अध्यापक के धर्म, कर्म और मर्म को भारत ने ही विश्व में स्थापित किया है- प्रो. जानी
सागर. डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर में शिक्षक दिवस पर्व 5 सितंबर के अवसर पर विश्वविद्यालय के अभिमंच सभागार में ‘अध्यापक: धर्म, कर्म एवं मर्म’ विषय पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व कुलाधिपति प्रो. बलवंतराय शांतिलाल जानी थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने की. इस अवसर पर निदेशक फैकल्टी अफेयर्स प्रो. अजीत जायसवाल भी मंचासीन थे. कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन, देवी सरस्वती, डॉ. हरीसिंह गौर एवं डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी मूर्ति पर माल्यार्पण कर किया गया. संस्कृत विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. किरण आर्या ने स्वस्तिवाचन किया. स्वागत भाषण प्रो. अजीत जायसवाल ने दिया. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर केंद्रित वृत्तचित्र का प्रदर्शन किया गया. पूर्व कुलाधिपति प्रो. जानी ने कहा कि भारतीय ज्ञान व्यवस्था में शिक्षकों की भूमिका और स्थान वैदिक काल से ही रही है. शिक्षक दिवस के अवसर पर आज यह देखने की आवश्यकता है कि भारतीय ज्ञान के प्रसार में शिक्षक की क्या भूमिका है. पूरे विश्व में शिक्षक की संकल्पना केवल भारत में ही रही है. एक तरफ जहाँ पूरा विश्व औपनिवेशीकरण की ओर अग्रसर वहीं भारत वि-औपनिवेशीकरण के रास्ते पर है और वसुधैव कुटुम्बकम की संकल्पना को साकार कर रहा है. वैदिक काल से ही ज्ञान का आदान-प्रदान होता आ रहा है. हर एक क्षेत्र में गुरु ही मार्गदर्शन देता रहा है. सबसे प्राचीन दान विद्यादान ही माना गया है, इससे यह प्रमाणित होता है कि अध्यापक के धर्म, कर्म और मर्म को भारत ने ही विश्व में स्थापित किया है. उन्होंने धर्मपाल द्वारा लिखित पुस्तक ‘द ब्यूटीफुल ट्री’ का उल्लेख करते हुए भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि अध्यापक का मतलब केवल पाठ्यक्रम का अध्यापन करना ही नहीं है बल्कि विद्यार्थी के बारे में संवेदनशील होकर विचार करना भी है. उसे भारतीयता के बोध के साथ राष्ट्र की सेवा के लिए तैयार करना भी है. यही शिक्षक का धर्म है. आज विश्व के प्रत्येक कोने में भारतीय मूल के अध्यापक हैं.
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए विश्वविद्यालय की कुलगुरु प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि पहले चाक और डस्टर से ही शिक्षक पहचाना जाता था लेकिन आज समय बदल गया है. आज का शिक्षक लैपटॉप, कम्प्यूटर एवं शिक्षा के लिए जरूरी अन्य तकनीकी उपकरणों से लैस है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लागू होने के बाद शिक्षा को नए तरीके से परिभाषित किया गया है जिसमें स्किल इन्हैन्स्मेंट, वैल्यू एजुकेशन, एबिलिटी इन्हैन्स्मेंट जैसे पाठ्यक्रमों को शामिल किया गया है. एक समय था जब कोरोना काल में शिक्षकों ने अपनी भूमिका का निर्वहन करते हुए अध्यापन कार्य को जारी रखा. आज मल्टीस्किल्ड और मल्टी डायमेंशनल शिक्षकों की आवश्यकता है. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जमाने में शिक्षकों की भूमिका कम नहीं आंकना चाहिए क्योंकि तकनीक मनुष्य की संवेदना को नहीं समझ सकती. इसलिए एक विद्यार्थी और शिक्षक के बीच के संबंध किसी कृत्रिम तरीके से नहीं समझा जा सकता और न ही कोई संवेदना पैदा की जा सकती है. इस चुनौतीपूर्ण समय में शिक्षकों को अपनी भूमिका का विस्तार करना होगा. लक्ष्य 2047 तक नए भारत के निर्माण में अपनी भूमिका निभानी होगी. तभी हम विश्वगुरु की संकल्पना को सिद्ध कर सकते हैं. शिक्षकों की गुणवत्ता और संख्या दोनों ही मायने रखती है अतःइसमें बढ़ोत्तरी की आवश्यकता है. कार्यक्रम में विश्वविद्यालय की सेवा से निवृत्त प्राध्यापकों प्रो. गिरीश मोहन दुबे (अर्थशास्त्र विभाग), डॉ. ललित मोहन (ललित कला एव प्रदर्शनकारी कला विभाग), प्रो. संजय कुमार जैन (फार्मास्युटिकल साइंस विभाग), तथा प्रो. एस. एच. आदिल (व्यावहारिक भू-गर्भ शास्त्र विभाग) को शाल, श्रीफल एवं अभिनंदन-पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया.शिक्षा विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. रजनीश ने अभिनन्दन पत्र का वाचन किया. प्रो. अनिल कुमार जैन ने शिक्षा एवं शिक्षक पर केन्द्रित स्वरचित कविता का पाठ किया. कार्यक्रम के अंत में भारतीय सांकेतिक भाषा में राष्ट्रगान हुआ. कार्यक्रम का संचालन डॉ. वंदना राजोरिया एवं आभार डॉ. राकेश सोनी ने किया. कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे.
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