्व क्षमता विकास पाठ्यक्रम के…

3 days ago

धमकियों से तो नहीं चल सकती संसद

संसद का शीत सत्र धमकियों से ठिठुरता नजर आ रहा है। इस सात्र के पास…

4 days ago

लोकसभा में पहली बार क्या बोलीं प्रियंका गांधी ?

आज कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने लोकसभा में अपना पहला उदबोधन दिया लगभग आधा घंटे…

5 days ago

भाजपा का टेसू और देश का भविष्य

शीर्षक पढ़कर न हासिये और न भ्रमित होइए। बात भाजपा के टेसू की ही कर…

5 days ago

मकरोनिया नगर पालिका में अनियमितताओं के विरोध में शिवसेना का उग्र प्रदर्शन

सागर मकरोनिया मैं नियम विरुद्ध बने अवैध शॉपिंग मॉल एवं नगर पालिका में चल रहे…

6 days ago